लाइफ स्टाइल

जानिए एसिड सर्वाइवर शाहीन मलिक की दर्द की दास्तां

एक ऐसी लड़की जो बहुत खूबसूरत और जिंदादिल थी. बेबाक, बेखौफ जीवन जीने वाली. लेकिन वर्ष 2009 उसके लिए अभिशाप बनकर आया. वो उम्र के खूबसूरत पड़ाव में थी जब लड़कियां अपने सपने पूरे करने के लिए जी तोड़ मेहनत करती हैं. इस आस में कि एक दिन उनकी मेहनत कामयाबी की उड़ान भरेगी. शाहीन अपने सपनों को पूरा करने के लिए जॉब करते हुए एमबीए की पढ़ाई कर रही थीं लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था….

 

 

मैं शाहीन हूं…काम है परवाज मेरा… मेरे सामने आसमां और भी हैं…

ये केवल लफ्ज नहीं बल्कि मेरी ताकत और हौसला हैं क्योंकि मैं उड़ना चाहती थी. लेकिन मेरे पंख 19 नवंबर 2009 को किसी ने जला दिए. मुझे मिट्टी में मिलाने की प्रयास की गई. मैं गिरी पर बिखरी नहीं, स्वयं को संभाला, अपने जले पंखों पर से दर्द की राख को झाड़ते हुए फिर से उड़ने का हौसला पाया और आज मैं उड़ रही हूं.

दहलीज के बाहर जाने पर पाबंदी

मैं केवल एसिड अटैक सर्वाइवर नहीं बल्कि ऐसी फैमिली से आती हूं जहां लड़कियों की पढ़ाने लिखाने पर तवज्जो नहीं दी जाती. लड़कियों के दहलीज के बाहर जाने तक पर पाबंदी होती है. इसी लड़ाई के साथ जीवन की आरंभ हुई. मेरी सहेलियों से उनके परिवार वाले घर में रहने को कहते तो वो मान जाती लेकिन मेरे मन में चार दीवारी की कैद को लेकर प्रश्नों का सैलाब उठता रहता. जीवन और उस पर लगी पबंदियों के कशमकश जूझते हुए मैंने 2007 में घर छोड़ दिया.

किसी भी एसिड सर्वाइवर की जंग मेरी जंग है, मैं उन लड़कियों का हौसला हूं जिसके साथ ये बदसूरत दुर्घटना पेश आया है.

घर छोड़ना मेरी जीवन का पहला बड़ा फैसला

घर छोड़ना मेरी जीवन का सबसे बड़ा निर्णय था. एक ऐसी लड़की ने घर छोड़ने का निर्णय किया जिसने अकेले कभी घर की दहलीज पार भी नहीं की थी. दुनिया के तौर उपायों से मैं अंजान थी. हाथ में कोई हुनर भी नहीं था जिसके सहारे जीवन गुजारी जाए. दिल में सपने और एक मकसद मुझे कुछ करना है, आगे बढ़ना है.

मैं आम जीवन नहीं जीना चाहती

मैं कुछ ऐसा करना चाहती थी कि आने वाली नस्ल मुझे याद करे. मैं कोई आम जीवन नहीं जीना चाहती थी. हमेशा से बहुत बोल्ड थी. पंजाब टेक्निकल यूनिवर्सिटी पानीपत, हरियाण में एमबीए में एडमिशन ले लिया. मैं पढ़ाई के साथ स्टूडेंट काउंसलिंग भी करती थी.

उसने मेरे चेहरे पर एसिड डाल दिया

एक दिन शाम 6 बजे ऑफिस से बाहर निकल रही थी. उसी दौरान मुझे एक लड़का दिखा, जो चेहरे पर रूमाल बांध-कर खड़ा था. सड़क क्रॉस करने के लिए जैसे ही मैं उस लड़के के बगल में जाकर खड़ी हुई, उसने मेरे चेहरे पर हरे रंग का लिक्विड डाल दिया. मेरे ही कलिग्स और उनके कॉलेज के 4 विद्यार्थियों ने मिलकर एसिड अटैक किया.

मुझे समझ नहीं आया कि ये क्या है. इससे पहले मैंने एसिड को इतने पास से कभी नहीं देखा था. वो दिन मुझे आज भी याद है. मैं कभी भूल नहीं सकती. कुछ ही समय में महसूस हुआ कि चेहरे डाला गया वो हरा पानी तेजाब है. मेरे सोचने समझने की ताकत समाप्त हो गई. मैं केवल चीख रही थी. उस भयानक चीख को याद करके आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

चेहरा 90 फीसदी झुलस चुका था

मेरी बर्बादी का तमाशा पास खड़े लोग देख रहे थे. लेकिन कोई मुझे हॉस्पिटल नहीं ले गया. जैसे-तैसे करके हॉस्पिटल पहुंची तो वहां मेरे सारे कपड़े काटकर उतारे गए. सर्दियों के मौसम में मुझे इतने ठंडे पानी से नहलाया गया कि पानी की हर बूंद सुई की तरह चुभ रही थी. देर इतनी हो गई कि एसिड अपना असर दिखा चुका था, चेहरा 90 फीसदी जलकर झुलस चुका था, आंखें खराब हो चुकी थीं, मैं कुछ देख नहीं पा रही थी.

​​​​एंबुलेंस की आवाज कानों में गूंज रही थी

मुझे चिकित्सक ने दिल्ली एम्स के लिए रेफर कर दिया, लेकिन मुझे एम्स न ले जाकर रोहतक ले जाया गया. मुझे हॉस्पिटल ले जाने वालों में वो लोग भी शामिल थे, जो मेरी इस हालत के लिए उत्तरदायी थे. वे मुझे दिल्ली लाते हुए डर रहे थे कि कोई मुकदमा न बन जाए. शाम 6 बजे से रात के 11 बज गए और मेरी कानों में एंबुलेंस की आवाज गूंज रही थी.

कोई उपचार को तैयार नहीं

इस समय मुझे मेरा घर याद आ रहा था. मैंने किसी से कहा…प्लीज मेरे घर पर टेलीफोन कर दो. घर पर टेलीफोन गया तो भाई ने टेलीफोन उठाया. समाचार मिलते ही वो भागकर मेरे पास पहुंचा और मुझे दिल्ली लेकर आया. हम एक हॉस्पिटल से दूसरे हॉस्पिटल के चक्कर काट रहे थे. कोई हॉस्पिटल उपचार करने के लिए तैयार नहीं था. सबका यही बोलना था कि यह पुलिस मुकदमा है. बिना पुलिस की मौजूदगी के उपचार प्रारम्भ नहीं कर सकते. शीघ्र उपचार कराना है तो पांच लाख रुपए तुरंत जमा कराओ. एक मिडिल क्लास फैमिली के लिए रातोंरात पांच लाख रुपए जमा करना सरल बात नहीं. लेकिन मेरे परिवार वाले मुझे मरते नहीं देख पाते इसलिए उन्होंने न जाने कहां से इतने पैसों व्यवस्था करके मेरा उपचार प्रारम्भ कराया.

मैं खूबसूरत थी, लोग मुझसे जलते

मेरे साथ एसिड अटैक होने की कई वजह थीं. मैं पढ़ाई में बहुत होशियार, दिखने में खूबसूरत थी. मेरी यही विशेषता मेरी शत्रु बन गई. मेरे साथी ही मुझे लेकर चिढ़ते. मैं सोच भी नहीं सकती कि उनकी चिढ़ की हद तेजाब हो सकती है. उन्होंने जलता जहर चेहरे पर डालकर मेरी जिंदगी, मेरे सपनों और मेरी ख्वाहिशों के परों को जलाकर खाक कर दिया.

मुझे अपने चेहरे से नफरत हो गई

जब मैंने अपना चेहरा आईने में देखा तो मैं दीवार से सिर टिकाकर बैठ गई. सोचने लगी, मेरे साथ ऐसा क्यों हुआ. मुझे अपने चेहरे से घिन आ रही थी. आज मैं जैसी दिख रही हूं ये 25 सर्जरी के बाद का चेहरा है. जरा सोचिए जब 25 सर्जरी मेरा चेहरा नहीं ठीक कर सकी तो तब ताजा-ताजा जला चेहरा कैसा दिखता होगा. हर सर्जरी मुझे 19 नवंबर 2009 की भयावह याद दिलाती है. 20 रुपए की एसिड की बोतल ने मेरी जीवन के दस साल, मेरी फैमिली के 20 लाख रुपए और बीसियों सपनों को बर्बाद कर दिया. मेरे नाम के दिव्यांग शब्द चिपक गया.

कई रातें जाग कर गुजारी

इलाज के बाद मैं अपनी नॉर्मल जीवन में लौटी, उसी घर में आई जहां मैं रहा करती थी, लेकिन इस बार बहुत कुछ खोकर लौटी थी. मेरा खूबसूरत चेहरा, मेरी आंखें, एसिड अटैक से जुड़ा दर्द लेकर लौटी मैं अपने जले होंठों के साथ बोल भी नहीं पाती थी. कई रातें जागकर गुजारी. खाना-पीना भी दुश्वार था. मन और शरीर दोनों ही दुखते थे.

आखिर मैंने ऐसा क्या किया…

मैंने चिकित्सक से बात की, तो चिकित्सक ने साफ कह दिया कि हम आपका चेहरा तो ठीक नहीं कर सकते. लेकिन इतना कर सकते हैं कि समाज आपको अपना ले.

दरअसल, डॉक्टरों को मेरी हालत से कोई लेना देना नहीं था. उन्हें मेरी बर्बादी का किस्सा सुनने में अधिक इंट्रेस्ट था. सभी ये जानना चाहते कि आखिर मैंने ऐसा क्या किया कि मुझे पर एसिड अटैक हुआ.

मैंने घर छोड़ा इसलिए एसिड अटैक का ठिकरा मेरे ही सिर पर फोड़ दिया गया. मैं साढ़े तीन वर्ष तक छत पर नहीं गई. कमरे में स्वयं को बंद करके रखा.

चेहरा इतना घिनौना कि मुझे ही डरा गया

मैं रोज-ब-रोज डिप्रेशन की तरफ जा रही थी. मुझे कोई बात खुशी नहीं देती. सुंदर दिखने वाली लड़की रातोंरात अचानक इतना डरावनी कैसे हो गई? मेरा कॉन्फिडेंस चला गया. जीना भूल गई. मेरा डिप्रेशन मुझ पर इतना हावी हो गया कि घर में जितनी भी दवाइयां रखी थीं मैंने सब एक साथ निगल ली. दवा खाने के बाद मेरी हालत इतनी खराब हो गई कि हॉस्पिटल पहुंच गई. जब मैं होश में आई तब मुझे एहसास हुआ कि मुझे यह कदम नहीं उठाना चाहिए था.

मेरे नसीब में जीवन लिखी है

मुझे धीरे-धीरे समझ में आने लगा था कि ऊपर वाले का मेरे ऊपर बहुत करम है. उसकी ही दुआ का असर है कि मैंने घर छोड़ा, एसिड अटैक झेला, आत्महत्या करनी चाही, लेकिन फिर भी मृत्यु नहीं आई. इसका मतलब मेरे नसीब में हयात यानी जीवन है. ऊपर वाला मुझे जिंदा रखना चाहता है. मैंने आंखों के उपचार के लिए चेहरे को कवर करके जॉब की तलाश जारी रखी. 2013 में मुझे एक एनजीओ से कॉल आई, जहां एसिड सर्वाइवर को ही नौकरी मिलता था. मैंने उस जॉब के लिए फौरन ’हां’ कर दी. वहां जाकर मुझे मेरे जैसी बहुत लड़कियां मिली. जिसके बाद मन में ख्याल आया कि एसिड को बैन करना चाहिए जो किसी को जीवन भर का दर्द दे सकता है.

मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही हूं

यहां से मेरी जीवन को नया रास्ता मिला जिस पर चलकर मैं अपनी मंजिल की तरफ बढ़ रही हूं. अब मैं एसिड सर्वाइवर के लिए काम करती हूं. एसिड सर्वाइवर का उपचार कराया. गवर्नमेंट से मुआवजा दिलाने के लिए दौड़ी. यह सब काम करने के बाद दिल को बहुत शाँति और ठंडक मिली. मुझे एहसास हुआ कि मेरे दिल को यहीं तसल्ली और खुशी मिलेगी.

शुरू किया स्वयं का NGO

साल 2021 में मैंने स्वयं की संस्था प्रारम्भ की. इस संस्था का नाम मैंने ‘ब्रेव सोल्स फाउंडेशन’ रखा. एनजीओ और उसके शेल्टर होम, यानी ‘अपना घर’ के जरिए 300 से अधिक एसिड अटैक सर्वाइवर्स को उनकी सर्जरी करवाने में सहायता की है. ‘ब्रेव सोल्स फाउंडेशन’ के जरिए एसिड अटैक सर्वाइवर को सभी प्रकार की सहायता दी जाती है. उनकी पढ़ाई के साथ ही उनका उपचार भी किया जाता है. हमारा शेल्टर होम है, जिसमें एसिड अटैक सर्वाइवर्स रहती हैं. यहां अलग- अलग राज्यों यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, मुंबई और पश्चिम बंगाल की लड़कियां यहां आ चुकी हैं. हम केवल उनका उपचार ही नहीं बल्कि उनकी कानूनी लड़ाई भी लड़ते हैं. साथ ही, हम उन्हें साइकोलॉजिकल थेरेपी भी देते हैं. अब तक हमने अपने NGO की तरफ से कई लड़कियों की सहायता की हैं. हमारा ये काम अब भी जारी है.

 

 

Related Articles

Back to top button