नालंदा में ऐसा मंदिर जहां 12 साल से लगातार जल रही अखंड ज्योति

नालंदा। जिले में एक ऐसा मंदिर है, जहां पिछले 12 वर्ष से अखंड ज्योति लगातार जल रही है। यह मंदिर जिला मुख्यालय बिहार शरीफ के दक्षिण पूर्व कोने पर स्थित बाबा मणिराम के अखाड़े के पास है। इस मंदिर को अब इच्छा पूरण मंदिर के नाम से जाना जाता है।
हर वर्ष आषाढ़ पूर्णिमा के दिन से यहां सात दिवसीय मेला लगता है। हजारों श्रद्धालु समाधि पर लंगोट अर्पण कर मन्नत मांगते हैं। पहले लोग बाबा की समाधिस्थल को बाबा मणिराम अखाड़ा के नाम से लोग जानते थे। लेकिन अब इसे इच्छा पूरण मंदिर नाम दिया गया है। इच्छा पूरण मंदिर नाम रखने के पीछे का रहस्य यह है कि बाबा की कृपा इतनी है कि इनके दरबार से कोई खाली हाथ नहीं लौटता है। सच्चे मन से मांगी गई इच्छा बाबा अवश्य पूरी करते हैं।
मनोकामना पूरण मंदिर के पुजारी विश्वनाथ मिश्रा बताते हैं कि 2012 में अयोध्या की बड़ी छावनी से अखंड ज्योति यहां लाई गई है। 24 घंटे में दो बार इसमें घी डाला जाता है। यह अखंड ज्योति पिछले 12 वर्ष से अनवरत जल रही है। ऐसी मान्यता है कि साल 1300 में बाबा मणिराम ने समाधि ले ली थी। कालांतर में बाबा के अनुयायियों ने समाधिस्थल पर मंदिर बनाकर पूजा पाठ प्रारम्भ कर दी। बाबा की समाधि के बगल में ही उनके चार शिष्यों की भी समाधि बनाई गई है। इनमें अयोध्या निवासी राजा प्रह्लाद सिंह और वीरभद्र सिंह और बिहार शरीफ निवासी कल्लड़ मोदी और गुही खलीफा की समाधि है।
बाबा मणिराम के बारे में कई तरह की कथाएं प्रचलन में हैं। उन्हीं में से एक प्रचलन यह भी है कि श्री श्री 108 श्री बाबा मणिराम का आगमन बिहार शरीफ में 1238 ईस्वी में हुआ था। वे अयोध्या से चलकर यहां आए थे। बाबा ने शहर के दक्षिण छोर पर पंचाने नदी के पिस्ता घाट को अपना पूजास्थल बनाया था। वर्तमान में यही स्थल अखाड़ा के नाम से मशहूर है।
ज्ञान की प्राप्ति और क्षेत्र की शांति के लिए बाबा घनघोर जंगल में रहकर मां भगवती की पूजा-अर्चना करने लगे। वे यहां लोगों को कुश्ती भी सिखाते थे। बाबा मणिराम अखाड़ा परिसर में 35 वर्ष बाद इस साल जनवरी में विराट दंगल प्रतियोगिता का आयोजन किया गया था। इस प्रतियोगिता में पड़ोसी राष्ट्र नेपाल, यूपी, हरियाणा, कोलकाता, बिहार समेत अन्य राज्यों के दर्जनों पहलवानों ने हिस्सा लिया था। विलुप्त होती इस परंपरा को फिर से जीवित करने का कोशिश मंदिर के सचिव अमरकांत भारती के द्वारा किया गया है। बाबा मणिराम इसी स्थल पर लोगों को पहलवानी के गुर सिखाते थे।