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स्वामी रंगनाथानन्द के जन्मदिवस के अवसर पर उनके जीवन से जुड़े जानें ये दिलचस्प किस्से

स्वामी रंगनाथानंद ‘रामकृष्ण संघ’ के एक हिंदू भिक्षु थे उनका पहले नाम ‘शंकरन कुट्टी’ था वे रामकृष्ण मिशन के तेरहवें संघ अध्यक्ष बने कन्याकुमारी में विवेकानन्द रॉक मेमोरियल के निर्माण के दौरान स्वामी रंगनाथनन्द प्रारम्भ से ही इसकी गतिविधियों में शामिल थे वह शिला स्मारक के संस्थापक श्री एकनाथ रानाडे के बहुत करीबी थे 15 सितंबर, 1970 को पीएम इंदिरा गांधी ‘विवेकानंद शिला स्मारक समिति’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुईं कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वामी रंगनाथानंद ने की

परिचय

स्वामी रंगनाथानंद का जन्म 15 दिसंबर, 1908 को केरल के त्रिशूर गांव में हुआ था उनका नाम शंकरराम था बाद में उन्होंने न सिर्फ़ हिंदुस्तान बल्कि दुनिया के कई राष्ट्रों का दौरा कर हिंदू चेतना और वेदांत के प्रति एक सार्थक दृष्टिकोण तैयार करने में जरूरी किरदार निभाई इसके साथ ही उन्होंने अपने बचपन के नाम शंकरम को अर्थ दिया

विवेकानन्द के गुरुभाई

1926 में, वह मैसूर में रामकृष्ण मिशन में शामिल हो गये इसके बाद उन्होंने मिशन गतिविधियों को ही अपने जीवन का एकमात्र कार्य बना लिया रामकृष्ण परमहंस के पसंदीदा शिष्य, स्वामी विवेकानन्द के गुरुभाई और मिशन के दूसरे अध्यक्ष स्वामी शिवानन्द ने उन्हें 1933 में संन्यास की दीक्षा दी उन्होंने आरंभ में मैसूर और फिर बैंगलोर में सफलतापूर्वक सेवा की इससे रामकृष्ण मिशन के कार्य में लगे भिक्षुओं के मन में धीरे-धीरे रामकृष्ण के प्रति प्रेम, सम्मान और भक्ति की भावना बढ़ती गई

मिशन प्रमुख

1939 से 1942 तक वे रामकृष्ण मिशन, रंगून (बर्मा) के अध्यक्ष और पुस्तकालयाध्यक्ष रहे इसके बाद उन्होंने 1948 तक कराची में चेयरमैन के तौर पर काम किया बीजेपी नेता लालकृष्ण आडवाणी ने खुले तौर पर अपने जीवन पर उनकी शिक्षाओं के असर को स्वीकार किया राष्ट्र के विभाजन के बाद उन्होंने 1962 तक दिल्ली में और फिर 1967 तक कोलकाता में रामकृष्ण मिशन की गतिविधियों का प्रबंधन किया इसके बाद उन्हें हैदराबाद भेज दिया गया 1989 में, उन्हें रामकृष्ण मिशन के उपाध्यक्ष के रूप में चुना गया और 1998 में, उन्हें अध्यक्ष के रूप में चुना गया उन्होंने हिंदुस्तान के सांस्कृतिक राजदूत के रूप में विश्व के कई राष्ट्रों का दौरा किया उन्होंने अपनी विद्वता और वाक्पटुता से वेदांत का सर्वत्र प्रचार-प्रसार किया उन्होंने कई किताबें लिखीं उनके भाषणों के कैसेट भी बहुत लोकप्रिय थे

कन्याकुमारी में विवेकानन्द रॉक मेमोरियल के निर्माण के दौरान वे प्रारम्भ से ही इसकी गतिविधियों से जुड़े रहे वह शिला स्मारक के संस्थापक श्री एकनाथ रानाडे के बहुत करीबी थे 15 सितंबर, 1970 को पीएम इंदिरा गांधी ‘विवेकानंद शिला स्मारक समिति’ द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में शामिल हुईं कार्यक्रम की अध्यक्षता स्वामी रंगनाथानंद ने की अपने अध्यक्षीय भाषण में स्वामीजी ने कन्याकुमारी और विवेकानन्द रॉक मेमोरियल को हिंदुस्तान का नया प्रतीक बताया जब स्वामी विवेकानन्द केन्द्र ने अपने कार्य के दूसरे चरण में उत्तर-पूर्व हिंदुस्तान में शैक्षिक एवं सेवा गतिविधियाँ शुरू कीं तो स्वामी रंगनाथानन्द ने लम्बे अनुभव से प्राप्त कई जरूरी सुझाव दिये उन्होंने विवेकानन्द केन्द्र को समय की मांग बताया एकनाथ जी और विवेकानन्द केन्द्र से जुड़े समर्पित युवक-युवतियों को देखकर उन्हें बहुत खुशी हुई

एक आशावादी दृष्टिकोण

स्वामी रंगनाथानंद सदैव आशावादी दृष्टिकोण रखते थे एक निराश कार्यकर्ता को लिखे पत्र में उन्होंने बोला – “यह एक दिन का काम नहीं है रास्ता कांटेदार है, लेकिन पार्थस्वामी हमारे सारथी बनने को तैयार हैं उनके नाम और उन पर दैनिक विश्वास के साथ, हम यह कर सकते हैं गरीबी हिंदुस्तान ने सदियों से झेला है” हटाओ इसे” हम पहाड़ों को जला देंगे इस संघर्ष के पथ पर सैकड़ों लोग गिरेंगे और सैकड़ों नये उठ खड़े होंगे आगे बढ़ो यह देखने के लिए पीछे मत देखो कि कौन गिरा ईश्वर है हमारे कमांडर हम निश्चित रूप से सफल होंगे

मौत

स्वामी रंगनाथानंद, एक योद्धा संत, जो अपने वचनों के प्रति सच्चे थे, उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा, 26 अप्रैल, 2004 को दिल का दौरा पड़ने से उनकी मौत हो गई

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