Independence Day 2023: भारत अपनी आजादी के 76 वर्ष पूरे होने का उत्सवइंकार रहा है। हर वर्ष 15 अगस्त के दिन स्वतंत्रता दिवस का पर्व उत्साह से मनाया जाता है। पूरे राष्ट्र में इस राष्ट्रीय पर्व को लेकर उत्साह होता है। दिलों में देशभक्ति की भावना और स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के लिए सम्मान लिए लोग ध्वजारोहण करते हैं और शहीदों को नमन करते हैं।
इस मौके पर राष्ट्रीय अवकाश रहता है। ऐसे में लोग उन जगहों पर घूमना पसंद करते हैं, जो देशभक्ति की भावना को बढ़ा दें। 1947 से पहले हिंदुस्तान के कोने कोने में आजादी की मांग उठी। हर राज्य और शहर से कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने आजादी की मांग को लेकर अंग्रेजों के विरुद्ध जंग छेड़ दी।
अगर आप यूपी के रहने वाले हैं तो आपको पता होना चाहिए कि राज्य के किन शहरों का अंग्रेजों के विरुद्धउपद्रव की आंधी चली और जिसका रिज़ल्ट 15 अगस्त में परिवर्तित हुआ।यूपी की उन जगहों पर 15 अगस्त के दिन आजादी का उत्सव मनाएं जो स्वतंत्रता संग्राम के उन दिनों की याद दिलाते हैं।
देश की आजादी के लिए पहली क्रांति 1857 में हुई। इस उपद्रव की आरंभ 10 मई को मेरठ से हुई थी। मेरठ में 10 मई की शाम को चर्च का घंटा बजा, जिसकी आवाज सुन लोग घरों से निकल कर एकत्र हो गएं और सदर बाजार में अंग्रेजी हुकूमत के विरुद्ध नारेबाजी करने लगे। आजादी के लिए सबसे पहले यहीं से बिगुल बजा, जिसकी आवाज देखते ही देखते दिल्ली तक पहुंच गई।
झांसी
रानी लक्ष्मीबाई का नाम इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा जा चुका है। जब भी इतिहास की सबसे साहसी, निडर और क्रांतिकारी स्त्रियों का जिक्र होगा, झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम सबसे पहले लिया जाएगा। झांसी से लक्ष्मीबाई ने ही 1857 की क्रांति की प्रतिनिधित्व की। 22 साल की उम्र में ही रानी लक्ष्मीबाई अंग्रेजों से लड़ते हुए शहादत को प्राप्त हुईं। उनकी वीरगति ने राष्ट्र के हर स्त्री और पुरुष को आजादी की लड़ाई में बिना डरे लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया।
लखनऊ
1857 की क्रांति की कमान लखनऊ में अवध के नवाब वाजिद अली शाह की पहली पत्नी बेगम हजरत महल ने संभाली। उन्होंने अंग्रेजों के विरुद्धउपद्रव कर दिया।हार के बाद भी वह ग्रामीण इलाकों में क्रांति की आग जलाती रहीं। 21 मार्च 1858 को अंग्रेजों ने लखनऊ पर अधिकार कर लिया। यहां रेजीडेंसी में आज भी भारतीय सैनिकों के खून के छींटे दिख जाते हैं।
गोरखपुर
उत्तर प्रदेश के गोरखपुर के पास भारतीय क्रांतिकारियों ने 5 फरवरी 1922 को ब्रिटिश पुलिस चौकी को आग लगा दी, जिसमें 22 पुलिसवालों का जलकर मृत्यु हो गई। चौरी-चौरा काण्ड आजादी की जंग के सबसे बड़े विद्रोहों में से एक था, जिसने ब्रिटिश हुकूमत को डरा कर रख दिया। हालांकि चौरी-चौरा काण्ड के चलते महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन वापस ले लिया था।