अंतर्राष्ट्रीय

दक्षिण पूर्व एशिया के छह देशों में किए गए एक हालिया सर्वेक्षण मे धर्म का महत्व सबसे आगे

प्यू रिसर्च सेंटर द्वारा जून और सितंबर 2022 के बीच दक्षिण पूर्व एशिया के छह राष्ट्रों में किए गए एक हालिया सर्वेक्षण में, राष्ट्रीय पहचान को आकार देने में धर्म का महत्व सबसे आगे आया है. सर्वेक्षण, जिसमें थाईलैंड, श्रीलंका, कंबोडिया, मलेशिया, इंडोनेशिया और सिंगापुर में 13,122 वयस्कों का इंटरव्यू लिया गया, क्षेत्र में धर्म और राष्ट्रीय पहचान के बीच अंतरसंबंध में मूल्यवान अंतर्दृष्टि प्रदान करता है.

बौद्ध धर्म, थाईलैंड, श्रीलंका और कंबोडिया में एक प्रमुख आस्था है, इन राष्ट्रों में राष्ट्रीय पहचान की आधारशिला के रूप में उभरती है. उल्लेखनीय रूप से, इन राष्ट्रों में 90% से अधिक बौद्धों ने व्यक्त किया कि बौद्ध होना उनके संबंधित देशों का सच्चा हिस्सा बनने के लिए जरूरी है. कंबोडिया में आश्चर्यजनक रूप से 97% बौद्ध इस भावना को साझा करते हैं, इसके बाद श्रीलंका में 95% और थाईलैंड में 91% हैं.

इसी तरह, मुस्लिम-बहुल राष्ट्रों मलेशिया और इंडोनेशिया में, सर्वेक्षण से पता चलता है कि किसी की राष्ट्रीय पहचान के लिए मुसलमान होने का महत्व समान रूप से अधिक है, लगभग सभी मुसलमान इस संबंध पर बल देते हैं. विशेष रूप से, 75% मलेशियाई और 77% इंडोनेशियाई इस्लाम को न सिर्फ़ एक धर्म मानते हैं, बल्कि एक ‘जातीयता’ या ‘संस्कृति’ भी मानते हैं, जिसमें किसी का जन्म होता है या उसे पारिवारिक परंपरा के रूप में पालन करना चाहिए.

मलेशिया, सिंगापुर और श्रीलंका में धार्मिक विविधता का उत्सव मनाया जाता है, जहां अधिकतर उत्तरदाताओं का मानना ​​है कि विभिन्न प्रकार की पृष्ठभूमि उनके राष्ट्रों को समृद्ध बनाती है. केवल एक छोटा सा अल्पसंख्यक (6% या उससे कम) इसे नकारात्मक रूप से देखता है. इसके अलावा, सभी सर्वेक्षण किए गए राष्ट्रों में विभिन्न धार्मिक पृष्ठभूमि वाले पड़ोसियों की गौरतलब स्वीकार्यता है, जो धार्मिक सहिष्णुता की डिग्री को दर्शाती है.

हालाँकि, इस स्वीकृति के साथ-साथ, सर्वेक्षण से इन राष्ट्रों में प्रचलित सांस्कृतिक श्रेष्ठता की मजबूत भावना का पता चलता है. बोर्ड भर में साफ बहुमत अपनी संस्कृतियों की श्रेष्ठता में विश्वास करते हैं. उदाहरण के लिए, 93% कम्बोडियन, 92% श्रीलंकाई, 91% मलेशियाई, 89% इंडोनेशियाई, 76% थाई और 61% सिंगापुर वासियों ने यह विश्वास व्यक्त किया. दिलचस्प बात यह है कि जो लोग धर्म को अपने जीवन में बहुत जरूरी मानते हैं, वे सांस्कृतिक श्रेष्ठता के विचार का समर्थन करने की अधिक आसार रखते हैं.

सर्वेक्षण में राष्ट्रीय कानूनों पर धर्म का असर भी एक जरूरी विषय के रूप में उभर कर सामने आया है. सर्वेक्षण में शामिल बौद्ध-बहुल राष्ट्रों में, अधिकतर बौद्धों का मानना ​​है कि उनके कानून धार्मिक शिक्षाओं पर आधारित होने चाहिए. उल्लेखनीय है कि 96% कम्बोडियन बौद्ध बौद्ध धर्म पर कम्बोडियन कानून को आधारित करने का समर्थन करते हैं, जबकि 86% श्रीलंकाई बौद्ध इस विश्वास को साझा करते हैं. थाईलैंड में, 56% बौद्ध बौद्ध धर्म में निहित राष्ट्रीय कानूनों के पक्ष में हैं.

इसके विपरीत, इंडोनेशिया, मलेशिया और सिंगापुर में, जहां बौद्ध बहुसंख्यक नहीं हैं, बौद्ध शिक्षाओं पर आधारित कानूनों के लिए समर्थन काफी कम है, 43% मलेशियाई बौद्ध और 39% सिंगापुरी बौद्ध इसके पक्ष में हैं. मलेशिया और इंडोनेशिया के मुस्लिम-बहुल राष्ट्रों में, सर्वेक्षण शरिया कानून लागू करने के लिए जरूरी समर्थन का संकेत देता है, मलेशिया में 86% और इंडोनेशिया में 64% इसकी स्थापना का समर्थन करते हैं. संक्षेप में, प्यू सर्वेक्षण राष्ट्रीय पहचान पर धर्म के गहरे असर और पूरे दक्षिण पूर्व एशिया में सांस्कृतिक श्रेष्ठता और कानूनी ढांचे के प्रति दृष्टिकोण को आकार देने में इसकी किरदार को रेखांकित करता है.

 

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