जी20 शिखर सम्मेलन के लिए भारत वैश्विक नेताओं की प्रतिष्ठित सभा की मेजबानी करने की तैयारी
India’s Time to Shine G20 Summit 2023: हिंदुस्तान जी20 शिखर सम्मेलन की मेजबानी के लिए तैयारी कर रहा है, जो राष्ट्र और पीएम नरेंद्र मोदी के लिए काफी महत्व रखता है। ये शिखर सम्मेलन ग्लोबल साउथ के कद्दावर और विकासशील राष्ट्रों की आवाज के रूप में ‘भारत की भूमिका’ को भी परिभाषित करेगा। हिंदुस्तान का लक्ष्य विकसित और विकासशील राष्ट्रों के बीच की खाई को पाटना है। साथ ही इसका उद्देश्य पश्चिमी राष्ट्रों और रूस के बीच मध्यस्थ के रूप में भी काम करना है।
हम सभी जानते हैं कि आज और कल (9 और 10 सितंबर) जी20 शिखर सम्मेलन के लिए हिंदुस्तान अंतरराष्ट्रीय नेताओं की प्रतिष्ठित सभा की मेजबानी करने की तैयारी कर रहा है, जो स्वयं को एक प्रमुख अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी के रूप में स्थापित करने की हिंदुस्तान की उम्मीदों को दर्शाता है। टीओआई की एक रिपोर्ट के अनुसार, ये आयोजन हिंदुस्तान के लिए बहुत खास और जरूरी है।
बिखरती दुनिया को साथ लाने का प्रयास
जी20 शिखर सम्मेलन नयी दिल्ली के लिए कूटनीतिक में मील का पत्थर भी दिखाई पड़ता है, क्योंकि यह मौजूदा रूस-यूक्रेन संघर्ष की पृष्ठभूमि के बीच एक बिखरी दुनिया को साथ लाने का कोशिश करता है। जानकारों का मानना है कि यह शिखर सम्मेलन हिंदुस्तान के लिए एक चमक का लम्हा होगा, जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर एक स्वतंत्र और प्रभावशाली आवाज के रूप में उभरेगा।
जी20 शिखर सम्मेलन से कुछ महीने पहले पीएम मोदी ने जनवरी में एक आभासी बैठक के लिए 125 विकासशील राष्ट्रों को निमंत्रण दिया था, जिसमें विश्व स्तर पर वकालत करने के हिंदुस्तान के इरादे को भी दिखाया। यह पहल न सिर्फ़ विकसित और विकासशील राष्ट्रों के बीच की खाई को पाटने के लिए है, बल्कि पश्चिम और रूस के बीच मध्यस्थता के रूप में काम करने के हिंदुस्तान के लक्ष्य को भी दिखाती है।
ग्लोबल साउथ के लिए हिंदुस्तान एक मजबूत कंधा
पीएम मोदी ने जुलाई में फ्रांसीसी मीडिया के साथ एक साक्षात्कार में हिंदुस्तान की किरदार को भताया था। बोला था कि मैं हिंदुस्तान को वह मजबूत कंधा मानता हूं कि यदि ग्लोबल साउथ को ऊंची छलांग लगानी है, तो हिंदुस्तान उसे आगे बढ़ाने के लिए एक मजबूत कंधा बन सकता है। ग्लोबल साउथ के लिए हिंदुस्तान ग्लोबल नॉर्थ के साथ भी अपने संबंध बना सकता है।
अधिकांश अंतरराष्ट्रीय मंचों पर यूक्रेन संघर्ष के केंद्र में होने के बावजूद हिंदुस्तान ने उन मुद्दों को संबोधित करने पर ध्यान केंद्रित किया है जो विकासशील राष्ट्रों को सीधे प्रभावित करते हैं। इनमें खाद्य, ईंधन असुरक्षा, बढ़ती मुद्रास्फीति, कर्ज संबंधी चिंताएं और बहुपक्षीय विकास बैंकों में सुधार शामिल हैं। समावेशिता को बढ़ाने के कोशिश में प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने G20 में अफ्रीकी संघ की स्थायी सदस्यता का भी प्रस्ताव रखा है।
भारत का रुख हमेशा साफ रहा
विशेषज्ञ के अनुसार, शिखर सम्मेलन में विशेष रूप से क्षेत्रीय संघर्षों और जलवायु की घटनाओं से निपटने वाले विकासशील राष्ट्रों के लिए हिंदुस्तान की जरूरी किरदार है। नयी दिल्ली स्थित काउंसिल फॉर स्ट्रैटेजिक एंड डिफेंस रिसर्च के संस्थापक हैप्पीमोन जैकब ने मीडिया को कहा कि अफगानिस्तान, म्यांमार और अफ्रीका जैसे राष्ट्रों में संघर्ष की स्थिति है, लेकिन विकसित राष्ट्र इस मामले को गंभीरता नहीं लेते हैं।
विदेश विभाग के अधिकारी के रूप में नयी दिल्ली के साथ संबंध बनाने में जरूरी किरदार निभाने वाले एलिसा आयर्स ने भी हिंदुस्तान के स्वतंत्र रुख के बारे में बताया। बोला कि कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारत, शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्ष आंदोलन का नेता था। आयर्स ने दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं और ग्लोबल साउथ के बीच चिंताओं को दूर करने पर हिंदुस्तान के लक्ष्य पर भी प्रकाश डाला।
भारत एक स्वतंत्र आवाज
हडसन इंस्टीट्यूट की दक्षिण एशिया जानकार अपर्णा पांडे ने इस बात पर बल दिया कि हिंदुस्तान ने हमेशा एकल-शक्ति प्रभुत्व वाले बहुध्रुवीय विश्व का पक्ष लिया है। वह ग्लोबल साउथ के साथ हिंदुस्तान के मजबूत संबंधों को संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों के बीच की खाई को पाटने के लिए आदर्श मानती हैं।
ब्रुकिंग्स इंस्टीट्यूशन की वरिष्ठ फेलो तन्वी मदान के मुताबिक जी20 शिखर सम्मेलन हिंदुस्तान के अंतरराष्ट्रीय मंच पर चमकने का समय हो सकता है। उन्होंने बोला कि मुझे लगता है कि कुछ मायनों में पीएम मोदी इसे दुनिया के सामने हिंदुस्तान की उभरती एक प्रमुख शक्ति के रूप में अपनी स्वतंत्र आवाज के साथ खड़ा हो सकता है।