आईआईटी मुंबई और आईआईटी चेन्नई के विद्यार्थियों द्वारा खुदकुशी किए जाने की दुखद घटनाएं भी सामने आए

नई दिल्ली, 19 मार्च (आईएएनएस). बीते दिनों चेन्नई, तेलंगाना, राजस्थान, मुंबई, पुणे, वाराणसी आदि समेत अन्य कई शहरों में विद्यार्थियों द्वारा खुदकुशी जैसे दुखद कदम उठाने की घटनाएं सामने आई हैं. भिन्न-भिन्न शहरों में विद्यार्थियों द्वारा की गई खुदकुशी के भिन्न-भिन्न कारण हो सकते हैं. लेकिन विश्व स्वास्थ्य संगठन यानी विश्व स्वास्थ्य संगठन बताता है कि लगभग 10 फीसदी किशोर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मानसिक विकार का अनुभव करते हैं.
अधिक चिंताजनक बात यह है कि मानसिक विकार से जूझ रहे ये युवा कोई सहायता या देखभाल नहीं चाहते हैं. आंकड़े बताते हैं कि 15-19 साल के व्यक्तियों में आत्महत्या, मौत का चौथा प्रमुख कारण है. जानकारों के अनुसार ये आंकड़े शैक्षणिक संस्थानों के लिए एक चेतावनी हैं कि विद्यार्थियों में मानसिक स्वास्थ्य विकार एक जरूरी संकट है और इसका निवारण आवश्यक है.
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री सुभाष गवर्नमेंट के अनुसार इस साल अभी तक आईआईटी और एनआईटी जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों में छह विद्यार्थियों ने खुदकुशी की है. बीते वर्ष 16, साल 2021 में 7, 2020 में 5, 2019 में 16 और 2018 में 11 विद्यार्थियों ने खुदकुशी की थी. बीते पांच सालों में आईआईटी, एनआईटी, आईआईएम जैसे उच्च शिक्षण संस्थानों के कुल 55 विद्यार्थियों ने खुदकुशी की है.
हाल ही में आईआईटी मुंबई और आईआईटी चेन्नई के विद्यार्थियों द्वारा खुदकुशी किए जाने की दुखद घटनाएं भी सामने आए हैं. आईआईटी मुंबई में एक 18 वर्षीय दलित विद्यार्थी ने खुदकुशी की है. विद्यार्थी ने हॉस्टल की सातवीं मंजिल से कूदकर खुदकुशी कर ली थी.
केंद्रीय शिक्षा राज्य मंत्री के अनुसार अकादमिक तनाव को कम करने के लिए संस्थानों की तरफ से कई कदम उठाए जा रहे हैं. उन्होंने बताया कि विद्यार्थियों में पढ़ाई का तनाव कम करने के लिए पाठ्यक्रमों को क्षेत्रीय भाषाओं में पेश किया गया है. क्षेत्रीय भाषाओं में पाठ्यक्रमों को बढ़ावा देते हुए ऑल इण्डिया काउंसिल ऑफ टेक्निकल एजुकेशन ने 12 भिन्न-भिन्न टेक्निकल कोर्स का पूरा सिलेबस क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद कर विद्यार्थियों के लिए जारी किया है.
मनोचिकित्सा एके भामरी बताते हैं कि कोविड-19 महामारी के बाद मानसिक विकार से जूझ रहे विद्यार्थियों की संख्या में वृद्धि हुई है. विद्यार्थियों में मानसिक स्वास्थ्य विकार के अनेक कारण हैं. इनमें परीक्षा का दबाव, पढ़ाई का तनाव, सहपाठियों से प्रतिस्पर्धा और पारिवारिक दबाव प्रमुख हैं. इसके अलावा, जैसे-जैसे शिक्षण संस्थानों में दाखिले के लिए प्रतिस्पर्धा का स्तर बढ़ रहा है, वैसे वैसे विद्यार्थियों पर भी दबाव कई गुना बढ़ता जा रहा है.
आईआईएलएम विश्वविद्यालय, गुरुग्राम की कुलपति डॉ सुजाता शाही ने कहा, इन मुद्दों में पारिवारिक समस्याएं, वित्तीय कठिनाइयां, अलगाव की भावनाएं, सामाजिक दबाव, चिंता और पढ़ाई का तनाव शामिल हैं.
छात्र समुदाय की सामाजिक, भावनात्मक और मनोवैज्ञानिक समस्याओं को समझने और उनका निवारण करने के इरादे से, अधिकतर विश्वविद्यालयों ने कॉलेज परिसर में परामर्श प्रकोष्ठ प्रारम्भ किया है. यह एक्टिव सुनवाई और समय पर प्रतिक्रिया के माध्यम से विद्यार्थियों को पर्याप्त योगदान प्रदान करता है. साथ ही वेलनेस को अहमियत देने के लिए एक अनुकूल वातावरण की जरूरत है.
इस परेशानी पर मशहूर शिक्षाविद सीएस कांडपाल का मानना है विद्यार्थियों के लिए वह समय विशेष रूप से जरूरी और तनाव भरा रहता है जब वे किसी परीक्षा में शामिल होने की तैयारी कर रहे होते हैं. दूसरा अवसर वह होता है जब इन परीक्षाओं का परिणाम आता है. विद्यार्थी इसके बारे में चिंता का अनुभव करते हैं. ऐसी स्थितियों में विद्यार्थियों के मानसिक तनाव को पर्सनल प्रेरणा देने की जरूरत है.
कभी-कभी, मानसिक स्वास्थ्य इस बात से प्रभावित होता है कि माता-पिता सम्पूर्ण तैयारी चक्र के दौरान घर पर विभिन्न स्थितियों पर किस प्रकार की प्रतिक्रिया देते हैं. इसकी नज़र के लिए विद्यार्थियों और अभिभावकों के बीच नियमित रूप से वार्ता और संवाद होना चाहिए. कांडपाल के अनुसार विद्यार्थियों को यह समझाने की जरूरत है कि जीवन में कोई भी परीक्षा आखिरी नहीं है.
दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हंसराज सुमन के अनुसार कई बार आईआईटी समेत अन्य उच्च शिक्षण संस्थानों के कुछ विद्यार्थी अन्य विद्यार्थियों से मेलजोल नहीं बढ़ा पाते हैं और अकेलेपन का शिकार होकर खुदकुशी जैसा जघन्य कदम उठा लेते हैं.
उनका बोलना है कि आईआईटी या फिर ऐसे ही अन्य शिक्षण संस्थानों में विद्यार्थी राष्ट्र के विभिन्न हिस्सों से आते हैं. उनकी बोली, रहन-सहन, आर्थिक और पढ़ाई का स्तर एक दूसरे से भिन्न होता है. बहुत थोड़ी संख्या में लेकिन फिर भी कुछ विद्यार्थी यहां तनाव में आकर खुदकुशी जैसा कदम उठा लेते हैं.
प्रोफेसर सुमन के अनुसार कई मामलों में देखने में आया है कि विद्यार्थी पेरेंट्स का दबाव सहन नहीं कर पाते और स्वयं को असफल मानते हुए ऐसा कदम उठाते हैं. कुछ मामलों में मनचाहा कोर्स न मिल पाने के कारण भी विद्यार्थी बहुत तनाव में चले जाते हैं.