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शनिवार को करें माता काली की विशेष पूजा, होगी गुप्त शत्रुओं से रक्षा

Maa Kali Chalisa Ka Path: धार्मिक दृष्टि से शनिवार का दिन बहुत महत्व रखता है. इस दिन कई देवी-देवताओं की पूजा होती है, जिसमें माता काली की पूजा भी शामिल है. ऐसी मान्यता है कि जो साधक मां काली को प्रसन्न करना चाहते हैं, उन्हें नवरात्रि के साथ इस दिन भी उनकी आराधना करनी चाहिए. ऐसा बोला जाता है जो लोग मां काली की शनिवार के दिन रेट के साथ पूजा करते हैं उनके सभी संकटों का नाश होता है. इसके साथ ही गुप्त शत्रुओं से रक्षा होती

इसके अतिरिक्त ‘काली चालीसा’ के पाठ से भी माता काली प्रसन्न होती हैं, तो क्यों न इस सरल माध्यम से खुश किया जाए ? जो इस प्रकार है –

॥’काली चालीसा’॥

॥दोहा॥

जयकाली कलिमलहरण,

महिमा अगम अपार .

महिष मर्दिनी कालिका,

देहु अभय अपार ॥

॥ चौपाई ॥

अरि मद मान मिटावन हारी .

मुण्डमाल गल सोहत प्यारी ॥

अष्टभुजी सुखदायक माता .

दुष्टदलन जग में विख्याता ॥

भाल विशाल मुकुट छवि छाजै

कर में शीश दुश्मन का साजै ॥

दूजे हाथ लिए मधु प्याला .

हाथ तीसरे सोहत भाला ॥4॥

चौथे खप्पर खड्ग कर पांचे .

छठे त्रिशूल दुश्मन बल जांचे ॥

सप्तम करदमकत असि प्यारी .

शोभा अद्भुत मात तुम्हारी ॥

अष्टम कर भक्तन वर दाता .

जग मनहरण रूप ये माता ॥

भक्तन में अनुरक्त भवानी .

निशदिन रटें ॠषी-मुनि ज्ञानी ॥8॥

महशक्ति अति प्रबल पुनीता .

तू ही काली तू ही सीता ॥

पतित तारिणी हे जग पालक .

कल्याणी पापी कुल घालक ॥

शेष सुरेश न पावत पारा .

गौरी रूप धर्यो इक बारा ॥

तुम समान दाता नहिं दूजा .

विधिवत करें भक्तजन पूजा ॥12॥

रूप विशाल जब तुम धारा .

दुष्टदलन कीन्हेहु संहारा ॥

नाम अनेकन मात तुम्हारे .

भक्तजनों के संकट टारे ॥

कलि के कष्ट कलेशन हरनी .

भव भय मोचन मंगल करनी ॥

महिमा अगम वेद यश गावैं .

नारद शारद पार न पावैं ॥16॥

भू पर भार बढ्यौ जब भारी .

तब तब तुम प्रकटीं महतारी ॥

आदि अनादि अभय वरदाता .

विश्वविदित भव संकट त्राता ॥

कुसमय नाम तुम्हारौ लीन्हा .

उसको सदा अभय वर दीन्हा ॥

ध्यान धरें श्रुति शेष सुरेशा .

काल रूप लखि तुमरो भेषा ॥20॥

कलुआ भैंरों संग तुम्हारे .

अरि भलाई रूप भयानक धारे ॥

सेवक लांगुर रहत अगारी .

चौसठ जोगन आज्ञाकारी ॥

त्रेता में रघुवर भलाई आई .

दशकंधर की सैन नसाई ॥

खेला रण का खेल निराला .

भरा मांस-मज्जा से प्याला ॥24॥

रौद्र रूप लखि दानव भागे .

कियौ गवन भवन निज त्यागे ॥

तब ऐसौ तामस चढ़ आयो .

स्वजन विजन को भेद भुलायो ॥

ये बालक लखि शंकर आए .

राह रोक चरनन में धाए ॥

तब मुख जीभ निकर जो आई .

यही रूप प्रचलित है माई ॥28॥

बाढ्यो महिषासुर मद भारी .

पीड़ित किए सकल नर-नारी ॥

करूण पुकार सुनी भक्तन की .

पीर मिटावन भलाई प्रत्येक व्यक्ति की ॥15॥

तब प्रगटी निज सैन समेता .

नाम पड़ा मां महिष विजेता ॥

शुंभ निशुंभ हने छन माहीं .

तुम सम जग दूसर कोउ नाहीं ॥32॥

मान मथनहारी खल दल के .

सदा सहायक भक्त विकल के ॥

दीन विहीन करैं नित सेवा .

पावैं मनवांछित फल मेवा ॥17॥

संकट में जो सुमिरन करहीं .

उनके कष्ट मातु तुम हरहीं ॥

प्रेम सहित जो कीरति गावैं .

भव बन्धन सों मुक्ती पावैं ॥36॥

काली चालीसा जो पढ़हीं .

स्वर्गलोक बिनु बंधन चढ़हीं ॥

दया दृष्टि हेरौ जगदम्बा .

केहि कारण मां कियौ विलम्बा ॥

करहु मातु भक्तन रखवाली .

जयति जयति काली कंकाली ॥

सेवक दीन अनाथ अनारी .

भक्तिभाव युति शरण तुम्हारी ॥40॥

॥दोहा॥

प्रेम सहित जो करे,

काली चालीसा पाठ .

तिनकी पूरन कामना,

होय सकल जग ठाठ ॥

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