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Chandrayaan-3: रोवर प्रज्ञान ने चंद्रमा की सतह पर आठ मीटर तय की दूरी

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-3 मिशन के रोवर ‘प्रज्ञान’ के लैंडर ‘विक्रम’ से बाहर निकलने और इसके चंद्रमा की सतह पर चलने का एक बहुत बढ़िया वीडियो शुक्रवार को जारी किया यह वीडियो लैंडर के इमेजर कैमरे ने बनाया है इसरो ने ‘एक्स’ पर यह वीडियो साझा करते हुए लिखा, ‘और चंद्रयान-3 का रोवर, लैंडर से निकल कर इस तरह चंद्रमा की सतह पर चला’ इसरो ने बोला कि चंद्रयान-3 के रोवर ‘प्रज्ञान’ ने चांद की सतह पर लगभग आठ मीटर की दूरी सफलतापूर्वक तय कर ली है इसके उपकरण सामान्य ढंग से काम कर रहे हैं

इसरो ने तस्वीर भी जारी की

इसरो ने चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर हाइ-रेजोल्यूशन कैमरे से ली गयी तस्वीर भी जारी की चंद्रयान-2 का यह कैमरा चंद्रमा की परिक्रमा कर रहे सभी कैमरों में सर्वश्रेष्ठ रेजोल्यूशन वाला है

लैंडर में सभी प्रणालियां सामान्य, चेस्ट चालू

इसरो ने बताया, चंद्रमा में सॉफ्ट लैंडिंग के बाद लैंडर में सभी प्रणालियां सामान्य रूप से काम कर रहे हैं इसरो ने बताया, रेडियो एनाटॉमी ऑफ मून बाउंड हाइपरसेंसिटिव आयनोस्फियर एंड एटमॉस्फियर : सतह पर उपस्थित खनिज और आयन का शोध कर रहा

करीब आधे चंद्र मिशन असफल हो जाते हैं, अभी भी अंतरिक्ष में पहुंचना क्यों है इतना मुश्किल?

भारत ने 2019 में चंद्रमा पर एक अंतरिक्षयान उतारने की प्रयास की और वह इसकी बंजर सतह पर मलबे की एक किलोमीटर लंबी लकीर ही खींच सका भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने अब जीत के साथ वापसी की और चंद्रयान-3 का लैंडर पृथ्वी के चट्टानी पड़ोसी चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के निकट की सतह छूने में सफल रहा हिंदुस्तान की इस कामयाबी से कुछ ही दिन पहले रूस को तब असफलता मिली, जब उसके लूना 25 मिशन ने पास ही के क्षेत्र पर उतरने की प्रयास की, लेकिन वह चंद्रमा की सतह से टकराकर दुर्घटनाग्रस्त हो गया ये दोनों मिशन हमें याद दिलाते हैं कि चंद्रमा पर सॉफ्ट लैंडिंग की पहली कामयाबी के करीब 60 वर्ष बाद अंतरिक्षयान मिशन अब भी कठिन एवं घातक हैं विशेष रूप से चंद्र मिशन सिक्का उछालने की तरह हैं और हमने हाल के सालों में कई बड़े-बड़े राष्ट्रों को विफल होते देखा है

चंद्रमा पर अबतक सिर्फ़ चार राष्ट्र ही कर पाये सॉफ्ट लैंडिंग

चंद्रमा एकमात्र खगोलीय जगह है जहां (अब तक) मनुष्य गए हैं वहां सबसे पहले जाना समझ में आता है: यह लगभग 4,00,000 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हमारा सबसे निकटतम ग्रहीय पिंड है इसके बावजूद अभी तक मात्र चार राष्ट्र ही चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक ‘सॉफ्ट लैंडिंग’ कर पाए हैं सबसे पहले पूर्व सोवियत संघ ने यह कामयाबी हासिल की थी लूना 9 मिशन लगभग 60 वर्ष पहले फरवरी 1966 में चंद्रमा पर सुरक्षित रूप से उतरा था अमेरिका ने कुछ महीनों बाद जून 1996 में ‘सर्वेयर 1’ मिशन के जरिए कामयाबी हासिल की इसके बाद चीन 2013 में ‘चांग’ई 3’ मिशन की कामयाबी के साथ इस समूह में शामिल हो गया और अब हिंदुस्तान भी चंद्रयान-3 के साथ चांद पर पहुंच गया है जापान, संयुक्त अरब अमीरात, इजराइल, रूस, यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी, लक्जमबर्ग, दक्षिण कोरिया और इटली के मिशन असफल रहे

रूस की अंतरिक्ष एजेंसी ‘रॉसकॉसमॉस’ ने 19 अगस्त, 2023 को घोषण की कि लूना 25 अंतरिक्ष यान के साथ संपर्क बाधित हुआ है इसके बाद 20 अगस्त को यान से संपर्क करने के कोशिश असफल रहे रॉसकॉसमॉस को बाद में पता चला कि लूना 25 दुर्घटनाग्रस्त हो गया है पूर्ववर्ती सोवियत संघ से लेकर आधुनिक रूस तक 60 वर्ष से भी अधिक के अनुभव के बावजूद यह मिशन असफल हो गया हमें नहीं पता कि वास्तव में क्या हुआ, लेकिन रूस के वर्तमान परिस्थिति इसका एक कारक हो सकते है यूक्रेन के साथ जारी युद्ध के कारण रूस में तनाव अधिक है और संसाधनों का अभाव है इजराइल का बेरेशीट लैंडर भी अप्रैल, 2019 में दुर्घटनाग्रस्त हो गया था और इसी वर्ष सितंबर में हिंदुस्तान ने चंद्रमा की सतह पर अपना लैंडर ‘विक्रम’ भेजा था, लेकिन वह उतरते समय दुर्घटनाग्रस्त हो गया था नासा ने बाद में अपने ‘लूनर रीकानसन्स ऑर्बिटर’ द्वारा ली गई एक तस्वीर जारी की जिसमें विक्रम लैंडर का मलबा कई किलोमीटर तक फैले लगभग दो दर्जन स्थानों पर बिखरा हुआ नजर आ रहा था

बड़ी चुनौतियां बरकरार हैं

  • यदि मनुष्यों को पूर्ण विकसित अंतरिक्ष-सभ्यता का निर्माण करना है, तो हमें बड़ी चुनौतियों से पार पाना होगा
  • लंबी अवधि, लंबी दूरी की अंतरिक्ष यात्रा को संभव बनाने के लिए कई समस्याओं का निवारण करना होगा
  • प्रगति धीरे-धीरे होगी, छोटे कदम धीरे-धीरे बड़े बनेंगे इंजीनियर और अंतरिक्ष प्रेमी अंतरिक्ष मिशन में अपनी दिमागी ताकत, समय और ऊर्जा लगाते रहेंगे तथा वे धीरे-धीरे और अधिक सफल होते जाएंगे
  • शायद एक दिन हम ऐसा समय देखेंगे जब अंतरिक्ष यान में यात्रा करना कार में बैठने जितना ही सुरक्षित होगा

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