रामचरितमानस के अगले साल 450 वर्ष होंगे पूरे

रामचरितमानस के अगले साल 450 वर्ष होंगे पूरे

तुलसीदास ने 1574 ई० में अयोध्या के राम मंदिर में रामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की थी. अगले साल यानी 2024 की रामनवमी के दिन इसके 450 साल पूरे होंगे. इस ऐतिहासिक अवसर को धूमधाम से मनाया जाएगा. इस साल की रामनवमी से लेकर 2025 की रामनवमी यानी दो सालों तक ‘रामायण अध्ययन संस्थान’ के तत्त्वावधान में सभी मौजूद पाण्डुलिपियों के गहन शोध के बाद सभी तुलसी साहित्य का प्रामाणिक संस्करण प्रकाशित किया जायेगा.

1810 में हुआ था संपादन

वहीं हाल ही में रामचरितमानस की कुछ पंक्तियों पर मानस का मर्म नहीं समझने वाले अल्पज्ञों द्वारा आक्षेप किये जा रहे हैं. ‘ढोल गंवार सूद्र पसु नारी’ ऐसी ही एक पॉक्स है जिसपर टकराव होता रहा है. किन्तु लोगों को यह जानकर ताज्जुब होगा कि सन् 1810 ई० में कोलकता के विलियम फोर्ट से बिहार के उद्भट विद्वान् पं० सदल मिश्र द्वारा सम्पादित ‘रामचरितमानस’ छपा था उसमें यह पाठ ‘ढोल गंवार क्षुद्र पशु नारी’ के रूप में छपा था. यहाँ सूद्र शब्द के बदले क्षुद्र शब्द है.

1810 ई० के बाद 1830 ई० में कोलकता के एसिएटिक लिथो कम्पनी से “हिन्दी एन्ड हिन्दुस्तानी सेलेक्सन्स’ नाम से एक पुस्तक छपी थी जिसमें रामचरितमानस का पूरा सुन्दरकाण्ड छपा है. इसमें भी पाठ ‘ढोल गंवार क्षुद्र नारी’ ही है. इस 494 पृष्ठ वाली पुस्तक के सम्पादक विलियम प्राइस, तारिणीचरण मिश्र, चतुर्भुज प्रेमसागर मित्र थे.

4 मई, 1874 को बंबई के सखाराम भिकसेट खातू के छापेखाने से अयोध्या के पास स्थित नगवा गाँव के विद्वान् देस सिंह द्वारा सम्पापित ‘तुलसीकृत रामायण’ का प्रकाशन हुआ था. इसमें भी पाठ ‘ढोल गँवार क्षुद्र पशु नारी’ ही है. इस पुस्तक की एक और खासियत है इसमें रामायण की घटनाओं को दिखाते हुए बहुत सारे चित्र भी प्रस्तुत किये हैं.