पीएम मोदी के इस फैसले ने नीतीश कुमार को भंवर में फंसा दिया है, RJD और JDU में तनातनी
Bihar Politics: ‘स्व। कर्पूरी ठाकुर जी को राष्ट्र का सर्वोच्च सम्मान ‘भारत रत्न’ दिया जाना हार्दिक प्रसन्नता का विषय है… इसके लिए माननीय पीएम श्री नरेन्द्र मोदी जी को धन्यवाद।’ पुराना ट्वीट डिलीट कर नए में पीएम को धन्यवाद बोलना बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (Nitish Kumar) की विडंबना को दिखाता है। जिस कर्पूरी ठाकुर की विरासत को बढ़ाने की बात पर बिहार में रेस दिखाई देती है, गवर्नमेंट ने एक झटके में बाजी पलट दी। कल दोपहर तक कर्पूरी ठाकुर की जयंती मनाने को लेकर जेडीयू और भाजपा में विवाद देखी जा रही थी। एक ग्राउंड पर दो दावेदार थे लेकिन रात होते-होते राजनीतिक गर्माहट ने पारा बढ़ा दिया। पिछले दो-तीन महीने के सियासी घटनाक्रम को देखें तो समझ में आ जाएगा कि मोदी के एक निर्णय ने कैसे नीतीश कुमार को भंवर में फंसा गया।
हो सकता है कुछ लोग इसे ‘ना इधर के, ना उधर के’ वाली स्थिति भी कहें। 72 वर्ष के नीतीश के बारे में कुछ महीने पहले तक बोला जाता था कि वह केंद्रीय किरदार में स्वयं को देख रहे हैं। जेडीयू कैंप मानकर चलने लगा कि तेजस्वी यादव को अब मुख्यमंत्री की कुर्सी मिलने ही वाली है। लालू यादव भी तैयारी करने लगे थे लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले I.N.D.I.A गठबंधन में नीतीश को वो रेट नहीं मिला जिसकी उन्हें आशा थी। दिल्ली बैठक में कांग्रेस पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम आगे कर दिया गया। बोला गया कि नीतीश कुमार नाराज होकर शीघ्र चले गए।
इसके बाद हर रोज अटकलबाजियों का दौर चलता रहा। नीतीश को ऐसा लगा कि उन्हें इण्डिया अलायंस में इग्नोर किया जा रहा है। वही थे जिसने एंटी-बीजेपी मोर्चा खड़ा करने के लिए शुरुआती कोशिश किए थे। वह सरलता से संयोजक बनाए जाने की आशा कर रहे थे लेकिन जेडीयू की तरफ से ‘बैटिंग’ जोरदार ढंग से नहीं हुई। ऐसे में ललन सिंह पर गाज गिरी। नीतीश ने पार्टी की कमान अपने हाथों में ले ली। बाद में समाचार आई थी कि राहुल और खरगे ने नीतीश ने बात की। उन्हें मनाने की कोशिशें हुईं और संयोजक पद ऑफर हुई तो नीतीश ने स्वयं इंकार कर दिया।
नीतीश सीट शेयरिंग समझौता शीघ्र चाह रहे थे लेकिन अब तक स्थिति साफ नहीं हो सकी है। कुछ दिन पहले तेजस्वी-लालू मिले तो बोला गया कि 17-18 सीटें वे आपस में बांट सकते हैं। बाकी में कांग्रेस पार्टी और दूसरे दल होंगे। हालांकि इस पर भी बात फाइनल नहीं हुई। जाहिर है नीतीश का कांग्रेस पार्टी के साथ सामंजस्य बन नहीं पा रहा है। यही वजह है कि कल जब वह शायद बजट पर चर्चा करने के लिए राजभवन गए तो पाला बदलने की अटकलें लगाई जाने लगीं।
दो दिन पहले कांग्रेस पार्टी के नेता दावा कर रहे थे कि राहुल गांधी की यात्रा जब बिहार आएगी तो नीतीश कुमार स्वागत करेंगे। हालांकि कुछ घंटे पहले जेडीयू ने बोला कि कांग्रेस पार्टी से कोई वार्ता नहीं हुई है।
आरजेडी vs जेडीयू तनातनी
पिछली बार जब नीतीश ने महागठबंधन तोड़ा था तब तेजस्वी और लालू परिवार करप्शन में घिरा दिख रहा था। इस समय भी आरजेडी के साथ जेडीयू के संबंध अच्छे नहीं हैं। लालू यादव 20 सीटें मांग रहे हैं। RJD का तर्क है कि वोटों का समीकरण आरजेडी के फेवर में है इसलिए जेडीयू को कम सीटों पर लड़ना चाहिए। जेडीयू की कमान जब नीतीश ने अपने हाथों में ली थी तो पार्टी अंदरूनी कलह से गुजर रही थी। अब नीतीश को डर यह है कि यदि 16-17 सीटें नहीं मिलीं तो कई सांसद पार्टी छोड़ सकते हैं। कई भरोसेमंद पहले ही किनारा कर चुके हैं।
वैसे भी मीडिया रिपोर्टों में नीतीश की लोकप्रियता का ग्राफ कम दिखाया जा रहा है। आरजेडी मुस्लिम-यादव वोट (35 प्रतिशत) अपने साथ मान रही है। पिछले लोकसभा चुनाव में आरजेडी-कांग्रेस-लेफ्ट को 37 फीसदी वोट मिले थे। इसी पर अब आरजेडी अधिक सीटें मांग रही है।
तनातनी की वजह यही नहीं है। जब ललन सिंह का त्याग-पत्र हुआ तो इल्जाम लगे थे कि वह लालू के करीब होते जा रहे थे। वह आरजेडी से चुनाव लड़ने का मन भी बना चुके हैं। यहां तक बोला गया कि नीतीश को लगने लगा था कि आरजेडी उनकी पार्टी को तोड़ना चाहती है। भाजपा के कुछ नेता कहने लगे थे कि लालू ने समीकरण सेट कर लिया है। इससे नीतीश की टेंशन बढ़ती गई।
अचानक मंत्री बदले
आरजेडी से विवाद के बीच पिछले शनिवार को नीतीश ने कैबिनेट के तीन मंत्रियों के विभाग बदल दिए। चंद्रशेखर, आलोक मेहता और ललित यादव तीनों आरजेडी कोटे से हैं। इससे पहले नीतीश ने अपनी पार्टी की नयी टीम बनाई, जिसमें ललन सिंह को स्थान नहीं मिली। पुराने नेताओं को अधिक तवज्जो दी गई है। जेडीयू-आरजेडी के संबंध में खटास की चर्चा हो ही रही थी कि गृह मंत्री अमित शाह का एक साक्षात्कार सामने आया। उन्होंने बोला कि पुराने साथी आना चाहेंगे तो विचार किया जाएगा।
बिहार के शिक्षा मंत्री रहे चंद्रशेखर और अपर मुख्य सचिव केके पाठक के बीच काफी टकराव देखा गया। इसका असर महागठबंधन पर भी दिखा। लालू के करीबी एमएलसी सुनील सिंह ने नीतीश कुमार के विरुद्ध खुलकर बोला। उन्होंने बोला कि मुख्यमंत्री का किसी मंत्री से टकराव होता है तो नीतीश कुमार इस तरह के अधिकारी उनके विभाग में भेज देते हैं। चार-पांच मंत्रियों को छोड़कर सभी मंत्री अपने अधिकारी से परेशान रहते हैं। बोला गया कि जब चंद्रशेखर ने रामचरितमानस को लेकर विवादित बात कही तो नीतीश नाराज हुए थे और केके पाठक को उनके विभाग में डाल दिया।
बीजेपी ने छीन लिया नीतीश का मुद्दा
पिछड़े समुदाय की राजनीति करने वाले नीतीश कुमार से भाजपा ने बड़ा मामला छीन लिया। जातीय सर्वे के बाद जेडीयू जिस बढ़त की आशा कर रही थी, कर्पूरी ठाकुर को हिंदुस्तान रत्न बनाने के बाद उस पर असर पड़ सकता है। हो सकता है इससे नीतीश नए समीकरण देख बीजेपी से असल में खुश हो जाएं। जाहिर है चुनाव में बीजेपी अब पिछड़ी जातियों के लिए सम्मान की बात जोरशोर से उछालेगी। अब नीतीश कुमार को देखना है कि वह क्या करते हैं।