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अगर आपको खुद गाजर का हलवा बनाना हो तो कैसे बनाएंगे, जानें रेसिपी

हलवा फारस से हिंदुस्तान आया और फिर यहां का ऐसा हुआ कि ये हिंदुस्तान का राष्ट्रीय रेसिपी बन गया इन जाड़ों के मौसम में गाजर के खोये और ड्राइफ्रूट्स में बना लाल-लाल हलवा इतना हिट होता है कि इसका नाम भर आने से जीभ में पानी आने की गारंटी रहती है यूं तो हलवा की इतनी किस्में पिछले कुछ वर्षों में इस राष्ट्र में विकसित हुईं कि हर प्रजाति एक से बढ़कर एक है लेकिन हलवा का वास्तविक राजा तो अब गाजर को रेत कर बनाया गया उम्दा हलवा ही है

कहा जाता है कि जब मुगल हिंदुस्तान में हलवा लेकर आए और उनकी रसोई से होता हुआ ये आमजनता के बीच पहुंचा तो हर जीभ इसकी दीवानी हो गई वैसे गाजर का हलवा पंजाब की देन है जाड़ों के मौसम में जब गाजर हमारे राष्ट्र के उत्तरी मैदानी इलाकों में भरपूर उगती है तो इसे तरह तरह से बनाया भी जाता है पहली बार गाजर के हलवा बनाने और इसे मुगल बादशाहों के सामने पेश करने का श्रेय पंजाब के सिखों को है

सर्दियां आते ही बाजार चमकदार लाल रसदार गाजरों से भर जाता है वैसे गाजर के लजीज हलवा की ओर जाने से पहले ये तो जान लेना चाहिए कि यह रेसिपी राष्ट्रीय मिठाई कैसे बना और कैसे हिंदुस्तान आया

हाथ से बनने वाले मिठाई की उत्पत्ति सबसे पहले 13वीं शताब्दी में मध्य पूर्व में बताई जाती है अरबी पुस्तक अल-तबिख (व्यंजन की पुस्तक) पुस्तक में मुहम्मद इब्न अल-हसान इब्न अल-करीम ने हलवा व्यंजनों की कुछ किस्मों का उल्लेख किया है हलवा शब्द “हुल्व” शब्द से आया है जिसका अर्थ मीठा होता है

कहां से आया हलवा
माना जाता है मानना ​​है कि हलवा बनाने का काम सबसे पहले तुर्की के ऑटोमन साम्राज्य में हुआ बोला जाता है कि साम्राज्य के सुल्तान ने मिठाइयां पकाने के लिए एक विशेष रसोईघर बनवाए थे तब हलवा सिर्फ़ तीन सामग्रियों – स्टार्च, वसा और स्वीटनर से तैयार किया जाता था हालांकि ये भी बोला जाता है कि ये रेसिपी 12वीं शताब्दी ईस्वी से कुछ समय पहले पूर्वी रोमन के बीजान्टिन साम्राज्य का है पकवान में स्वाद बेहतर करने के लिए खजूर, मेवों और अन्य मसालों का इस्तेमाल भी किया जाता था

कोलीन टेलर सेन ने अपनी पुस्तक ‘फीस्ट्स एंड फास्ट्स’ में लिखा है कि हलवा हिंदुस्तान में दिल्ली सल्तनत के दौरान 13वीं सदी की आरंभ से 16वीं सदी के मध्य तक आया ‘गुज़िश्ता लखनऊ’ पुस्तक में भी बोला गया कि हलवा फारस के रास्ते अरबी भूमि से हिंदुस्तान आया हैदराबाद में, जौज़ी हलवा बेचने वाले हमीदी कन्फेक्शनर्स का तुर्की से संबंध माना जाता है, क्योंकि दुकान की स्थापना तुर्की वंश के किसी आदमी ने की थी

हरी मिर्च का भी होता है हलवा
आज राष्ट्र में गोश्त का हलवा से लेकर पुणे का ‘हरी मिर्च का हलवा’, पश्चिम बंगाल का ‘छोलार दाल हलवा’, यूपी और बिहार का ‘अंडा हलवा’, कर्नाटक का ‘काशी हलवा’ …मतलब तरह तरह के हलवे देखने को मिलते हैं लेकिन गाजर का हलवा तो इन सबसे बीच चैंपियन है

चूंकि मध्य कालीन हिंदुस्तान में गाजर खूब पैदा होती थी, तो इसके साथ सबसे अधिक खान-पान के प्रयोग भी उत्तर हिंदुस्तान में ही हुए मध्य हिंदुस्तान में गाजर के हलवे को गजरेला के नाम से जाना जाता था बोला जाता है कि सबसे पहले ये पंजाब में सिख समुदाय के बीच बनाया गया

पंजाब के सिखों ने बनाया पहले
किंवदंती है कि पंजाब के सिखों ने जब इसे मुगलों के सामने पेश किया तो मुगल खानसामों ने इसमें जीवंत रंग, फूलों की सुगंध और ड्राईफ्रूट्स मिलाकर इसे और बेहतरीन बना दिया

इसमें कद्दूकस की हुई गाजर को धीरे-धीरे दूध में उबाला जाता है और दूध के साथ गाजर से छूटा पानी जब सूखने लगता है तो इसे और ओटाया जाता है कभी कभी इसमें लगातार दूध डालते हुए उसे गर्म आंच पर गाजर के साथ औटाते रहते हैं ऊपर से इसमें सही घी, चीनी, सूखे मेवे और मावा के साथ फिर पकाते हैं

दैवीय स्वाद वाला गाजर का हलवा
इतना सब करने के बाद लजीज गाजर का हलवा तैयार हो जाता है इसका ये स्वाद ईश्वरीय होता है, जिसमें गाजर, दूध, खोया, घी और ड्राईफ्रूट्स सभी घुलमिल स्वाद का ऐसा इंद्रधनुष बनाते हैं जीभ से लेकर आत्मा तक तृप्त होने लगती है इसके साथ शर्त यही है कि इसे मामूली आंच में पर्याप्त पकने दें और पर्याप्त समय देकर इसकी अनेक सामग्रियों को समय समय पर मिलाते रहें

एक बहुत बढ़िया गाजर का हलवा जीभ पर जब आता है तब जिस खास नजाकत के साथ मीठा, क्रिस्पी, दानेदार स्वाद डांस करते हुए घुलता है, वो तो गजब होता है वैसे गाजर का हलवा मुगल काल में बादशाहों का पसंदीदा रेसिपी बन गया था

हलवे ने निश्चित रूप से एक लंबी यात्रा देखी है घरों में अक्सर सूजी से लेकर आटे का हलवा हर किसी ने खाया होगा मिलेट के हर अनाज के आटे से बना हलवा भी अपनी खासियतें लिए होता है हलवा ऐसा रेसिपी है जो इतनी तरह की चीजों से बनता है कि कोई भी दंग हो सकता है गोश्त का यदि लजीज हलवा बनता है तो अनेक फलों का हलवा, आलू का जबरदस्त हलवा और बची-खुची कसर फिर तरह तरह की पिसी दालों से बने हलवे पूरी कर देते हैं हलवा एक तरह का संतुलन था, जो आग की आंच पर हल्के हल्के घी और चीनी के साथ भूनते हुए बनाया जाता है

नारंगी गाजर के आने से पड़ी हलवे में जान
ये भी बोला जाता है कि हिंदुस्तान में मुगलों के आने से कहीं पहले मध्य पूर्व से आने वाले व्यापारी इसे लेकर आए थे नारंगी गाजर अधिक मीठी, सुंदर और गैर-चिपचिपी प्रजाति की थी, जिससे यह रसोइयों के बीच लोकप्रिय हो गई वैसे गाजर एक नहीं कई रंगों में होती है, बैंगनी से लेकर नारंगी और काली तक और उनके हलवे भी उसी तरह की रंगत ले लेते हैं वैसे गाजर मूल तौर पर बैंगनी रंग की ही थी जो गाजर हम अब देखते हैं वो किसी व्यापारी के जरिए हिंदुस्तान लाई गईगाजर को भारतीय उपमहाद्वीप में अफगानिस्तान की देन बोला जाता है 5000 वर्ष पहले से गाजर वहां उग रही थी

कैसे बनाएं 
तो अब आइए ये भी जान लेते हैं कि यदि आपको स्वयं गाजर का हलवा बनाना हो तो कैसे बनाएंगे
गाजर का हलवा (10 से 12 लोगों के लिए)

सामग्री
01 किलो गाजर (नारंगी)
1.60 से 1.80 लीटर दूध
करीब आधा कप क्रीम
1 ¾ कप चीनी
2 से 3 बड़े चम्मच मक्खन (अनसाल्टेड)
​​¼ कप सही घी
8 से 10 इलायची
1 बड़ा चम्मच किशमिश
2 बड़े चम्मच कटे बादाम, पिश्ता, काजू

तरीका
गाजर को हल्का छीलकर और कद्दूकस करके अलग रख लें दूध में उबाल आने दीजिए इसमें गाजर डाल दीजिए दूध और गाजर के मिश्रण में उबाल आने दीजिए, फिर इसमें चीनी डालकर लगातार चलाते हुए मिलाते रहिएआंच मध्यम रहने दें एक बार जब दूध ओटते हुए सूख जाए और गाजर के साथ मिल जाए तो लगातार हिलाते हुए गाढ़ी क्रीम डालें

जब ये पूरा मिश्रण तो उसमें बिना नमक वाला मक्खन, सही घी और इलायची डालकर लगातार हिलाते रहें आंच को मध्यम से तेज रखें तब तक हिलाते रहें जब तक कि ऑयल अलग न होने लगे और गाजर के इस मिश्रण का रंग गहरा नारंगी न हो जाए इसमें ऊपर से बारीक कटे ड्राईफ्रूट्स डाल दें इसे गर्म ही गर्म खाएं और खिलाएं

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