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शिवाजी महाराज की जयंती से पहले पढ़ें उनके जीवन से जुड़ी कुछ रोचक बातें

Chhatrapati Shivaji Maharaj Jayanti 2024: मराठा सम्राट छत्रपति शिवाजी महाराज की जयंती फरवरी माह में मनाई जाती है. शिवाजी हिंदुस्तान के वीर सपूतों में से एक हैं, जिनकी शौर्यगाथा इतिहास के पन्नों में सुनहरे अक्षरों में दर्ज हो गई है. छत्रपति शिवाजी महाराज की बहादुरी की मिसाल सिर्फ़ महाराष्ट्र में ही नहीं, बल्कि पूरे राष्ट्र में दी जाती है और गर्व के साथ उनका नाम लिया जाता है. शिवाजी महाराज एक देशभक्त के साथ ही एक कुशल प्रशासन और साहसी योद्धा थे. उन्होंने मुगलों को परास्त किया था. देश को मुगलों के चंगुल से आजाद कराने के लिए उन्होंने मराठा साम्राज्य की नींव रखी.

शिवाजी महाराज का जीवन परिचय

शिवाजी महाराज का जन्म 19 फरवरी 1630 को मराठा परिवार में हुआ था. छत्रपति शिवाजी महाराज का नाम शिवाजी भोंसले था. उनके पिता शाहजी भोंसले और माता जीजाबाई थीं. उस दौर में हिंदुस्तान मुगल आक्रमणकारियों से घिरा हुआ था. दिल्ली सल्तनत ने दिल्ली समेत पूरे हिंदुस्तान पर कब्जा कर लिया था.

मुगलों के विरुद्ध शिवाजी का पहला युद्ध

हिंदुओं पर संकट आया तो शिवाजी महाराज ने महज 15 साल की उम्र में हिंदू साम्राज्य को स्थापित करने के लिए पहला आक्रमण किया. शिवाजी ने बीजापुर पर धावा किया और कुशल रणनीति और गोरिल्ला युद्ध के जरिए बीजापुर के शासक आदिलशाह को मृत्यु के घाट उतार दिया. साथ ही बीजापुर के चार किलों पर कब्जा कर लिया था.

छल से शिवाजी को बनाया था बंदी

जब शिवाजी के पराक्रम, गोरिल्ला युद्ध में पारंगत होने और युद्ध में कुशल रणनीति से जुड़े किस्से बढ़ने लगे तो औरंगजेब डर गया और संधि वार्तालाप के लिए शिवाजी महाराज को आगरा बुलाया. औरंगजेब ने छल से शिवाजी को बंदी तो बना लिया लेकिन वह अधिक दिन उनके कब्जे में न रहे और फल की टोकरी में बैठकर मुगल कारावास से भाग निकले. इसके बाद उन्होंने मुगल सल्तनत के विरुद्ध जंग छेड़ दी.

मराठा साम्राज्य के सम्राट 

1674 में उन्होंने पश्चिम हिंदुस्तान में मराठा साम्राज्य की नींव रखी थी. इस दौरान उन्हें औपचारिक रूप से छत्रपति या मराठा साम्राज्य के सम्राट के रूप में ताज पहनाया गया. उस दौर में फारसी भाषा का अधिक इस्तेमाल होता था, इसलिए शिवाजी ने न्यायालय और प्रशासन में मराठी और संस्कृत के इस्तेमाल को बढ़ावा दिया. बाद में 3 अप्रैल 1680 को गंभीर रोग के कारण शिवाजी महाराज ने पहाड़ी दुर्ग राजगढ़ में अपने प्राण त्याग दिए. उनके सहयोग के कारण राष्ट्र के वीर सपूतों में से एक छत्रपति शिवाजी महाराज को ‘मराठा गौरव’ बोला जाता है.

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