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AAP मंत्री सौरभ भरद्वाज ने केंद्र सरकार पर लगाया ये आरोप

नई दिल्ली: आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता और दिल्ली गवर्नमेंट के मंत्री सौरभ भारद्वाज ने गुरुवार को पांच राज्यों में आनें वाले विधानसभा चुनावों के प्रचार में पार्टी नेताओं द्वारा राम मंदिर का इस्तेमाल करने को लेकर बीजेपी के नेतृत्व वाले केंद्र की निंदा की. भारद्वाज ने इल्जाम लगाया कि केंद्र गवर्नमेंट ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया बदल दी क्योंकि वह चाहती है कि हिंदुस्तान के चुनाव आयोग का नेतृत्व बीजेपी के प्रति सहानुभूति रखने वाले को दिया जाए.

भारद्वाज ने मीडिया को कहा कि, “केंद्र गवर्नमेंट ने मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति की पिछली पद्धति को बदल दिया, क्योंकि वे चाहते हैं कि चुनाव आयोग का नेतृत्व करने वाला आदमी (भाजपा का) सहानुभूति रखने वाला हो, उनके विचारों को साझा करने वाला हो.” हाल ही में, केंद्रीय मंत्री अमित शाह ने मध्य प्रदेश के गुना में एक रैली को संबोधित किया, जहां उन्होंने वादा किया कि यदि मध्य प्रदेश में उनकी गवर्नमेंट बनती है तो भाजपा, ईश्वर राम लला के दर्शन का खर्च वहन करेगी.

बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए, शिवसेना (बालासाहेब ठाकरे) सांसद संजय राउत ने शाह और पार्टी पर निशाना साधते हुए बोला था कि, “भगवान राम पूरे राष्ट्र और दुनिया के लिए मशहूर हैं, लेकिन जिस तरह से चुनाव अभियान में राम लला को प्रचारित किया जा रहा है, मतलब ये कि यदि मध्य प्रदेश की जनता ने आपको हरा दिया तो लोगों को रामलला के दर्शन करने से रोक दिया जाएगा. हमारे राष्ट्र में किस तरह की राजनीति चल रही है?”

उन्होंने आग्रह किया कि चुनाव आयोग को इस संबंध में कार्रवाई करनी चाहिए और बीजेपी नेताओं से माफी की मांग की. राउत ने बोला कि, “जिस तरह से प्रचार में मामले उठाए जा रहे हैं, उसके लिए भाजपा को माफी मांगनी चाहिए. क्या आप रामलला के मालिक बन गए हैं या रामलला ने आपको अपना एजेंट नियुक्त किया है? यह बहुत गंभीर मुद्दा है. यदि चुनाव आयोग सच में जिंदा है तो कार्रवाई होनी चाहिए.

बता दें कि, भारद्वाज की टिप्पणी ऐसे समय में आई है जब केंद्र 4 दिसंबर से प्रारम्भ होने वाले संसद के शीतकालीन सत्र में मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तें और कार्यालय की अवधि) विधेयक, 2023 को पेश करने की तैयारी कर रहा है. यह विधेयक उन कानूनी प्रावधानों को बदलने का कोशिश करता है जो चुनाव आयुक्तों को उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के बराबर बनाते हैं. विधेयक पारित होने के बाद चुनाव आयुक्त कैबिनेट सचिव के बराबर आ जाएंगे.

 

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