मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के इस्तीफे को लेकर बीजेपी नेता निशिकांत दुबे ने कही ये बड़ी बात
झारखंड की राजनीति में तगड़ी हलचल देखने को मिल रही है। सीएम हेमंत सोरेन के इस्तीफे को लेकर भी चर्चांए तेज हैं। इसी बीच भाजपा नेता निशिकांत दुबे ने घटनाक्रम को लेकर एक ट्वीट किया है। उन्होंने लिखा कि सीएम हेमंत सोरेन जी परेशान, उनके सचिव चौबे जी से लेकर महाधिवक्ता मिश्रा जी गांडेय उप चुनाव कराने के लिए परेशान, विधायक दल की बैठक कल है, गवर्नर के पास अपना त्याग-पत्र और कल्पना सोरेन जी को विधायक दल का नेता बनाने वाला पत्र गवर्नर महोदय को एक साथ देने की तैयारी है। उन्होंने यह भी लिखा कि झारखंड के गवर्नर से विनम्र अनुरोध है कि कानूनी राय के बाद ही फैसला लें।
विधायकों की बैठक 3 जनवरी को
असल में ऐसा बताया जा रहा है कि हेमंत सोरेन त्याग-पत्र दे सकते हैं। इसी कड़ी में तीन जनवरी को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के आवास में सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन के विधायकों की बैठक बुलाई गई है। इसमें सभी विधायकों को जरूरी रूप से मौजूद होने को बोला गया है। चर्चा है कि इस बैठक में हेमंत सोरेन की पत्नी कल्पना सोरेन को गठबंधन का नया नेता चुने जाने पर सहमति बनाई जा सकती है। मंगलवार सुबह 11 बजे मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के महाधिवक्ता राजीव रंजन को अपने आवास बुलाकर मौजूदा घटनाक्रमों को लेकर विचार-विमर्श किया। इसके थोड़ी ही देर बाद सत्तारूढ़ गठबंधन के विधायकों की बैठक 3 जनवरी को बुलाने का फैसला लिया गया।
कुछ दिनों में प्रवर्तन निदेशालय की संभावित कार्रवाई
इस पूरे राजनीतिक घटनाक्रम की वजह है कि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन के विरुद्ध अगले कुछ दिनों में प्रवर्तन निदेशालय की संभावित कार्रवाई हो सकती है। सोरेन को प्रवर्तन निदेशालय ने जमीन घोटाले में बयान दर्ज कराने के लिए अब तक सात समन भेजे हैं। वह किसी भी समन पर हाजिर नहीं हुए। प्रवर्तन निदेशालय ने सातवां समन 29 दिसंबर को भेजा था। इसे एजेंसी ने अंतिम समन कहा था। इसमें बोला गया था कि वे सात दिनों के अंदर प्रवर्तन निदेशालय के समक्ष बयान दर्ज कराने के लिए मौजूद हों। इसके लिए समय और जगह तय करने के लिए उन्हें दो दिनों यानी 31 दिसंबर का समय दिया गया था। यह डेडलाइन गुजर गई और हेमंत सोरेन ने कोई उत्तर नहीं दिया।
लालू-राबड़ी मॉडल को दोहराने की तैयारी
ईडी की ओर से बयान दर्ज कराने के लिए दिया गया सात दिन का समय 5 जनवरी को समाप्त हो जाएगा। इसके बाद वह जांच में असहयोग का हवाला देकर हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी के लिए न्यायालय से वारंट हासिल कर सकती है। सोरेन के नेतृत्व वाले राज्य के सत्तारूढ़ गठबंधन को इस हालात का अनुमान पहले से था। ऐसी स्थिति में झारखंड में सत्ता बरकरार रखने के लिए बिहार में सालों पहले आजमाए गए “लालू-राबड़ी मॉडल” को दोहराने की तैयारी चल रही है। वर्ष 1997 में बिहार के तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद के विरुद्ध जब चारा घोटाले में CBI जांच का शिकंजा कसा था तो उन्होंने विधायक दल की बैठक बुलाकर स्वयं की स्थान अपनी पत्नी राबड़ी देवी के नेतृत्व पर सहमति बनाई थी और उन्होंने मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाली थी।
उधर गिरिडीह के गांडेय विधानसभा क्षेत्र के जेएमएम विधायक सरफराज अहमद ने 31 दिसंबर को विधानसभा की सदस्यता से त्याग-पत्र दे दिया। रणनीति यह है कि अगले छह महीनों में इस सीट पर उपचुनाव कराए जाने पर कल्पना सोरेन चुनाव लड़ेंगी और विधानसभा पहुंचेंगी। झारखंड की मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 5 जनवरी, 2025 में पूरा हो रहा है। नियमों के मुताबिक किसी विधानसभा का कार्यकाल यदि एक वर्ष से अधिक बाकी हो तो कोई सीट खाली होने पर जरूरी रूप से उपचुनाव कराया जाएगा। स्वयं सरफराज अहमद ने स्वीकार किया है कि उन्होंने राज्य में झामुमो-कांग्रेस-राजद गठबंधन की गवर्नमेंट को सुरक्षित रखने के उद्देश्य से त्याग-पत्र दिया है