जजों को सोशल मीडिया द्वारा पैदा हुईं चुनौतियों से निपटने के लिए खुद को प्रशिक्षित करना चाहिए :CJI चंद्रचूड़
CJI Chandrachud: कई बार सुप्रीम और उच्च न्यायालय के न्यायधीश किसी मुद्दे की सुनवाई के दौरान ऐसी टिप्पणियां कर देते हैं, जिनकी सोशल मीडिया पर चर्चा होने लगती है। बाद में कई बार निर्णय इन टिप्पणियों की तुलना में एकदम अलग आता है। अब चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने बोला है कि जजों को सोशल मीडिया द्वारा पैदा हुईं चुनौतियों से निपटने के लिए स्वयं को प्रशिक्षित करना चाहिए। जब अदालती कार्यवाही की लाइव-स्ट्रीमिंग और लाइव रिपोर्ट की जा रही हो तो उन्हें सुनवाई के दौरान की जाने वाली टिप्पणियों को लेकर भी सचेत रहना चाहिए। सीजेआई ने कहा कि नहीं तो, जजों को सोशल मीडिया पर गलत समझे जाने का जोखिम पैदा हो जाता है।
कानूनी मामलों से जुड़ी वेबसाइट बार एंड बेंच के अनुसार, पिछले महीने कानूनी पेशे पर हार्वर्ड लॉ विद्यालय सेंटर द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में न्यायपालिका पर सोशल मीडिया के असर पर एक प्रश्न का उत्तर देते हुए सीजेआई ने यह टिप्पणी की थी। उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया के आने से पहले अदालतों में बहुत कम पत्रकार हुआ करते थे। लेकिन अब लाखों पत्रकार हैं जो अदालती कार्यवाही की लाइव रिपोर्टिंग कर रहे हैं। उन्होंने स्वीकार किया कि सोशल मीडिया न्यायाधीशों के लिए मामले पैदा करता है, सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी माना कि इस मुद्दे में बहुत कम विकल्प हैं। उन्होंने कहा, “तकनीक अब कोई विकल्प नहीं है और इसलिए सोशल मीडिया भी कोई विकल्प नहीं है। हम ऐसे समाज में काम कर रहे हैं जहां सोशल मीडिया का प्रचलन है।”
उन्होंने कार्यक्रम में बोला कि जजों और वकीलों के बीच वार्ता को अक्सर सोशल मीडिया पर गलत ढंग से पेश किया जाता है जब ऐसी टिप्पणियों की लाइव रिपोर्ट की जाती है। उन्होंने बोला कि दो प्रकार के न्यायाधीश होते हैं – एक जो अपने मन में जो है उसे प्रकट करते हैं और दूसरे जो तर्क दिया गया है उसका सारांश देते हैं। उन्होंने कहा, ”आपके पास न्यायधीश हैं जो शैतान के वकील की किरदार निभाते हैं, जो वकील को बताते हैं कि वे उस प्रस्ताव में गलत क्यों हैं, जिसे वे वकील से सर्वश्रेष्ठ प्राप्त करने के लिए बना रहे हैं। और फिर आपके पास दूसरे प्रकार के न्यायाधीश हैं। दूसरे प्रकार के न्यायाधीश होते हैं जो वकील जो कह रहे हैं उसे दोहराते हैं और उसे उसके तार्किक निष्कर्ष तक ले जाते हैं।”
चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ ने आगे बोला कि अक्सर लोग यह मान लेते हैं कि सुनवाई के दौरान न्यायधीश जो कह रहे हैं वह न्यायालय के संभावित निर्णय की ओर इशारा करता है। उन्होंने कहा, ”और इससे एक परेशानी पैदा होती है, क्योंकि न्यायालय में जिस पर बहस हो रही है वह एक बहस है। यह कोई निर्णय नहीं है या यह कोई दृष्टिकोण नहीं है। बहस के दौरान मैं जो कहता हूं वह वास्तव में आखिरी निष्कर्ष नहीं हो सकता है, लेकिन मैं संवाद के उद्देश्य से इसका परीक्षण कर रहा हूं। यह एक परेशानी है।”उन्होंने यह भी बोला कि एक ट्रायल न्यायधीश जो किसी मुद्दे की सुनवाई कर रहा है, उसके पास पहले से ही समाचारों, विचारों की बाढ़ आ गई होती है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने यह भी खुलासा किया कि वह एक्स या फेसबुक पर नहीं हैं, लेकिन अखबार पढ़ते हैं।