चीनी षडयंत्र से अमेरिका तक परेशान
China seeking Control Pak Media: चीन अपने विरुद्ध विदेशी मीडिया में हो रही रोज-रोज की आलोचनाओं से बौखला गया है। आलम यह है कि वह पाकिस्तानी मीडिया पर अब अपना कंट्रोल चाहता है ताकि हिंदुस्तान समेत कई पड़ोसी राष्ट्रों को उत्तर दिया जा सके। अमेरिका की एक आधिकारिक रिपोर्ट में बोला गया है कि चीन ने मीडिया पर अपनी पकड़ बनाने के लिए अंतर्राष्ट्रीय अभियानों का एक जाल विकसित किया है और वह पाकिस्तानी मीडिया पर जरूरी नियंत्रण हासिल करना चाहता है। चीनी षडयंत्र से अमेरिका तक परेशान है।
अमेरिकी विदेश विभाग ने पिछले हफ्ते जारी रिपोर्ट में बोला है कि चीन सूचना क्षेत्र में रूस के साथ मिलकर काम कर रहा है। इसके अलावा, चीन अपने विरुद्ध निगेटिव नैरेटिव का मुकाबला करने के लिए अन्य करीबी साझेदारों को साथ लाने की कोशिशों में जुटा है। रिपोर्ट में बोला गया है कि इस मुहिम में चीन की नजर प्रमुख सहयोगी पाक पर है। रिपोर्ट में बोला गया है कि बीजिंग ने पाक से ‘दुष्प्रचार से निपटने’ में सहयोग करने को बोला है, जिसमें चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) मीडिया फोरम भी शामिल है।
रिपोर्ट में बोला गया है कि बीजिंग और इस्लामाबाद CPEC मीडिया फोरम का इस्तेमाल प्रोपेगेंडा और “दुर्भावनापूर्ण दुष्प्रचार” से निपटने के लिए करते हैं। इसके लिए दोनों राष्ट्रों ने “सीपीईसी रैपिड रिस्पांस इंफॉर्मेशन नेटवर्क” जैसी पहल प्रारम्भ की है और हाल ही में, चीन-पाकिस्तान मीडिया कॉरिडोर (CPMC) प्रारम्भ करने का वादा किया है।
अमेरिकी विदेश विभाग की रिपोर्ट के अनुसार, चीन ने चीन-पाकिस्तान मीडिया कॉरिडोर के हिस्से के रूप में पाकिस्तानी मीडिया पर जरूरी नियंत्रण हासिल करने के लिए बातचीत की मांग की है, जिसमें पाक के सूचना प्रणाली की नज़र और उसे बड़ा आकार देने के लिए संयुक्त रूप से संचालित “नर्व सेंटर” की स्थापना शामिल है। रिपोर्ट में बोला गया है कि उस प्रस्ताव पर इस्लामाबाद ने गंभीरता से विचार नहीं किया। उसमें यह बात उभरकर सामने आई थी कि चीन ने प्रस्ताव में जिन तंत्रों का विवरण दिया है, वे बीजिंग को असमान रूप से फायदा पहुंचाते हैं। रिपोर्ट में बोला गया है कि यह एक करीबी साझेदार के घरेलू सूचना तंत्र पर प्रत्यक्ष नियंत्रण हासिल करने का बीजिंग की महत्वाकांक्षा का साफ उदाहरण है।
चीन द्वारा तैयार मसौदे में चीन और पाक सरकारों से एक ज्वाइंट ‘नर्व सेंटर’ स्थापित करने का आह्वान किया गया है, ताकि थिंक टैंक, ओपिनियन लीडर्स, सीपीईसी स्टडी सेंटर्स, मीडिया संगठनों, चीनी कंपनियों और यहां तक कि क्षेत्रीय कन्फ्यूशियस संस्थानों से इनपुट प्राप्त किया जा सके और उसे वहां सुव्यवस्थित कर संयुक्त रूप से सूचना तंत्र की नज़र की जा सके।
चीनी मसौदे में क्या?: अमेरिकी रिपोर्ट के मुताबिक, चीन के उस ड्राफ्ट में बोला गया है कि प्रस्तावित मिशन को पूरा करने के लिए “तीन तंत्र” और “दो प्लेटफार्मों” पर निर्भर रहना होगा। सूचना तंत्र इस तरह से बनाया जाएगा, जिसमें नामी लेखकों के ओपिनियन्स को उर्दू में रूपांतरित करने के साधन होंगे और चीनी दूतावास की रिपोर्ट सीधे पाक के अधिकारी को प्रेस विज्ञप्ति प्रणाली के जरिए दी जाएगी। इसके अतिरिक्त चीनी गणतंत्र के विरुद्ध किसी भी तरह की सार्वजनिक निंदा की नज़र की जाएगी और उसका उत्तर दिया जाएगा। प्रस्ताव में यह भी बोला गया है कि दोनों प्रस्तावित प्लेटफार्म “अफवाहें दूर करने” के लिए एक संयुक्त आधिकारिक प्रणाली विकसित करेंगे और क्षेत्रीय बाजार में समाचारों को बढ़ावा देने के लिए एक समाचार फ़ीड एप्लिकेशन बनाएंगे।
चीन का मकसद क्या?
अपनी रिपोर्ट में अमेरिकी विदेश विभाग ने इल्जाम लगाया है कि चीन विदेशी सूचना हेरफेर प्रयासों पर सालाना अरबों $ खर्च करता है। चीन और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के सकारात्मक विचारों को बढ़ावा देने के लिए बीजिंग झूठी या पक्षपातपूर्ण जानकारी का इस्तेमाल करता है। इसके साथ ही, चीन उन जरूरी सूचनाओं को भी दबाता है जो ताइवान, उसके मानवाधिकार प्रथाओं, दक्षिण चीन सागर, उसकी घरेलू अर्थव्यवस्था और अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक जुड़ाव जैसे मुद्दों पर उसके वांछित कथनों का खंडन करती हैं।
रिपोर्ट में बोला गया है कि मोटे तौर पर, चीन एक अंतरराष्ट्रीय प्रोत्साहन संरचना विकसित करना और उसे कायम रखना चाहता है जो विदेशी सरकारों, अभिजात वर्ग, पत्रकारों और नागरिक समाज को उसके पसंदीदा नैरेटिव को स्वीकार करने में सहायता करे और चीन की निंदा करने से बचाने में वह तंत्र सहायता कर सके।
चीन में मीडिया पर पहरेदारी पुरानी परंपरा
चीन में मीडिया पर प्रतिबंधों का लंबा इतिहास रहा है। वहां अभी भी औनलाइन सेंसरशिप है। इसी वर्ष चीन ने 10 लाख से अधिक सोशल मीडिया पोस्ट पर कार्रवाई की थी। इनमें से 66000 यूजर्स के एकाउंट को हमेशा के लिए बंद कर दिया गया था। तब चीन के साइबरस्पेस नियामक ने एक बयान में बोला था कि ऑफिसरों ने मार्च में प्रारम्भ हुए अभियान में 66,000 अकाउंट्स पर स्थायी रूप से प्रतिबंध लगा दिया और 928,000 अन्य पर कार्रवाई की है। उन अकाउंट्स के जरिए चीन ने 22 मई तक कुल 14 लाख से अधिक औनलाइन पोस्ट पर भी कार्रवाई की थी। 1994 में जब इंटरनेट लॉन्च हुआ था तब चीन में इस पर किसी भी तरह का सेंसर नहीं था लेकिन 1997 में गोल्डन शील्ड प्रोजेक्ट की आरंभ के साथ ही चीन में इंटरनेट का पूरा खाका बदल दिया गया।
चीन में प्रकाशनों पर नज़र रखने के लिए ‘द रेगुलेशन ऑन एडमिनिस्ट्रेशन ऑफ पब्लिकेशंस’ है, जबकि औनलाइन सामग्रियों, न्यूज मीडिया और टेलीविजन प्रसारण आदि पर नजर रखने के लिए दूसरी नियामक संस्थाएं हैं। ये अनेक संस्थाएं चीनी संविधान के चार मूलभूत सिद्धांतों के हिसाब से प्रेस और मीडिया के क्रियाकलापों पर रोक लगाती हैं।