कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा को शुक्रवार को लोकसभा से किया निष्कासित, जानें क्या है मामला
तृणमूल कांग्रेस पार्टी सांसद महुआ मोइत्रा (Mahua Moitra) को शुक्रवार को लोकसभा (Lok Sabha) से निष्कासित कर दिया गया। सदन ने अपनी आचार समिति की उस रिपोर्ट को अपनाया, जिसमें उन्हें ‘अनैतिक आचरण’ में शामिल होने और ‘गंभीर दुष्कर्म’ करने का गुनेहगार ठहराया गया और उनके निष्कासन की सिफारिश की गई। जबकि उनकी पार्टी ने उनका समर्थन किया है और इस मामले पर सियासी रूप से लड़ने की कसम खाई है। इन सबसे बावजदू सबसे बड़ा प्रश्न है कि उनके लिए आगे की कानूनी लड़ाई का रास्ता क्या है? ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक रिपोर्ट के अनुसार लोकसभा के पूर्व महासचिव पीडीटी आचार्य का बोलना है कि उनके पास निष्कासन को उच्चतम न्यायालय में चुनौती देने का विकल्प है।
आजार्य बताते हैं कि ‘आम तौर पर सदन की कार्यवाही को प्रक्रियात्मक अनियमितता के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है। संविधान का अनुच्छेद 122 इसके बारे में बहुत साफ है। यह सदन की कार्यवाही को न्यायालय की चुनौती से प्रतिरक्षा प्रदान करता है। अनुच्छेद 122 कहता है कि “प्रक्रिया की किसी भी कथित अनियमितता के आधार पर संसद में किसी भी कार्यवाही की वैधता पर प्रश्न नहीं उठाया जाएगा।’ हालाकि आचार्य बताते हैं, उच्चतम न्यायालय ने 2007 के राजा राम पाल मुद्दे में बोला था कि ‘वे प्रतिबंध सिर्फ़ प्रक्रियात्मक अनियमितताओं के लिए हैं। ऐसे अन्य मुद्दे भी हो सकते हैं जहां न्यायिक समीक्षा महत्वपूर्ण हो सकती है।’
राजा राम पाल मामला
बसपा के नेता राजा राम पाल दिसंबर 2005 में कैश-फॉर-क्वेरी घोटाले में कथित संलिप्तता के लिए निष्कासित किए गए 12 सांसदों में शामिल थे। इनमें 11 लोकसभा से और एक राज्यसभा से सांसद थे। जनवरी 2007 में उच्चतम न्यायालय की एक संविधान पीठ ने 4-1 के बहुमत से निष्कासित सांसदों की दाखिल याचिकाओं को खारिज कर दिया और निष्कासन को कायम रखा था। लेकिन साथ ही उच्चतम न्यायालय ने बोला कि ‘जो कार्यवाही असली या घोर अवैधता या असंवैधानिकता के कारण दागी हो सकती है, उनका न्यायिक जांच से बचाव नहीं किया जाता है।’
सुप्रीम न्यायालय ने क्या कहा?
तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश वाईके सभरवाल की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने आगे बोला कि ‘न्यायपालिका को नागरिकों को दिए गए मौलिक अधिकारों पर कब्ज़ा करने वाली विधायिका की कार्रवाई की वैधता की जांच करने से नहीं रोका गया है। अवमानना या विशेषाधिकार की शक्ति के प्रयोग के ढंग की न्यायिक समीक्षा का मतलब यह नहीं है कि उस क्षेत्राधिकार को न्यायपालिका द्वारा हड़प लिया जा रहा है।’ इसमें संविधान के अनुच्छेद 105(3) के बारे में भी बात की गई। संविधान का अनुच्छेद 105 संसद और उसके सदस्यों और समितियों की शक्तियों और विशेषाधिकारों से संबंधित है।
चुनौती का आधार
महुआ मोइत्रा ने दावा किया है कि उन्हें प्राकृतिक इन्साफ से वंचित कर दिया गया। कथित तौर पर उन्हें घूस देने का इल्जाम लगाने वाले व्यापारी दर्शन हीरानंदानी और मूल रूप से उनके विरुद्ध इल्जाम लगाने वाले वकील जय अनंत देहाद्राई से उनको जिरह करने की अनुमति नहीं दी गई थी। आचार्य का बोलना है कि ‘मोइत्रा पर एक मुख्य इल्जाम यह है कि उन्होंने संसद का लॉगिन-पासवर्ड किसी अन्य आदमी के साथ साझा किया है। लोकसभा के नियम उस पर चुप हैं। यह नहीं कहता कि यह नियम का उल्लंघन है। वे कहते हैं कि यदि इस विषय पर कोई नियम या कानून नहीं है, तो आप कानून का उल्लंघन करने वाले आदमी के विरुद्ध कैसे कार्रवाई कर सकते हैं? इस विशेष मुद्दे में यह एक बुनियादी परेशानी है। जबकि प्रश्न पूछने के लिए एक व्यवसायी से (कथित तौर पर) पैसे लेना विशेषाधिकार का उल्लंघन था और इसकी विशेषाधिकार समिति द्वारा जांच की जानी चाहिए थी।’