बिहार में कभी यहां लगता था दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला, आज हुआ ये हाल
बिहार का सोनपुर मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला बोला जाता है, लेकिन क्या आपको पता है कि बिहार के गया जिले में भी सोनपुर मेले के बाद बडा पशु मेला लगता था। जिले के मानपुर स्थित भूसूंडा सलेमपुर में बिहार का दूसरा सबसे बड़ा पशु मेला लगा करता था।
यहां हर तरह के जानवर जैसे गाय, भैंस, बैल, घोड़ा, ऊंट, हाथी आदि की बिक्री की जाती थी। यहां राष्ट्र के विभिन्न राज्य के लोग आते थे और जानवरों की खरीद बिक्री करते थे। लेकिन पिछले 18-20 वर्ष से प्रशासनिक और गवर्नमेंट के अनदेखी के वजह से गया का भूसूंडा सलेमपुर पशु मेला अपना अस्तित्व खो दिया है और अब इक्का दुक्का लोग यहां अपने जानवरों को बेचने आते हैं।
96 एकड़ जमीन पर यहां लगता था पशु मेला
96 एकड़ जमीन पर यहां पशु मेला लगता था, लेकिन आज के दौर में इस जमीन पर कब्ज़ा कर लोग घर बना रहे हैं। भुसुंडा मैदान में आयोजित होने वाला पशु मेला दक्षिण बिहार के हरिहर क्षेत्र मेले के रूप में मशहूर रहा है। जहां सैकड़ों वर्ष से आयोजित हो रहें पशु मेला में राष्ट्र के विभिन्न राज्यों के पशुपालक पशुओं की खरीद-बिक्री करने के लिए आते रहें हैं।
पिछले दो दशक से इस मेले की रौनक घटने लगी है। अब यह आखिरी सांसे गिनते हुए दिख रहा है। बोला जाता है कि भुसुंडा मेला की आरंभ सोनपुर मेला के तर्ज पर ही की गई थी। यहां पर लगने वाले मेला इतना बड़ा होता था कि एक छोर से दूसरे छोर तक जाने में घंटों लग जाते थे, पर अब स्थिति ऐसी है कि यहां का पशु मेला कुछ तंबू में ही सिमटते नजर आ रहा है।
राज्य गवर्नमेंट ध्यान दें तो…
गया शहर के समाजसेवी विजय कुमार मिट्ठू बताते हैं कि इसके 13 एकड़ जमीन पर सीएम के द्वारा स्टेडियम बनाने की बात कही गई थी, लेकिन वह काम भी प्रारम्भ नहीं हुआ है। अब लोग इसके जमीन को कब्ज़ा कर घर मकान बना रहें हैं। मानपुर के भुसुंडा में लगने वाला दक्षिण बिहार का सबसे बड़ा पशु मेला पर राज्य गवर्नमेंट ध्यान दें, तो यह उसी ख्याति के साथ एक बार फिर क्षेत्र में दर्शनीय होगा। पशु व्यवसायियों की खरीद बिक्री में तेजी आएगी तथा क्षेत्रीय लोगों को बड़े पैमाने पर रोजगार मिल सकेगा।
स्थानीय निवासी राजेश कुमार कुशवाहा बताते हैं कि भुसुंडा मैदान में वर्ष में दो बार पशु मेला का आयोजन होता था। कार्तिक माह और चैत माह में यहां बडा मेला का आयोजन होता था, लेकिन प्रशासनिक अनदेखी और थाना के रवैया के कारण बाहर के व्यापारी आना बंद कर दिए। अब कुछ लोकल व्यापारी आते हैं और जानवरों की बिक्री करते हैं।
ऐसे खत्म हुआ इसका अस्तित्व
बता दें कि जिन व्यापारी या पशुपालक को गाय, भैंस या घोड़ा खरीदना रहता था, इस मेला का प्रतीक्षा करता था। निजी स्तर पर साल 1973 तक इस मेले का संचालन किया गया। लेकिन साल 1974 से गवर्नमेंट के द्वारा मेला आयोजन किया जाने लगा। तब से लेकर 2005 तक जिला प्रशासन की देखरेख में मेला संचालित किया गया।
सरकारी स्तर पर जब से उक्त मेला का संचालन किया जाने लगा तब से गवर्नमेंट का उदासीन रवैये के कारण मेला की स्थिति खराब होने लगी। अन्य राज्यों से पशु लेकर आने बाले व्यापारी को परेशान किया जाने लगा। रिज़ल्ट यह हुआ कि व्यापारी भयभीत होने के कारण मेला में आना बंद कर दिया। उसी समय से जो मेला की स्थिति बिगड़ना शुरु हुआ जो आज मेला का आस्तित्व खत्म होने के कगार पर पहुंच गया है।