बिहार

मकर संक्रांति के दौरान बिहार में तिलकट भरने की क्यों है परंपरा, जानें

 मकर संक्रांति का त्योहार यूं तो पूरे राष्ट्र में मनाया जाता है, लेकिन बिहार में मकर संक्रांति का एक अलग ही महत्व होता है मकर संक्रांति के दौरान बिहार में तिलकट भरने की परंपरा है और इस दौरान माता के द्वारा अपने पुत्रों को तिल, गुड़ और चावल देकर उनसे वचन लेने की भी परंपरा है लेकिन मकर संक्रांति के दौरान एक परंपरा ऐसी भी है, जिससे बेटियों को अलग रखा जाता है घर की बेटियों को इस परंपरा में ना तो शामिल किया जाता है और ना हीं उन्हें इस परंपरा का हिस्सा बनाया जाता है

दरअसल, मकर संक्रांति के दौरान माताएं अपने पुत्र के हाथ में तिल, गुड़ और चावल देती हैं और इस दौरान उनसे वह वचन लेती है कि वह बुढ़ापे में उनका सहारा बनेंगे लेकिन आपको जानकारी आश्चर्य होगी कि इस परंपरा में घर की बेटियों को शामिल नहीं किया जाता है

शादी के बाद बेटियां दूसरे कुल का बन जाती है हिस्सा
पंडित प्रदीप आचार्य बताते हैं कि मकर संक्रांति के दिन घर में तिलकट भरने की परंपरा होती है और इस दौरान घर के कुल देवता पर तिल गुड़ और चावल चढ़ाया जाता है माता अपने पुत्र और पुत्रवधू के साथ तो इस परंपरा का निर्वहन करती हैं पर बेटियों को इससे दूर रखा जाता है ज्योतिषाचार्य पंडित प्रदीप आचार्य बता रहे हैं कि आखिर इसके पीछे का कारण क्या है और क्यों बेटियों को इस परंपरा से दूर रखा जाता है और बेटियों के हाथ में तिल और चावल नहीं दिया जाता है

बेटियों को शामिल नहीं करने का यह है कारण
पंडित प्रदीप आचार्य बताते हैं कि कुल देवता को तिल, गुड़ और चावल चढ़ाने के बाद उसी का प्रसाद माताएं अपने बेटों के हाथ में देती है और उनसे बुढ़ापे में उनका सहारा बनने का वचन लेती है लेकिन बेटियों को इससे दूर रखा जाता है उन्होंने कहा कि ऐसा माना जाता है कि बेटियों की विवाह हो जाने के बाद वह अपने ससुराल चली जाती है जबकि बेटे पूरे उम्र अपने माता-पिता के साथ रहते हैं

बेटियों के ससुराल चले जाने के बाद वह अपने माता-पिता के साथ नहीं रहती और वह दूसरे कुल का हिस्सा बन जाती है ऐसे में इस परंपरा का निर्वहन उनके ससुराल में उनके साथ किया जा सकता है, पर माताएं उसके मायके में इस परंपरा का निर्वहन नहीं करती हैं और यही कारण है कि बेटियों को इस परंपरा से दूर रखा जाता है

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