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चुनाव को देखते हुए तीन महीने से कांग्रेस में युद्धविराम जैसी स्थिति

राजस्थान में पांच वर्ष तक सीएम अशोक गहलोत और पूर्व डिप्टी मुख्यमंत्री सचिन पायलट में सत्ता संघर्ष चलता रहा एक दूसरे को मात देने के लिए किसी ने कोई मौका नहीं छोड़ा चुनाव को देखते हुए तीन महीने से कांग्रेस पार्टी में युद्धविराम जैसी स्थिति है गहलोत और पायलट खेमे ने अपने गुट के विधायकों और समर्थकों को टिकट दिलाकर एडजस्ट करा लिया ऐसा करते समय विधायकों और मंत्रियों के विरुद्ध जनता में नाराजगी को दोनों ही गुट ने दरकिनार कर दिया बगावत से बचने को नए चेहरों को टिकट देने से परहेज किया गया

कांग्रेस सिर्फ़ कुछ ही विधायकों का टिकट काट पाई पुराने चेहरों के दम पर कांग्रेस पार्टी गवर्नमेंट रिपीट करने की सोच रही है, जबकि राजस्थान में गवर्नमेंट ही नहीं बल्कि मंत्रियों और विधायकों को हराने की भी एक परंपरा रही है यह जानते हुए भी कांग्रेस पार्टी नेतृत्व की ओर से इतना बड़ा रिस्क लिया है

2018 : नाराजगी इतनी कि 20 मंत्रियों को दिखा दी जमीन

2013 के चुनाव में बीजेपी को प्रचंड बहुमत मिला था 200 में 163 सीटें बीजेपी को मिलीं कांग्रेस पार्टी 21 सीटों पर सिमट गई लेकिन उस बहुमत को वसुंधरा गवर्नमेंट सहेज नहीं पाई गवर्नमेंट के फैसलों से जनता में नाराजगी बढ़ती गई इस नाराजगी को तब सत्ता स्वीकार करने के लिए तैयार ही नहीं थी 2018 के चुनाव में 163 विधायकों में से 94 को फिर मैदान में उतारा इनमें से 40 एमएलए सीट बचा पाने में सफल हो पाए 54 विधायक चुनाव हार गए 20 मंत्री बुरी तरह पराजित हुए थे

हारने वाले मंत्रियों में यूनुस खान, प्रभु लाल सैनी राजपाल शेखावत, अरुण चतुर्वेदी, अजय सिंह, डा राम प्रताप, गजेंद्र खींवसर, श्री चंद्र कृपलानी, राम प्रसाद, बाबू लाल वर्मा, अमराराम,  कमसा मेघवाल, बंशीधर बाजिया, ओटाराम देवासी, कृष्णेंद्र कौर, सुनील कटारा थे चार बागी मंत्री रतनगढ़ से राजकुमार रिणवा, जैतारण से सुरेंद्र गोयल, थानागाजी से हेमसिंह भड़ाना और बांसवाड़ा से धनसिंह रावत को भी मात मिली तत्कालीन श्रम मंत्री जसवंत यादव के बेटे मोहित यादव बहरोड से और जनजाति मंत्री नंदलाल मीणा के बेटे हेमंत प्रतापगढ़ से चुनाव हार गए थे मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के अतिरिक्त गुलाबचंद कटारिया, राजेंद्र राठौड़, स्व किरण माहेश्वरी, कालीचरण सराफ, पुष्पेंद्र सिंह, अनीता बघेल और वासुदेव देवनानी ही अपनी सीट निकाल पाने में सफल हो पाए थे

2013ः 21 सीटों पर सिमटी कांग्रेस

2013 में भी कांग्रेस पार्टी ने योजनाओं के जरिये माहौल बनाया था फीलगुड की लहर पर सवार कांग्रेस पार्टी को ऐतिहासिक हार मिली 200 प्रत्याशियों में से 21 ही जीत पाए 105 पिछले प्रत्याशियों को फिर टिकट दिए गए इनमें से भी 91 हार गए रिपीट प्रत्याशियों में से 75 विधायक भी थे इनमें पांच को ही जीत मिली 70 विधायकों को हार का सामना करना पड़ा

कांग्रेस ने पिछला चुनाव हारे 21 नेताओं को भी टिकट दिया था 31 मंत्री हार गए थे हारने वालों में दुर्रु मियां, भरत सिंह, बीना काक, शांति धारीवाल, स्व मास्टर भंवरलाल मेघवाल, ब्रजकिशोर शर्मा, प्रसादी लाल मीणा, चिकित्सक जितेंद्र सिंह, राजेंद्र पारीक, हेमाराम चौधरी और अन्य मंत्री शामिल थे सीएम अशोक गहलोत के अतिरिक्त महेंद्रजीत मालवीय, गोलमा देवी, विजेंद्र ओला और राज कुमार शर्मा ही जीत पाए तब भी सत्ता को अंदाजा ही नहीं लग पाया कि राजनीतिक जमीन कैसे खिसक चुकी है

2008, 2003 और 1998…वही तस्वीर

2008 में वसुंधरा गवर्नमेंट को हार का सामना करना पड़ा तब राजे गवर्नमेंट पर करप्शन के कई गंभीर इल्जाम लगाए थे 13 मंत्री हारे बीजेपी 78 सीटें ही जीत पाई थी 2003 में गहलोत गवर्नमेंट को हार का सामना करना पड़ा था 1998 के विधानसभा चुनाव में 150 से अधिक सीटें लाने वाली कांग्रेस पार्टी 56 सीट पर सिमटी 19 मंत्री  हारे 1998 में भैरो सिंह गवर्नमेंट को बुरी तरह हारी बीजेपी महज 33 सीट पर सिमट गई कांग्रेस पार्टी की प्रचंड बहुमत से गवर्नमेंट बनी

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