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न्यू मैक्सिको में व्हाइट सैंड्स मिसाइल रेंज के पास आकाश में अचानक दिखेगी चमकीली धारियां

वाशिंगटन/नई दिल्ली: उत्तर और दक्षिण अमेरिका के कई हिस्सों में लोग आनें वाले 14 अक्टूबर को सूरज की चमक को सामान्य चमक से लगभग 10 फीसदी तक फीकी पड़ते देखेंगे वलयाकार ग्रहण की चलते सिर्फ़ एक चमकदार आग के छल्ले से अधिक कुछ दिखाई नहीं देने वाला है, लेकिन इसी दौरान न्यू मैक्सिको में व्हाइट सैंड्स मिसाइल रेंज के पास आकाश में अचानक चमकीली धारियां भी दिखाई देने वाली हैं ये चमकीली धारियां अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नेशनल एयरोनॉटिक्स एंड स्पेस एडमिनिस्ट्रेशन (NASA) की तरफ से छोड़े जा रहे रॉकेट होंगे, जिन्हें सूर्य ग्रहण के बीच लॉन्च किया जाएगा उधर, इस घटनाक्रम में एक और बड़ी यह भी है कि नासा के इस मिशन का संचालन भरतवंशी वैज्ञानिक कर रहे हैं इस बारे में अंतरिक्ष एजेंसी ने बोला है, ‘ग्रहण पथ या एपीईपी के आसपास एटमॉसफेरिक पर्टर्बेशन नामक मिशन का नेतृत्व अरोह बड़जात्या कर रहे हैं, जो यह शोध करेगा कि सूरज की रोशनी में अचानक गिरावट हमारे ऊपरी वायुमंडल को कैसे प्रभावित करती है’

  • वायुमंडल का समुद्र तल से 48 किलोमीटर से 965 किलोमीटर ऊपर पाया जाने वाला भाग कहलाता है आयनमंडल

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नासा के मुताबिक साउंडिंग रॉकेट मिशन यह जानने के लिए तीन रॉकेट लॉन्च करेगा कि सूरज की रोशनी में अचानक गिरावट हमारे ग्रह के ऊपरी वायुमंडल को कैसे प्रभावित करती है मिशन को ग्रहण पथ या एपीईपी के आसपास वायुमंडलीय असर बोला जाता है आयनमंडल वायुमंडल का आयनित भाग है जो समुद्र तल से 48 किलोमीटर से 965 किलोमीटर ऊपर पाया जाता है यह वायुमंडल का वह हिस्सा है जहां सूर्य से यूवी विकिरण इलेक्ट्रॉनों को परमाणुओं से अलग करके आयन और इलेक्ट्रॉन बनाता है सूर्य की लगातार ऊर्जा इन कणों को, जो परस्पर आकर्षित होते हैं, पूरे दिन अलग होने से रोकती है, लेकिन जैसे ही सूर्य क्षितिज से नीचे डूबता है, वो तटस्थ परमाणुओं में पुनः संयोजित हो सकते हैं फिर सूर्योदय के समय वे एक बार फिर आयनित हो जाते हैं

2017 सूर्य ग्रहण के दौरान वायुमंडल में परिवर्तन महसूस किए गए

गौरतलब है कि 2017 के पूर्ण सूर्य ग्रहण के दौरान उत्तरी अमेरिका में ग्रहण पथ से सैकड़ों किलोमीटर बाहर उपस्थित बहुत से उपकरणों ने वायुमंडलीय परिवर्तनों का पता लगाया था रोजमर्रा में इस्तेमाल किए जाने वाले संचार उपग्रहों और ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) के साथ भी कुछ वैसा ही हुआ जहां इसकी वजह की बात है, ये सभी आयनमंडल से होकर गुजरते हैं जैसे-जैसे हम इस तरह की अंतरिक्ष-आधारित संपत्तियों पर अधिक से अधिक निर्भर होते जा रहे हैं, आयनमंडल में किसी भी गड़बड़ी को समझना और उसका मॉडल तैयार करना जरूरी है और उनका क्या असर हो सकता है

35-35 मिनट के अंतराल में छोड़े जाएंगे रॉकेट

उधर, हालिया मिशन को लीड कर रहे भारतीय मूल के वैज्ञानिक अरोह बड़जात्या (फ्लोरिडा में एम्ब्री-रिडल एरोनॉटिकल यूनिवर्सिटी में इंजीनियरिंग भौतिकी के प्रोफेसर) का बोलना है कि यदि आप आयनमंडल को एक तालाब के रूप में देखें, जिस पर कुछ मामूली लहरें हैं तो ग्रहण अचानक बह जाने वाली एक से बढ़कर कुछ भी नहीं है उन्होंने कहा कि एपीईपी टीम ने लगातार तीन रॉकेट लॉन्च करने की तैयारी की है एक क्षेत्रीय शिखर ग्रहण से 35 मिनट पहले, दूसरा शिखर ग्रहण के दौरान और तीसरा ग्रहण काल के 35 मिनट बाद लॉन्च किए जाएंगे ये तीनों वलयाकार पथ के ठीक बाहर उड़ेंगे, जहां चांद सूरज के बिल्कुल सामने से गुजरता है

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