गया के अलावा इस नदी पर कर सकते है पितरों का तर्पण
अभी पितृ पक्ष का महीना चल रहा। ऐसे में लोग अपने पूर्वज, पितृ को याद करने के साथ उनका आशीर्वाद लेने के लिए तर्पन करते हैं। पूर्णिया के पुरोहित शंभु दयाल दुबे कहते हैं कि धर्म शास्त्र में भी ऐसा बोला गया है की यदि बहती नदी के जल में तर्पन करने से पितृ के साथ देवता भी स्वीकार करते है। उन्होंने बोला पूर्णिया के सिटी स्थित मां काली के मंदिर सौरा नदी तट की बहुत विशेष मान्यताएं हैं। जिस कारण यहाँ पर पूर्णिया ही नहीं भिन्न-भिन्न जिलों से आकर इस नदी तट पर तर्पण करते हैं।
अपने पितृ को याद करने और तर्पण करने आये श्रद्धालु राजवंशी यादव, मनोज कुमार, विकास कुमार, वैशाली के राजकुमार जायसवाल, सतेंद्र पाल, करुणा निधान सिंह सहित अन्य सभी लोगों ने बोला प्राचीन मंदिर होने के साथ इसी प्रांगण में बहती नदी होने के कारण और यहां पर उपस्थित सभी सुविधाएं मौजूद होने से उन लोगों को तर्पण करने में अच्छा लगता हैं।
मंदिर से स्पर्श करने से विशेष फल मिलता है
वहीं उपस्थित सभी लोगो ने बोला ईश्वर को भजने के साथ हम इंसानों को अपने पितृ को याद करने के लिए वर्ष में 15 दिन पितृ पक्ष का मिलता है। जिसमें हमलोग अपने माता पिता के साथ अन्य पूर्वजो और पितृ को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि रूपी जल चढ़ाकर तर्पण करते हैं। किसी बहती नदी तट और ईश्वर के मंदिर से स्पर्श होने पर और विशेष फलदायक होता है। जिससे उन सभी लोगों को मन में शांति मिलती है। अभी आने वाला 14 तारीख तक लगातार तर्पण करते रहेंगे।
ऋषियों के लिए जल और पितृ के लिए काला तिल का विशेष महत्व
वही तर्पण कराते पुरोहित शंभु दयाल दुबे कहते हैं कि नदी तट पर अक्षत, तिल, जल और कुश लेकर विधि विधान से तर्पण किया जाता हैं। देवता के लिए अक्षत और ऋषियों के लिए जल और अपने पितरों के लिए काले तिल से तर्पण किया जाता है। कुश लेकर जल अर्पण किया जाता हैं। वही कुश में ब्रह्मा विष्णु महेश तीनों देव मौजूद होते हैं। उन्होंने बोला इस जन्म में आगे जन्मों में और हमारे धर्म में पूर्णजन्म को मान्यता मिली है। पुनर्जन्म भी होता है। ऐसा पंडित जी का दावा है। भिन्न-भिन्न जन्मों के लिए तर्पण की जाती है।
वहीं यहां पितृपक्ष के लिए सुबह-सुबह भीड़ लग जाती है। सुबह 5:00 बजे से ही श्रद्धालु आकर अपने पितरों को शांति प्रदान करने के लिए तर्पण करते हैं। पंडित जी कहते हैं यहां पर दरभंगा, वैशाली, कटिहार, अररिया सहित भिन्न-भिन्न जिले से आकर पूर्णिया के इस नदी तट पर तर्पण करते हैं। वही 29 तारीख को प्रारम्भ होकर 14 अक्टूबर को खत्म हो जाएगी। पंडित जी कहते हैं यहां प्रतिदिन हजारों आदमी आते हैं जो तर्पण कर अपने पितरों को शांति के लिए जल प्रदान करते हैं ।
नदियों में तर्पण करने से होता यह
पुरोहित शंभू दयाल दुबे कहते हैं कि पूर्णिया का यह सौरा नदी तट पर तर्पण करने की विशेष मान्यताएँ हैं। वो कहते हैं बहता नदी में तर्पण करने से विशेष फायदा होता है। ऐसे धर्म शास्त्रों में भी जिक्र किया हुआ है कि बहता नदी में तर्पण करना चाहिए। ऐसा करने पितृ के साथ देवता तक आपका प्यार पहुंचता है। भरपूर आशीर्वाद मिलता है। इसलिए इस सौरा नदी का एक अलग ही अपना महत्व है।