आखिरी समय में जिन्ना ने माना पाक को सबसे बड़ी भूल

23 मार्च 1940, यह दिन उपमहाद्वीप के इतिहास में एक ऐसे दिन के तौर पर याद किया जाता है, जिस दिन पाक के लिए मुकद्दर लिखा गया था. भारत से अलग मुसलमानों के लिए अलग देश पाक की मांग के लिए मुसलमान लीग के नेता अपना झंडा बुलंद किया था. अलग पाक की मांग को लेकर एक दशक तक नेताओं ने टेबलों पर राजनीतिक लड़ाई लड़ी और जमीन पर लोगों ने खूनी होली खेली. ‘डायरेक्ट एक्शन डे’ के नाम पर जिस सियासतदान के कहने पर कलकत्ता (अब कोलकाता) में हजारों लोगों के खूब बहा, और जब उसकी मृत्यु आई तो अपने अंतिम समय में पाक को जीवन की सबसे बड़ी भूल बता गया.
आखिरी समय में जिन्ना ने माना पाक को सबसे बड़ी भूल
जी हां, हम बात कर रहे हैं मोहम्मद अली जिन्ना जो भारत से अलग पाक बनाने के लिए झंडाबरदार रहे. अपने जवानी के दिनों में सूट बूट टाई वाले बैरिस्टर साहब घोर नास्तिक हुआ करते थे लेकिन जैसे-जैसे वह अपनी मृत्यु के करीब पहुंचे उन्हें मुसलमानों का भलाई सताने लगा. जिस शख्स की राजनीति के आरी किनारी हजारों-लाखों लोगों की भीड़ जमा हो जाती थी थी उसका अंत एकदम गुमनामी में हुआ. अपने आखिरी दिनों में जिन्ना एक हताश और निराश आदमी की जीवन जी रहे थे. पाक के बनने के 13 महीने भी नहीं बीते थे कि रोग से ग्रसित जिन्ना ने दुनिया को अलविदा कह दिया और दुनिया से जाते समय उन्होंने ऐसी बात कह दी जिसका इल्म उन्हें अपनी जीवन रहते हुए होता तो, शायद आज इतिहास की पुस्तकों में कुछ और ही लिखा होता.
जिन्ना के अंतिम समय में उनके तीमारदार लेफनिनेंट कर्नल चिकित्सक इलाही बख्श ने यह बात अपनी डायरी (With the Quaid-i-Azam During His Last Days) में लिखी थी. इस डायरी का हवाला देते हुए कई पुस्तकों को शक्ल दी जो आज पाक में बैन हैं. जिन्ना के विचारों के इतर हिंदुस्तान के नेताओं ने एक सेक्युलर देश बनाकर जिन्ना से अलग एक आदर्श राष्ट्र की नींव रखी थी, मगर जिन्ना अपनी दलीलों और मनमानियों से इन सभी विचारों का खारिज करते आए. पाक को शक्ल देना प्रारम्भ किया.
शुरुआती दिनों में थे हिंदू मुसलमान एकता के पैरोकार
इसमें संदेह नहीं कि आज जिन्ना की छवि एक कट्टरवादी नेता की है जिसने हिंदुस्तान विभाजन कराने का ‘गुनाह’ किया. मगर अपने शुरुआती दिनों में जिन्ना की छवि बिल्कुल उलट थी. वे प्रखर राष्ट्रवादी माने जाते थे और हिंदुस्तान कोकिला सरोजिनी नायडू तो उन्हें हिंदू मुसलमान एकता का प्रतीक कहकर बुलाती थीं. वे महात्मा गांधी के गुरु भाई थे. महात्मा गांधी की ही तरह वह गोपाल कृष्ण गोखले के शिष्य थे. ऐसा बताया जाता है कि गोखले के कहने पर ही उन्होंने 1913 में लंदन में मुसलमान लीग की सदस्यता ली थी. शुरुआती दिनों में पाक की मांग उनका मकसद नहीं था. उनका मकसद था मुसलमान लीग को कांग्रेस पार्टी के करीब लाकर राष्ट्रीय आंदोलन को गति देना.
यह इतिहास की विडंबना ही है कि ऐसा राष्ट्रवादी नेता का अंत में मजहबी देश बनाने के लिए ‘डायरेक्ट एक्शन’ जैसे खूनी खेल तक पहुंच जाएगा. इसके बाद वह पाक को एक धर्मनिरपेक्ष देश बनाने का स्वप्न भी देखे तो इसका कोई अर्थ नहीं रह जाता. नफरत की बुनियाद पर बने देश का वही हो सकता था जो आज वहां हो रहा है. आज पाक दिवस के दिन पर जिन्ना का पाक तंगहाली और सियासी तानाशाही झेल रहा है. गले तक ऋण में डूबे पाक कटोरा लेकर अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर भीख मांग रहा है.
गुमनामी में हुई मौत
आखिरी समय में मोहम्मद अली जिन्ना गुमनामी की जीवन जीते नजर आए. जिस जिन्ना ने पाक के लिए अपनी जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ी, अंतिम समय में पाक ने ही उनका साथ छोड़ दिया. कहते हैं अंतिम समय में आदमी सबसे अधिक ठीक होता है. अपनी जीवन के अंतिम दौर में उन्हें इस बात का इल्म हुआ और उन्होंने बोला कि पाक उनकी जीवन की सबसे बड़ी भूल थी.