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नवाज शरीफ की वतन वापसी न केवल पाकिस्तान की राजनीति के लिए है एक नया चैप्टर

Pakistan Political Situation:  पाक में तीन बार के पीएम रहे और पाक मुसलमान लीग-नवाज (PML-N) के चीफ नवाज शरीफ आखिरकार चार वर्ष का आत्म-निर्वासन समाप्त कर 21 अक्टूबर को वतन वापस लौट आए कई महीनों से पाक में उनकी वतन वापसी की अटकलें लगाई जा रही थीं अटकलें ये भी थीं कि यदि वो पाक आते हैं तो उन्हें तुरंत अरैस्ट कर लिया जाएगा और कारावास भेज दिया जाएगा लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ  ना तो न्यायपालिका के किसी नुमाइंदे ने और ना ही कार्यपालिका यानी प्रशासन की तरफ से उनकी गिरफ्तारी की बात की और ना ही किसी ने उनके विरुद्ध लंबित मुकदमों पर अदालतों में अपील की

दरअसल, उनके बारे में राजनीतिक गलियारों में चल रही अटकलें कई चीजों पर निर्भर थीं पहली तो इसके पीछे पाक की सियासी परिस्थितियाँ उत्तरदायी हैं, जिसमें यह तय नहीं हो पा रहा था कि वहां चुनाव होंगे या नहीं, या सेना द्वारा ही लंबे समय तक कार्यवाहक प्रबंध चलाई जाएगी? दूसरा, यदि नवाज वापस लौटते हैं तो उन्हें किस तरह की न्यायिक प्रबंध का सामना करना पड़ेगा? वह अपनी वापसी का समय चीफ जस्टिस उमर अता बंदियाल के रिटायरमेंट के बाद तय करना चाहते थे

नए चीफ जस्टिस का हाथ शरीफ के साथ?
माना जाता है कि बंदियाल का इमरान खान के पक्ष में झुकाव रहा है लेकिन नए चीफ जस्टिस फ़ैज़ ईसा को नवाज़ शरीफ के लिए सुरक्षित माना गया है ईसा को इमरान खान या सेना के पिछलग्गू के रूप में नहीं देखा जाता है तीसरा कारक यह था कि उन्हें वतन वापसी के बाद कौन-सी शर्तें माननी पड़ेंगी? यह साफ नहीं था यह नवाज की पर्सनल सुरक्षा और स्वतंत्रता की गारंटी के साथ-साथ उनके सियासी खेल और राजनीतिक पिच के लिए काफी जरूरी था

नई सियासी इंजीनियरिंग
जियो न्यूज को लिखे एक आलेख में पूर्व राजनयिक हुसैन हक्कानी ने बोला है कि नवाज की वापसी पर पूरे पाक की खामोशी एक तरह से इस बात का भी इशारा और स्वीकारोक्ति के समान है कि 2017 में उन्हें पद से हटाया जाना एक राजनीतिक षड्यंत्र और बड़ी कानूनी गलती थी हक्कानी के मुताबिक, निर्वासन से शरीफ की वापसी पाक की जटिल समस्याओं को हल करने के साधन के रूप में एक सियासी इंजीनियरिंग के रूप में लिया जा सकता है

रिपोर्ट में बोला गया है कि पिछले छह सालों के दौरान नवाज शरीफ और उनके परिवार को काफी पीड़ा से गुजरना पड़ा है, साथ ही राष्ट्र को भी कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा है अब, नवाज़ शरीफ़ की वापसी पर उनके लिए वही लोग मंच सजा रहे हैं जिन्होंने उनकी गैर मौजूदगी में सियासी विकल्प देने की प्रयास की थी बेशक, ऐसा करने का तात्कालिक कारण दूसरे नेताओं को किनारे करना रहा होगा लेकिन पिछले 35 सालों की सियासी उथल-पुथल के बीच एक लोकप्रिय नेता को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है इस लिहाज से नवाज शरीफ आज पाक की एक राजनीतिक विवशता बनते दिख रहे हैं

बेनजीर भुट्टो को हटाकर बने थे प्रधानमंत्री
1990 में नवाज शरीफ को पीएम पद पर बैठाने के लिए बेनजीर भुट्टो को सत्ता से हटा दिया गया था, लेकिन 1993 में बेनजीर भुट्टो ने फिर सत्ता कब्जा ली थी 1996 में फिर बेनजीर भुट्टो के हटने के बाद 1997 में नवाज शरीफ पीएम बने लेकिन जनरल परवेज मुशर्रफ ने 1999 में सेना तख्तापलट कर शरीफ को पद से हटा दिया  करीब एक दशक से अधिक समय तक दोनों नेता बारी-बारी से पाक का अगुवाई करते रहे इस आधार पर दोनों नेताओं के बीच एक गहरी समझ बन पड़ी थी दोनों ने 2006 में चार्टर ऑफ डेमोक्रेसी पर हस्ताक्षर किए थे 2007 तक मुशर्रफ को बेनजीर भुट्टो के साथ सुलह तक करनी पड़ गई थी

भ्रष्टाचार के इल्जाम में गंवाई कुर्सी, गए जेल
2007 में बेनजीर भुट्टो की चुनाव प्रचार के दौरान मर्डर कर दी गई इसके बाद 2008 के चुनावों में उनकी पार्टी को जीत मिली 2013 में नवाज शरीफ फिर से चुनकर आए और पीएम बने लेकिन 2017 में करप्शन के आरोपों में उन्हें कुर्सी छोड़नी पड़ी उन्हें कारावास जाना पड़ा फिर 2019 में वो लंदन में जाकर निर्वासित जीवन बिताने लगे अब जब उनके धुर विरोधी पूर्व पीएम इमरान खान कारावास में बंद हैं तो उनकी वापसी से उनके समर्थकों में नया उत्साह पैदा हो गया है अब पाक में यह आशा भी जग चुकी है कि जुलाई 2023 में होने वाले चुनाव 2024 के आरंभ में हो सकेंगे

तकनीकि तौर पर शरीफ नहीं नवाज
वैसे कानूनी और तकनीकी तौर पर नवाज शरीफ पाकिस्तानी कानून की नजर में भगोड़े हैं, फिर भी, उन्हें प्रतीक्षारत प्रधान मंत्री का प्रोटोकॉल प्राप्त हुआ है यह संभवत: पाकिस्तानी सेना द्वारा उनकी वापसी की अनुमति देने की वजह से ही संभव हो सका है पाक सेना के लिए यह कोई बड़ी बात नहीं है सेना ने उनके लिए सभी दरवाजे खोल दिए हैं यहां तक ​​कि सुप्रीम कोर्ट, जिसने 2017 में उनका न्यायिक तख्तापलट कर सत्ता से बेदखल कर दिया था, भी शरीफ की वापसी को समायोजित करने के लिए तैयार हो गई हैं इसी वजह से शरीफ के पाक लौटने पर उन्हें अरैस्ट नहीं किया गया

पाक सेना की मौन सहमति, चौथी बार बैटिंग
एक तरह से देखें तो नवाज शरीफ की वतन वापसी न सिर्फ़ पाक की राजनीति के लिए एक नया चैप्टर है बल्कि 2017 के बाद  पाकिस्तान की राजनीति में उनकी पुनर्वापसी का भी प्रतीक है साथ ही पाक सेना की भी पसंद हैं वह 1980 के दशक में पाकिस्तानी सेना के पसंदीदा बच्चे हुआ करते थे उन्होंने अपने सियासी करियर की आरंभ सेना के पूर्ण समर्थन से की थी, जब बेनजीर भुट्टो के विरुद्ध सेना ने उन्हें अपने आदमी के रूप में आगे बढ़ाया था तब 1990 में शरीफ पहली बार पीएम बने थे लेकिन इस बार शायद वह चौथी और आखिरी बार प्रधान मंत्री बनने के लिए कदमताल कर रहे हैं, जिसमें सेना का छुपा योगदान भी शामिल है

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