चंद्रयान-3 की दक्षिणी ध्रुव पर सफल लैंडिंग ने रचा इतिहास
इसरो ने चंद्रयान-3 को दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक उतारकर इतिहास रच दिया है। दुनिया की निगाहें हिंदुस्तान के इस मिशन पर टिकी थीं। ‘चंद्रयान-3’ की सॉफ्ट लैंडिंग के बाद हिंदुस्तान दुनिया में रूस, अमेरिका और चीन के बराबर आ गया है। इसके साथ ही हिंदुस्तान दक्षिणी ध्रुव पर सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला राष्ट्र बन गया है। इससे पहले तीन राष्ट्रों ने चंद्रमा की सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग कर यह कामयाबी हासिल की थी।
‘इसरो’ ने चंद्रयान 3 की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए प्लान ‘बी’ तैयार किया था। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि लैंडिंग के दौरान कोई बाधा आने पर लैंडिंग का समय बढ़ाया जा सके।
अंतरिक्ष वैज्ञानिकों का बोलना है कि चंद्रयान-3 को तैयार करने में ‘1580’ आंखों का बड़ा सहयोग है। ये वो आंखें हैं जिन्होंने एक पल के लिए भी स्वयं को चंद्रयान 3 से अलग नहीं किया है। 14 जुलाई से इसरो के 790 वैज्ञानिक दिन-रात इस मिशन में लगे हुए हैं। वैज्ञानिकों ने चंद्रयान 3 की 960 घंटे तक नज़र की है।
इसरो में वैज्ञानिकों की कई टीमें भिन्न-भिन्न काम में लगी हुई थीं। कोई चंद्रयान की दिशा देख रहा था तो कोई गति। किसी को तकनीकी गड़बड़ियों की जांच करने का काम सौंपा गया था जबकि एक वैज्ञानिक चंद्रयान को उतारने के लिए प्लेटफॉर्म तैयार कर रहा था। प्रबंधित मिशनों के तहत, यह सब ‘मिनट टू मिनट’ आधार पर हुआ। रॉकेट के उड़ान भरने के बाद कई टीमों की नजर लैंडर से नहीं हटी। इसरो के कंट्रोल सेंटर में करीब 200 वैज्ञानिकों की टीम हर पल पर नजर रख रही थी। चंद्रयान 3 की योजना की बात करें तो इसमें 790 से अधिक वैज्ञानिक शामिल रहे हैं।
‘इसरो’ ने चंद्रयान 3 की सॉफ्ट लैंडिंग के लिए प्लान ‘बी’ तैयार कर लिया है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि लैंडिंग के दौरान कोई बाधा आने पर लैंडिंग का समय बढ़ाया जा सके। हालाँकि, यह योजना तभी लागू की जानी थी जब चंद्रमा के सामने एक विशाल आकार का गड्ढा हो। हालांकि, इसरो चट्टानों और बड़े गड्ढों से निपटने में भी सफल रहा। आखिरी समय के बाद भी सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया तीन से चार दिन तक बढ़ सकती है। अगर गड्ढा अधिक बड़ा और गहरा नहीं है तो चिंता करने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि लैंडर और रोवर के सोलर पैनल को पर्याप्त धूप मिलेगी।
अंतरिक्ष आयोग के सदस्य डॉ। किरण कुमार ने कहा, चंद्रयान-3 को लेकर इसरो काफी आशावादी था। इसके लिए सैकड़ों वैज्ञानिकों ने दिन-रात मेहनत की है। यहां तक कि जब कोई वैज्ञानिक अपनी शिफ्ट समाप्त करके घर जाता था तो उसे नींद नहीं आती थी और तब भी वह स्वयं को अपडेट रखने के लिए कंट्रोल सेंटर से बात करता था। सभी में एक ही जुनून था कि चंद्रयान 3 चंद्रमा पर सुरक्षित सॉफ्ट लैंडिंग करे। चंद्रयान को कहां उतारना है, ये सारी बातें पहले से ही तय थीं।