प्राण सभरवाल को थिएटर प्रेम के लिए पद्म श्री पुरस्कार किया गया सम्मानित
प्राण सभरवाल ने पृथ्वी राज कपूर और एमएस रंधावा से ऐसी स्टेज सीख ली कि वह पूरी जीवन स्टेज को अपने कंधे पर उठाते रहे. यहां तक कि उन्हें अपनी 95 वर्ष की उम्र की भी परवाह नहीं है.
प्राण सभरवाल ने पृथ्वी राज कपूर और एमएस रंधावा से ऐसी स्टेज सीख ली कि वह पूरी जीवन स्टेज को अपने कंधे पर उठाते रहे. यहां तक कि उन्हें अपने 95 वर्ष के बुढ़ापे का भी ख्याल नहीं रहता. गाँवों, शहरों और कस्बों की सड़कों पर, विशेषकर समाज के पिछड़े और दलित वर्गों के बीच, भ्रूणहत्या, दहेज, खुदकुशी और देशभक्तिपूर्ण नाटक जैसी सामाजिक बुराइयाँ वर्ष भर चलती रहती हैं. यहां तक कि पोह माघ की सर्दियों के दौरान भी, पटियाला में बारांदरी बाग अपने नुक्कड़ और सारस का एक शो पेश करता है. जब युवाओं के हाथ भी ठंड से कांप रहे होते हैं तो परिवार की मनाही के बावजूद वे अपनी मंडली लेकर नाटक का निर्देशन और एक्टिंग करते हैं. प्राण सभरवाल भाग्यशाली हैं कि उनकी पत्नी सुनीता सभरवाल स्वयं एक्टिंग के लिए उनका समर्थन करती हैं. प्यार और जुनून में उम्र और जाति कोई अर्थ नहीं रखती. इश्क़ चाहे जिस्मानी हो या रूहानी, आदमी दीवाना हो जाता है. किसी के रोकने पर भी नहीं रुकता. एक तरह से आदमी प्यार में पागल हो जाता है. उसे किसी बात की परवाह नहीं है. सपनों की दुनिया में चक्र चलता रहता है. ऐसे ही एक अदाकार हैं प्राण, जिन्हें न तो जेठ हार की गर्मी की परवाह है और न ही पोह माघ की सर्दी की. वह हर समय सिनेमाघर का सपना देखता है. 1951 में उन्होंने ऑल इण्डिया रेडियो द्वारा प्रसारित नाटकों में भाग लेना प्रारम्भ कर दिया.
1952 में पृथ्वी राज कपूर एक नाटक खेलने के लिए जालंधर आए, प्राण ने उनका नाटक देखा और उनके नाटक से बहुत प्रभावित हुए. अगले दिन लुधियाना में एक नाटक का प्रदर्शन होना था, वे उनके पीछे-पीछे लुधियाना पहुँच गये और वहाँ उनसे मिलकर निवेदन किया कि मैं आपकी नाटक मंडली में शामिल होना चाहता हूँ. पृथ्वी राज कपूर का थापारा मिल गया है. इसके बाद उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. प्राण पंजाब राज्य विद्युत बोर्ड में प्रचार पर्यवेक्षक के पद पर नियुक्त हुए और उनकी नियुक्ति पटियाला में हुई. इसके बाद वे 1967 में पंजाबी विश्वविद्यालय, पटियाला के भाषण एवं नाटक विभाग में प्रतिनियुक्ति पर चले गये और 1970 तक वहीं रहे.
प्राण एक ऐसे शख्स हैं, जो ऑफिस और पारिवारिक जिम्मेदारियों के बाद जीवन भर सिनेमाघर के प्रति समर्पित रहे. वे हमेशा नाटकों के बारे में सोचते रहते हैं. प्राण सामाजिक अन्याय से जुड़े छोटे से छोटे विषय को भी नाटकीय बनाने में रुचि रखते हैं. उनमें कोई अहंकार नहीं है. वह एक जमीन से जुड़े अदाकार हैं. उनकी एक और खूबी यह है कि वे हर महीने बस्तियों में नाटक दिखाकर विकलांगों और कुष्ठरोगियों का मनोरंजन करते हैं. उन्होंने अब तक सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध करीब 100 नाटक तैयार किये हैं और उन्हें भिन्न-भिन्न जगहों पर प्रदर्शित किया है. वह हर नाटक का निर्देशन और एक्टिंग करते हैं. उन्होंने लगभग 500 रेडियो नाटकों में भाग लिया और इतने ही नाटकों का निर्देशन भी किया है. उनकी खूबसूरती यह है कि वे छोटे मंच पर भी नाटक करते हैं. इसमें कोई अहंकार नहीं है कि नाटक बड़े मंच पर खेला जाये. वे लोग नाटककार हैं.
फिल्मों में भी काम किया
एमएस रंधावा की प्रेरणा से 1953 में 23 वर्ष की उम्र में जालंधर में नेशनल सिनेमाघर आर्ट्स सोसाइटी की स्थापना की गई थी. उनकी संस्था ने हिंदुस्तान गवर्नमेंट और पंजाब गवर्नमेंट के योगदान से पंजाब के गाँवों में नाटकों का मंचन किया. उन्होंने 10 पंजाबी फीचर फिल्मों में काम किया, जिनमें से 3 फिल्मों ‘शहीद उधम सिंह’, ‘चान परदेसी’ और ‘मढ़ी दा दीवा’ ने राष्ट्रीय पुरस्कार जीते. उन्होंने देश-विदेश में 3500 कार्यक्रमों में हिस्सा लिया. प्राण सभरवाल ने एक से अधिक संगठनों में काम किया. वह पिछले 20 वर्षों से बारांदरी बाग, पटियाला में लगातार सिनेमाघर कर रहे हैं.
जालंधर जिले में जन्मे लोगों की मौत
प्राण सभरवाल का जन्म 9 दिसंबर 1930 को नूरमहल जिला जालंधर में मुंशी राम सभरवाल और माता स्वर्ण दाई के घर हुआ था. प्राण ने अपनी प्राथमिक शिक्षा जालंधर से ही प्राप्त की. इसके बाद उन्होंने पंजाब यूनिवर्सिटी, चंडीगढ़ से ग्रेजुएशन किया. साल 1962 में उनका परिवार पटियाला में आकर बस गया.