आरबीआई वृद्धि की मजबूती देखते हुए मुद्रास्फीति पर बढ़ाएगा ध्यान
RBI on Repo Rate: रिजर्व बैंक ऑफ इण्डिया (Reserve Bank of India) के द्वारा द्विमासिक समीक्षा के अनुसार मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) की बैठक का आयोजन किया जा रहा है। बैठक की शुरूआत चीन अक्टूबर को हुई थी। आज दिन में RBI गवर्नर शक्तिकांत दास मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी के फैसलों की जानकारी देंगे। अनुमान जताया जा रहा है कि शीर्ष बैंक लगातार चौथी बार रेपो दर को बरकरार रख सकता है। इससे पहले फरवरी 2023 में आरबीआई ने रेपो दर में परिवर्तन करते हुए इसे 6.5 फीसदी कर दिया था। बता दें कि रिजर्व बैंक के द्वारा पिछले वर्ष छह बार में 2.50 फीसदी तक रेपो दर में वृद्धि की गयी थी। इसे लेकर क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री डी के जोशी ने बोला कि मुझे लगता है कि अगस्त में पिछली एमपीसी बैठक और इस समय के बीच मुद्रास्फीति बढ़ गई है, वृद्धि मजबूत बनी हुई है, जबकि अंतरराष्ट्रीय कारक इस अर्थ में थोड़े प्रतिकूल हो गए हैं कि अमेरिकी फेडरल रिजर्व अब भी अपने रुख में आक्रामक है। ऐसे में आरबीआई द्वारा नीतिगत रेट को यथावत रखने की आशा है। उन्होंने बोला कि आरबीआई वृद्धि की मजबूती देखते हुए मुद्रास्फीति पर ध्यान बढ़ाएगा। कच्चे ऑयल की कीमतों में उतार-चढ़ाव पर सावधानी से नजर बनाए रखने की आवश्यकता है।
वैश्विक व्यापक आर्थिक परिदृश्य में रहें सतर्क
बंधन बैंक के मुख्य अर्थशास्त्री सिद्धार्थ सान्याल ने बोला कि वृद्धि को लेकर अनिश्चितताओं के कारण अंतरराष्ट्रीय व्यापक आर्थिक परिदृश्य जटिल बना हुआ है। यह एमपीसी को सावधान रहने के लिए प्रेरित करेगा, और दरों के लंबे समय तक ऊंचे बने रहने की आसार है। क्रेडिटवाइज कैपिटल के संस्थापक और निदेशक आलेश अवलानी ने बोला कि अगस्त के बाद से कृषि वस्तुओं की कीमतों में नरमी ने एमपीसी को कुछ राहत दी है, जिससे अभी रेपो रेट में और बढ़ोतरी की आसार नहीं है। टीटागढ़ रेल सिस्टम्स के वाइस चेयरमैन और व्यवस्था निदेशक उमेश चौधरी ने बोला कि गवर्नमेंट की नीतियों और पूंजीगत व्यय ने निश्चित रूप से बुनियादी ढांचा क्षेत्र की वृद्धि को बढ़ावा दिया है। विनिर्माण क्षेत्र के लिए बहुत सारे अवसर हैं, जिसका अर्थ है कि प्राइवेट सेक्टर को पूंजीगत व्यय करना होगा। इसके लिए, ब्याज रेट प्रबंध बहुत जरूरी किरदार निभाती रहेगी।
महंगाई के आकड़े एक नजर में देखें
जुलाई में इससे पहले MPC की बैठक का आयोजन किया गया था। इसके बाद, अगस्त के महीने में रिटेल महंगाई में गिरावट देखने को मिला था। खुदरा महंगाई घटकर 6.83 फीसदी पर आ गयी। जबकि, जुलाई में खुदरा महंगाई 7.44 फीसदी थी। महंगाई में गिरावट सब्जियों के मूल्य कम होने के बाद आयी थी। वर्तमान में राष्ट्र में महंगाई RBI के ऊपरी लिमिट 6 फीसदी पर है। जबकि, अगस्त के महीने में थोक महंगाई -0.52 फीसदी पर पहुंच गया था। जुलाई में ये -1.36% थी। थोक महंगाई अगस्त के महीने में लगातार पांचवें महीने शून्य से नीचे रही थी। इस बीच खाद्य महंगाई 7.75% से घटकर 5.62% पर आ गयी।
महंगाई से लड़ने में कैसे सहायता करती है रेपो रेट
बढ़ती महंगाई को काबू में करने का बहुत असरदायक हथियार है। जब भी महंगाई बढ़ने लगती है तो शीर्ष बैंक रेपो दर को बढ़ाकर बाजार में कैश के फ्लो को कम कर देता है। एक तरह से ऐसे भी समझें कि रेपो दर अधिक होता है तो रिजर्व बैंक से अन्य बैंकों को मिलने वाला ऋण महंगा हो जाता है। इससे बैंक अपने ग्राहकों को महंगा ऋण देने लगते हैं। इससे फ्लो ऑफ मनी कंट्रोल हो जाता है। अब इसको दूसरे तरह से समझिए। रेपो दर के बढ़ने से बाजार में मनी फ्लो कम हो जाता है। मनी फ्लो कम होते ही डिमांड विपरीत असर पड़ता है यानी कम हो जाता है। डिमांड और महंगाई डायरेक्टली प्रोपोर्शनल होती है। डिमांड कम तो महंगाई कम। इसी तरह अर्थव्यवस्था को बूरे दौर से निकालने के लिए बाजार में मनी फ्लो बढ़ दिया जाता है। ऐसी स्थिति में बैंक रेपो दर को कम कर देती है। बैंक से मिलने वाला ऋण सस्ता होते ही, बाजार में मनी फ्लो बढ़ जाता है।
क्या है रेपो रेट
रेपो दर (Repo Rate) एक आर्थिक शब्द है जो वित्तीय बाजार में इस्तेमाल होता है। यह शब्द आरबीआई (RBI) और अन्य भारतीय बैंकों द्वारा व्यापार बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों से उधार लेने के लिए जरूरी रिपोर्टेबल संलग्नक (Collateral) के खिलाफ मुनासिब ब्याज रेट का नाम है। RBI रेपो दर को बदलते हैं ताकि वित्तीय बाजार में रुपये की उपलब्धता और उधार लेने की रेट पर असर पड़े। यदि रेपो दर बढ़ाई जाती है तो वित्तीय संस्थानों को RBI को अधिक ब्याज देने की आवश्यकता होती है, जिससे वित्तीय संस्थानों को उधार लेने में अधिक खर्च होता है और उसे अपने ग्राहकों को भी उधार देने में अधिक खर्च होता है। इससे कर्ज लेने में मुश्किल होती है और रेट द्वारा उधार लेने की आसार कम हो जाती है। वहीं, यदि रेपो दर को घटाया जाता है तो वित्तीय संस्थानों को RBI को कम ब्याज देने की आवश्यकता होती है, जिससे उधार लेने की रेट कम होती है और उधार लेने के लिए अधिक सुन्दर होता है। इससे कर्ज लेने में सरलता होती है और वित्तीय संस्थान ग्राहकों को भी उधार देने के लिए मौजूद होता है। इसलिए, रेपो दर बैंकों और अन्य वित्तीय संस्थानों के लिए जरूरी किरदार निभाती है और इसके बदलने से बाजार के ब्याज दरों और कर्ज उपलब्धता पर असर पड़ता है।