दिदिल्ली पुलिस ने न्यूजपोर्टल न्यूजक्लिक के कार्यालय को किया सील
Anti-terror Law: दिल्ली पुलिस ने चीन के समर्थन में प्रचार करने के लिए पैसे लेने का इल्जाम लगाते हुए न्यूजपोर्टल न्यूजक्लिक के कार्यालय को सील कर दिया। पोर्टल के विरुद्ध दर्ज की गई एफआईआर में अवैध गतिविधियां रोकथाम अधिनियम यानी यूएपीए लागू किया गया है। एफआईआर में इल्जाम लगाया गया है कि न्यूजपोर्टल को कथित तौर पर अमेरिका के जरिये चीन से गैरकानूनी धन हासिल हुआ। एफआईआर में यूएपीए की विभिन्न धाराओं के अनुसार इल्जाम लगाए गए हैं। इनमें मुख्य धारा-16 है, जो आतंकी गतिविधियों के लिए सजा तय करती है। जानते हैं कि यूएपीए क्या है और इसे कब लागू किया जाता है?
यूएपीए की धारा-15 आतंकी गतिविधि को परिभाषित करती है। इकसे अनुसार न्यूनतम पांच वर्ष से लेकर जीवन भर जेल तक की सजा का प्रावधान है। यदि आतंकी गतिविधि में किसी की मृत्यु हो जाती है, तो गुनेहगार को मृत्यु दंड या जीवन भर जेल का प्रावधान है। प्रावधान कहता है कि जो कोई भी हिंदुस्तान की एकता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा, या संप्रभुता को धमकी देने या धमकी देने की संभावना के इरादे से या हिंदुस्तान में या किसी दूसरे राष्ट्र में हिंदुस्तानियों या किसी भी वर्ग में आतंक फैलाने के इरादे से या आतंक फैलाने की संभावना के साथ कोई काम करता है तो वो इस कानून के दायरे में आएगा।’
क्या है अवैध गतिविधियां रोकथाम कानून?
गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम यानी यूएपीए को आतंकवादी गतिविधियों पर नकेल कसने के लिए लाया गया था। यूएपीए के अनुसार आतंकवादियों और आतंकवादी गतिविधियों में शामिल संदिग्ध लोगों के विरुद्ध कार्रवाई की जाती है। यूएपीए के अनुसार राष्ट्रीय जांच एजेंसी यानी एनआई संदिग्ध या आरोपी की संपत्ति बरामद और कुर्क कर सकती है। यूएपीए को 1967 में लाया गया था। इस कानून को संविधान के अनुच्छेद-19(1) के अनुसार दिए गए मौलिक अधिकार पर तर्कसंगत सीमाएं लगाने के लिए पेश किया गया था। यूएपीए का उद्देश्य हिंदुस्तान की अखंडता और संप्रभुता को चुनौती देने वाली गतिविधियों पर रोक लगाने के लिए गवर्नमेंट को ज्यादा अधिकार देना था। यूएपीए को विशेष हालात में लागू किया जा सकता है।
आईपीसी के होते यूएपीए की आवश्यकता क्यों पड़ी?
इस समय हिंदुस्तान में यूएपीए अकेला कानून है, जो अवैध और आतकंवाद से जुड़ी गतिविधियों पर लागू होता है। दरअसल, कई ऐसे क्राइम थे, जिनका आईपीसी में जिक्र तक नहीं था। लिहाजा, 1967 में अवैध गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम की आवश्यकता महसूस हुई। इसके बाद यूएपीए लाया गया था। यूएपीए अवैध और आतंकवाद से जुड़ी गतिविधियों, आतंकी गठजोड़ और आतंकी संगठनों को साफ रूप से परिभाषित करता है। कानून बताता है कि ये सब क्या हैं और कौन हैं? बता दें कि केंद्रशासित प्रदेश बनने से पहले तक जम्मू-कश्मीर में आईपीसी की स्थान रणबीर पीनल कोड लागू होता था। वहीं, यूएपीए जम्मू-कश्मीर में भी लागू होता था।
यूएपीए में 6 बार किए जा चुके हैं बदलाव
देश में आतंकवाद पर नकेल कसने के लिए 1967 में यूएपीए, 1987 में टाडा, 1999 में मकोका, 2002 में पोटा और 2003 में गुजकोका जैसे कानून लागू किए गए। आतंकवादी गतिविधियों से जुड़े पोटा और टाडा जैसे कानून समाप्त करने के बाद 2019 में केंद्र गवर्नमेंट ने यूएपीए में कई परिवर्तन किए। इसे पहले और बाद में भी इस कानून को ज्यादा मजबूत बनाने के लिए परिवर्तन किए जा चुके हैं। अब तक यूएपीए को मजबूती देने के लिए छह बार महत्वपूर्ण परिवर्तन किए गए हैं। एक संशोधन ऐसा भी किया गया है, जिसके बाद गवर्नमेंट किसी भी संगठन को आतंकवादी संगठन घोषित कर सकती है। यूएपीए के अनुसार शक होने भर से ही पुलिस या जांच एजेंसी किसी भी व्यक्ति को आतंकी घोषित कर सकती है। आरोपी कार्रवाई के विरुद्ध गवर्नमेंट की बनाई रिव्यू कमेटी के पास जा सकता है। बाद में न्यायालय में भी अपील की जा सकती है।
यूएपीए के अनुसार आतंकी कौन है?
यूएपीए की धारा-15 के मुताबिक, हिंदुस्तान की एकता, अखंडता, सुरक्षा, आर्थिक सुरक्षा या संप्रभुता को संकट में डालने या संकट में डालने की संभावना के इरादे से हिंदुस्तान में या विदेश में जनता या जनता के किसी वर्ग में आतंक फैलाने या आतंक फैलाने की संभावना के इरादे से की गई गतिविधि ‘आतंकवादी हरकत’ है। परिभाषा के मुताबिक, इसमें बम धमाकों से लेकर जाली नोटों का कारोबार तक शामिल है। धारा-35 में गवर्नमेंट को अधिकार दिया गया है कि किसी आदमी या संगठन को आतंकी घोषित कर सकती है। गवर्नमेंट को इसके लिए गैरकानून गतिविधियां रोकथाम प्राधिकार के सामने अपने निर्णय को ठीक ठहराना होता है।
न्यूजक्लिक पर कौन-कौन सी धाराएं लगाईं?
न्यूजक्लिक के विरुद्ध लगाए गए प्रावधानों में यूएपीए की धारा-13 (गैरकानूनी गतिविधियां), धारा-16 (आतंकवादी कृत्य), धारा-17 (आतंकवादी गतिविधि के लिए धन जुटाना), धारा-18 (साजिश), और धारा-22(सी) (कंपनियों, ट्रस्टों के अपराध) शामिल हैं। इसके अतिरिक्त आईपीसी की धारा-153ए (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) और धारा-120 बी (आपराधिक साजिश) भी शामिल की गई हैं। बता दें कि यूएपीए एक वैकल्पिक आपराधिक कानून ढांचा पेश करता है, जहां आपराधिक कानून के सामान्य सिद्धांत उलट जाते हैं। यूएपीए राज्य को आरोपपत्र दाखिल करने की समयसीमा और जमानत के लिए कड़ी शर्तों में छूट देकर भारतीय दंड संहिता के मुकाबले ज्यादा अधिकार देता है।
आतंकरोधी कानूनों के अनुसार पाए गए दोषी
साल 2014 से 2020 तक पांच वर्ष में अवैध गतिविधियां रोकथाम कानून के अनुसार 5,027 मुकदमा दर्ज किए गए। इनमें 7,243 लोगों की अरैस्ट की गई। इनमें से केवल 212 लोगों पर ही इल्जाम साबित हो सके। इसके बाद इन्हें सजा दी गई। वहीं, टाडा के अनुसार 76,036 लोगों को अरैस्ट किया गया था, जिनमें से सिर्फ़ एक प्रतिशत पर ही इल्जाम साबित हो पाए। इसी तरह 2004 में खत्म किए जाने से पहले तक पोटा कानून के अनुसार 1,031 लोगों की गिरफ्तारी हुई थी, जिनमें सिर्फ़ 18 लोगों की सुनवाई पूरी हुई। इनमें भी 13 लोगों को गुनेहगार पाया गया था।