पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के उत्पीड़न का किस्सा पुराना
पाकिस्तान में अहमदिया मुसलमानों के उत्पीड़न का किस्सा पुराना है। वहां उसे बेधर्मी माना जाता रहा है। लिहाजा, उनकी मस्जिदों, संपत्तियों पर हमले होते रहे हैं। पाक में ऐसे अहमदिया मुसलमानों की संख्या करीब 40 लाख है। बाद में उत्पीड़न का सिलसिला शिया मुस्लिमों तक जा पहुंचा और अब बरेलवी मुस्लिम भी इसकी जद में आ चुके हैं। पिछले ही महीने 29 सितंबर को बलूचिस्तान के मस्तुंग जिले में एक आत्मघाती हमलावर ने 12वें रबीउल अव्वल जुलूस की तैयारियों में जुटी भीड़ को निशाना बनाया, जिसमें 55 लोगों की मृत्यु हो गई, जबकि 120 से अधिक लोग घायल हो गए।
पाकिस्तान के प्रसिद्ध अखबार ‘डॉन’ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यह धावा एक परिवर्तन का संकेत देता है कि कैसे बरेलवी समुदाय को अब निशाना बनाया जा रहा है। बलूचिस्तान में आतंकी समूहों ने ऐतिहासिक रूप से शिया समुदाय और उनके मुहर्रम जुलूसों को निशाना बनाया था लेकिन 12वें रबीउल अव्वल जुलूस को अबतक निशाना नहीं बनाया गया था। हालांकि, इस हमले की जिम्मेदारी किसी खास आतंकवादी समूह ने नहीं ली है लेकिन सुरक्षा ऑफिसरों और जानकारों का मानना है कि इस हमले के पीछे आतंकी समूह इस्लामिक स्टेट (IS) का हाथ है। तालिबान से खार खाए IS अब बलूचिस्तान के कई इलाकों में कहर बरपा रहा है।
इस्लामिक स्टेट ने बदली रणनीति
बरेलवी पर हमलों की षड्यंत्र की कड़ी इससे भी जोड़कर देखा जा रहा है कि मस्तुंग जिले में हाल ही में आतंकवादी संगठन आईएस के दो क्षेत्रीय आतंकवादी सहयोगी समूहों- इस्लामिक स्टेट इन खुरासान प्रोविंस (ISKP) और इस्लामिक स्टेट इन पाक प्रोविंस (ISPP) से जुड़ी कई आतंकवादी घटनाएं देखी गई हैं। पाकिस्तानी खुफिया अधिकारी के हवाले से अखबार ने लिखा है कि मस्तुंग में आईएस से जुड़े समूहों ने अपनी रणनीति में परिवर्तन किया है और वे अब लंबे अंतराल पर धावा करने के बजाय, जल्दी-जल्दी हमले करने लगे हैं।
जुलूस पर हमले से ठीक 15 दिन पहले आईएस आतंकवादियों ने 14 सितंबर को मस्तुंग जिले के जोटो क्षेत्र में एक इस्लामी सियासी दल जमीयत-ए-उलेमा इस्लाम-फज़ल (जेयूआई-एफ) के काफिले को बमों से निशाना बनाया था और उस हमले की जिम्मेदारी ली थी। इस हमले में पार्टी के पूर्व सीनेटर हाफिज हमदुल्ला समेत 11 लोग घायल हो गए थे। इस समूह ने अगस्त और सितंबर में हुए तीन अन्य धमाकों और हमलों की भी जिम्मेदारी ली थी।
अल्पसंख्यक हैं सॉफ्ट टारगेट
अखबार ने इस्लामाबाद स्थित सुरक्षा विश्लेषक मुहम्मद अमीर राणा के हवाले से लिखा है कि आईएस के क्षेत्रीय सहयोगी समूहों के आतंकवादी शिया समुदायों को निशाना बनाते रहे हैं। इनके अतिरिक्त ये लोग अब बरेलवी विचारधारा के लोगों, जमात-ए-इस्लामी, गवर्नमेंट के नेताओं और समर्थकों के अतिरिक्त कानून प्रवर्तन ऑफिसरों और ज़िकरी समुदाय के अनुयायियों पर भी धावा कर रहे हैं। राणा के मुताबिक, 12वें रबीउल अव्वल जुलूस को निशाना बनाना यह दर्शाता है कि क्षेत्र में आईएस के क्षेत्रीय सहयोगी शिया, बरेलवी और ज़िकरी जैसे अल्पसंख्यक मुसलमान संप्रदायों को टारगेट कर रहे हैं और क्षेत्र में सांप्रदायिक संघर्ष भड़काने के अपने मूल एजेंडे पर काम कर रहे हैं।
राणा के अनुसार ISKP प्रमुख शहाब अल-मुहाजिर ने, अपने प्रकाशनों में बरेलवी समुदाय की निंदा करते हुए, उन्हें पाकिस्तानी राज्य के साथ संबद्ध ‘काफिरों’ के रूप में वर्णित किया है और यही वजह है कि बरेलवी उनके निशाने पर हैं। 2021 में भी ISKP ने एक बयान जारी कर तालिबान को बरेलवी (सूफियों) और सैफियों से जोड़ा था, जो पाकिस्तानी आध्यात्मिक नेता पीर सैफुर रहमान के अनुयायी थे। इस आतंकवादी समूह ने तालिबान सुप्रीमो मुल्ला हैबतुल्ला अखुंदजादा के सैफी होने की भी निंदा की थी। सैफी एक सूफी संप्रदाय है, जिसका अफगानिस्तान के साथ-साथ पाक में खैबर पख्तुनख्वा और पंजाब के कुछ हिस्सों में बड़ी संख्या में अनुयायी हैं।
बरेलवी मस्जिद और सूफी मंदिरों पर भी हमले
लिहाजा,पाकिस्तान में शियाओं के साथ-साथ बरेलवी भी आईएस के निशाने पर हैं। आईएस समूह ने हाल के दिनों में बलूचिस्तान और सिंध में सूफी मंदिरों पर भी हमले किए हैं। इनके अतिरिक्त पेशावर और मस्तुंग में बरेलवी नेताओं और परंपरा के अनुयायियों की भी मर्डर की है। उनके मस्जिदों को भी ध्वस्त किया गया है। 2006 के कराची निश्तर पार्क आत्मघाती बम विस्फोट के पीछे शिया विरोधी प्रतिबंधित समूह लश्कर-ए-जांघवी (LeJ) का हाथ था, जिसमें सुन्नी तहरीक और जमात-ए-अहले सुन्नत के शीर्ष बरेलवी नेतृत्व सहित 50 से अधिक लोग मारे गए थे।
तालिबानी कहर का साइड इफेक्ट?
दरअसल, बरेलवी और अन्य अल्पसंख्यक मुसलमान संप्रदायों, ईसाइयों और सिखों जैसे गैर-मुस्लिम अल्पसंख्यकों पर धावा करके आईएस अंतर्राष्ट्रीय ध्यान आकर्षित करना चाहता है। जानकारों का बोलना है कि पाकिस्तान, खासकर बलूचिस्तान में आईएस के हमलों में बढ़ोतरी सीधे तौर पर पड़ोसी अफगानिस्तान में आईएस पर अफगान तालिबान की कार्रवाई से जुड़ा है। पिछले दो सालों में तालिबान ने आईएस के ठिकानों पर अंधाधुन्ध हमले किए हैं। यह परिवर्तन निकट भविष्य में पाक में और अधिक हमलों की संभावना बढ़ा रहा है।