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चीतों को फिर से बसाने की कवायद,छह वयस्क चीतों की इस कारण हो गई थी मौत

one year of project cheetah: नामीबिया आधारित चीता संरक्षण कोष (सीसीएफ) ने बोला है कि हिंदुस्तान में चीतों को फिर से बसाने की परियोजना के पहले वर्ष की गौरतलब यात्रा असफलताओं एवं सफलताओं से भरपूर रही और यह परियोजना पटरी पर है सीसीएफ ने हिंदुस्तान में चीतों को फिर से बसाने के लिए भारतीय प्राधिकारियों के साथ निकटता से मिलकर काम किया है इसकी संस्थापक लॉरी मार्कर ने इन परियोजनाओं का मसौदा तैयार करने में जरूरी किरदार निभाई है और 2009 से कई बार हिंदुस्तान की यात्रा की है मार्कर ने एक बयान में कहा, हिंदुस्तान में चीतों को बसाना एक साहसिक और चुनौतीपूर्ण कोशिश था हमने नामीबिया की एक मादा से जन्मे चार शावकों के जन्म और दक्षिण अफ्रीका से 12 चीतों के एक समूह के आने का उत्सव मनाया उन्होंने बोला कि असफलताओं और कठिनाइयों के बावजूद परियोजना पटरी पर है

चीतों को फिर से बसाने की कवायद

नामीबिया की नेशनल असेंबली के स्पीकर और सीसीएफ के अंतर्राष्ट्रीय संरक्षक पीटर काट्जावीवी ने कहा, परियोजना पटरी पर है और नामीबिया को हिंदुस्तान में चीतों के क्षेत्र का विस्तार करने की परियोजना में शामिल होने पर गर्व है बयान में बोला गया कि हिंदुस्तान में चीतों को फिर से बसाने की परियोजना के शुरुआती साल में असफलताएं मिली, लेकिन प्रोजेक्ट चीता टीम अपने मिशन के प्रति समर्पित है राष्ट्र में चीतों के विलुप्त होने के बाद उन्हें फिर से बसाने की हिंदुस्तान की महत्वाकांक्षी पहल प्रोजेक्ट चीता की आज यानी रविवार को पहली वर्षगांठ है यह पहल पिछले वर्ष 17 सितंबर को उस समय प्रारम्भ हुई थी, जब पीएम मोदी ने नामीबिया से लाए गए चीतों के एक समूह को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान के एक बाड़े में छोड़ा था तब से, इस परियोजना पर पूरे विश्व के संरक्षणवादी और जानकार निकटता से नजर रख रहे हैं

छह वयस्क चीतों की हो गई थी मौत

नामीबिया और दक्षिण अफ्रीका से कूनो में दो समूहों में 20 चीते लाए गए थे, लेकिन मार्च के बाद से इनमें से छह वयस्क चीतों की विभिन्न कारणों से मृत्यु हो गई है मादा नामीबियाई चीता के चार शावकों में से तीन की अत्यधिक गर्मी के कारण मई में मृत्यु हो गई ‘प्रोजेक्ट चीता’ के प्रमुख एसपी यादव के मुताबिक हिंदुस्तान में चीतों के प्रबंधन के पहले साल में सामने आई सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक चुनौती यह थी कि (जून से सितंबर तक) अफ्रीका में सर्दी का मौसम होने के मुताबिक अनुकूलन प्रक्रिया के चलते कुछ चीतों के शरीर पर शीतकालीन कोट का विकास हो गया, जबकि हिंदुस्तान में गर्मी और मानसून का मौसम था

इस कारण हुई चीतों की मौत!

उन्होंने बोला कि शीतकालीन कोट अत्यधिक नमी और गर्मी के कारण चीतों को खुजली की कठिनाई होने लगी, जिसके कारण उन्होंने पेड़ों और जमीन से स्वयं को रगड़कर खुजलाना प्रारम्भ कर दिया यादव ने कहा कि इसके कारण उनकी त्वचा पर घाव हो गए जहां मक्खियों ने अपने अंडे दिए, जिसके परिणामस्वरूप कीड़ों का संक्रमण हुआ और अंततः जीवाणु संक्रमण तथा सेप्टीसीमिया से कई चीते की मृत्यु हो गई उन्होंने कहा कि चीतों की मृत्यु का कारण पता चलते ही उन्हें बाड़ों में वापस लाया गया और एहतियातन दवा दी गई तथा अब वे सभी स्वस्थ हैं

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