बाढ़ ग्रस्त इलाका होने के बाद भी 7 माह में हुआ काफी मुनाफा
भागलपुर का क्षेत्र चावल, आम और सब्जी के लिए जाना जाता है। पर अब यहां भी खेती में परिवर्तन आया है। किसान अब परम्परागत खेती से हटकर कुछ नयी खेती की तरफ ध्यान दिए हुए हैं। ऐसे में ही भागलपुर के नाथनगर के रहने वाले किसान सच्चिदानंद पपीता की खेती करते हैं। कई फसलों में हुए हानि के बाद उन्होंने इस और ध्यान दिया। बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र होने के बाद भी 7 माह में काफी फायदा होता है।
पपीता की प्रदर्शनी देख मन में आया ख़्याल
किसान सच्चिदानंद ने कहा कि यहां पर सभी लोग मक्का, गेहूं की खेती किया करते थे। उन्होंने कहा कि इसमें अच्छी खासी लागत भी लगती है और फायदा भी बहुत कम होता है। ऐसे में मन में विचार आया कुछ अलग हटकर करना चाहिए, तो कुछ दिनों तक टमाटर की खेती की। उसमें भी कुछ खास फायदा नहीं हो पता था। क्योंकि हम लोग एक ही सीजन में टमाटर यहां तैयार कर पाते हैं।
उस समय पर टमाटर की मूल्य अच्छी खासी नहीं मिल पाती है। इसलिए उसमें भी फायदा नहीं होने लगा। एक दिन ऐसे ही सबौर स्थित बिहार एग्रीकल्चर कॉलेज घूमने गया था, वहां पर पपीता की प्रदर्शनी लगी हुई थी। जब पपीता को देखा तो इसके बारे में जानने की ख़्वाहिश हुई, तो बीएयू के केवीके में जाकर इसकी जानकारी ली तो पता चला कि पपीता की खेती में अच्छा खासा फायदा है, और लागत भी काफी कम होता है।
एक पौधा पर 50 से 60 केजी होता है फल
उन्होंने बोला कि यह बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र है। यदि बाढ़ आ जाए तो यह खेती पूरी बर्बाद हो जाती है। लेकिन यदि बाढ़ नहीं आई तो वह 6 से 7 माह में आप एक बीघे से ₹4 लाख कमा सकते हैं। एक पौधे में करीब 50 किलो पपीता फलता है। कम से कम बाजार में मूल्य ₹40 किलो होता है। इसलिए इसमें अच्छा खासा फायदा है। उन्होंने कहा कि सबसे खास बात यह है कि पपीता कच्चे में अधिक मूल्य पर बिकता है। मैं बीएयू से पपीता का बीज लाया था। वहां से डंकल जिसे देशला भी कहते हैं लाकर लगाया है। पूरी ढंग से सीख लेने के बाद नए-नए प्रभेद की भी खेती की जाएगी।