हाईकोर्ट ने कहा कि दूसरी शादी करने से पिता अपने बच्चे का अभिभावक होने के अधिकार से नहीं हो सकता वंचित
दिल्ली हाई कोर्ट ने बोला है कि पहली पत्नी को खोने के बाद पिता द्वारा दूसरी विवाह कर लेने मात्र से वह अपने बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक होने के अयोग्य नहीं हो जाता।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ एक नाबालिग लड़के के नाना-नानी की अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिन्होंने अपने अभिभावक के रूप में नियुक्त होने और बच्चे के स्थायी रूप से हासिल करने की मांग की थी।
उच्च कोर्ट जाने से पहले एक निचली न्यायालय ने उनकी याचिका खारिज कर दी थी।
अदालत ने कहा,” ऐसी परिस्थितियों में जब पिता ने अपनी पहली पत्नी को खो दिया हो, उसकी दूसरी विवाह को बच्चे का प्राकृतिक अभिभावक बने रहने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जा सकता है।”
बच्चे के दादा-दादी ने इल्जाम लगाया कि विवाह के सात वर्ष बाद 2010 में दहेज की मांग और उत्पीड़न के कारण पति ने अपनी पत्नी की मर्डर कर दी।
पति और उसके परिवार को 2012 में दादा-दादी द्वारा दाखिल एक मुद्दे में बरी कर दिया गया था, जिन्होंने दावा किया था कि पिता के छिपने के बाद बच्चे को उनकी देखभाल में रखा गया था।
यह उनका मुद्दा है कि बच्चा हमेशा उनकी देखभाल में रहा है, और पति के बरी होने के बाद ही उसने देखभाल वापस पाने की मांग की थी।
उन्होंने यह भी बोला कि पिता ने दूसरी विवाह कर ली है और दूसरी विवाह से उनका एक बच्चा भी है, जिससे वह नाबालिग की देखभाल करने में असमर्थ हैं।
अदालत ने यह कहते हुए अपील खारिज कर दी कि आपराधिक मुकदमे के अतिरिक्त पति को अयोग्य ठहराने के लिए कोई अन्य कारक नहीं है।
इसमें यह भी बोला गया है कि किसी बच्चे की कस्टडी प्राकृतिक माता-पिता को देने से इनकार करने के लिए वित्तीय स्थिति में अंतर एक प्रासंगिक कारक नहीं होना चाहिए।
अदालत ने इस बात पर बल दिया कि स्वाभाविक माता-पिता के स्नेह का कोई विकल्प नहीं है, भले ही नाना-नानी को बच्चे के प्रति गहरा प्यार हो।
अदालत ने पिता बच्चे से सीमित मुलाक़ात का अधिकार दिया, जिससे उन्हें निर्दिष्ट शनिवारों को बच्चे से मिलने की अनुमति मिल गई, साथ ही दोनों पक्षों की आवश्यकताओं के अनुरूप मुलाक़ात के समय को समायोजित करने की आसार भी दी गई।