अमेरिका की बादशाहत तोड़ पश्चिमी देशों का विकल्प बनना चाह रहा चीन

लंबे समय से दुनिया पर पश्चिमी राष्ट्रों की बादशाहत चली आ रही है, लेकिन चीन अब अमेरिका और पश्चिमी राष्ट्रों की इस सुप्रीमेसी को तोड़ना चाहता है. चीन पश्चिमी राष्ट्रों का विकल्प बनने के लिए मध्य एशिया में तेजी से अपनी पैठ बढ़ाने में जुटा है. इसका एक प्रमाण यह भी है कि जब जापान में ‘ग्रुप ऑफ सेवन’ (जी7) राष्ट्रों के नेता हाल में हुए शिखर सम्मेलन की जब तैयारी कर रहे थे, उसी समय चीन के राष्ट्रपति शी चिनफिंग ने मध्य एशियाई राष्ट्रों कजाखस्तान, किर्गिस्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उजबेकिस्तान के अपने समकक्षों से मुलाकात की. अमेरिका नीत उदारवादी प्रबंध का एक ऐसा विकल्प बनने की चीन की कोशिशों के लिए मध्य एशिया अहम है, जिसमें निर्विवाद रूप से चीन का प्रभुत्व हो.
शी ने मध्य एशिया राष्ट्रों के समकक्षों के साथ बैठक के दौरान ‘‘साझा भविष्य के साथ चीन-मध्य एशिया समुदाय के नजरिए’’ को रेखांकित किया, जो आपसी सहायता, साझा विकास, अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा और स्थायी मित्रता के चार सिद्धांतों पर निर्भर होगा. हालांकि चीन और मध्य एशिया के बीच संबंधों को अकसर सुरक्षा एवं विकास के संदर्भ में देखा जाता है, लेकिन इसका सियासी पहलू भी है, जो शिआन में हुए शिखर सम्मेलन में की गई और क्षेत्रीय योगदान करने की पहल से नजर आता है. ये पहल चीनी मंत्रालयों एवं सरकारी एजेंसियों और मध्य एशिया में उनके समकक्षों के बीच संबंध बनाने, शैक्षणिक एवं सांस्कृतिक आदान-प्रदान बढ़ाने और मध्य एशिया-चीन व्यापार परिषद जैसे तंत्र पैदा करने का प्रस्ताव रखती हैं. इससे क्षेत्र में चीन की किरदार और मजबूत होने की आसार है.
चीन इस तरह बढ़ा रहा दायरा
इसके बदले में, चीन मध्य एशिया के अधिकांश सत्तावादी नेताओं को लोकतांत्रिक प्रबंध की ओर ले जाने की प्रयास करने वाले पश्चिमी राष्ट्रों के आर्थिक एवं सियासी दबाव से दूर रखने का काम करेगा और किसी भी प्रकार के रूसी दुस्साहस से उनकी संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा करेगा. शिखर सम्मेलन की उपलब्धियां शिखर सम्मेलन के दौरान 54 समझौते हुए, 19 नए योगदान तंत्र एवं मंच बनाए गए और शिआन घोषणा पत्र सहित नौ बहुपक्षीय डॉक्यूमेंट्स तैयार किए गए. ऐतिहासिक रूप से, रूस मध्य एशिया का मुख्य साझेदार रहा है, लेकिन वह अब मध्य एशिया में चीनी निवेश और निर्माण अनुबंधों का मुकाबला नहीं कर सकता, जो 2005 के बाद से लगभग 70 अरब $ है. रूस से चीन के हाथ में कमान आना चीन की अंतरराष्ट्रीय ‘बेल्ट एंड रोड’ पहल की तुलना में रूस की क्षेत्रीय एकीकरण परियोजना – ‘यूरेशियन इकोनॉमिक यूनियन’ के घटते महत्व से चीन की ओर झुकाव दिखाई देता है. अवसंरचना निवेश का ‘बेल्ट एंड रोड’ कार्यक्रम 2013 में कजाखस्तान में शी ने प्रारम्भ किया था और तब से यह क्षेत्र न सिर्फ आर्थिक रूप से, बल्कि सियासी रूप से भी चीन के करीब आ गया है.
चीन की चाल से अमेरिका को चिंता
यूक्रेन युद्ध संबंधी प्रतिबंधों के परिणामस्वरूप रूसी ‘‘उत्तरी गलियारा’’ अब काफी हद तक बंद है, ऐसे में ‘मध्य गलियारा’ बोला जाने वाला मार्ग न सिर्फ चीन के लिए बल्कि जी7 राष्ट्रों के लिए भी जरूरी हो गया है. मध्य गलियारा तुर्की में प्रारम्भ होता है और जॉर्जिया एवं मध्य एशिया से गुजरता है. अफगानिस्तान की किरदार समान भू-राजनीतिक महत्व वाला एक अन्य विकल्प अफगानिस्तान के जरिए पाकिस्तानी बंदरगाह ग्वादर के माध्यम से अरब सागर तक परिवहन है. लंबी अवधि में, अफगानिस्तान से गुजरने वाला मार्ग चीन और मध्य एशिया दोनों के भलाई में है. यह अफगानिस्तान में स्थिरता और सुरक्षा में सहयोग देगा (लेकिन इस पर निर्भर भी करेगा). पांच मध्य एशियाई राष्ट्रों के राष्ट्रपतियों ने जिस उत्साह के साथ इन पहलों का स्वागत किया है, वह यह दर्शाता है कि वे चीन के निकट जाने के कितने इच्छुक हैं. बहरहाल, यह देखना होगा कि यह दृष्टिकोण क्षेत्र में चीन विरोधी भावना के मद्देनजर कितना टिकाऊ या लोकप्रिय होगा.