Article 370 पर मैराथन सुनवाई हुई समाप्त,इन वकीलों ने रखी दलीलें
Article 370 SC Hearing: जम्मू कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने वाले आर्टिकल 370 को हटाने के विरुद्ध दाखिल याचिकाओं पर उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने निर्णय सुरक्षित रखा लिया। चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली संविधान पीठ ने 16 दिन तक इस मसले पर याचिकाकर्ताओं, सरकार, आर्टिकल 370 को हटाने की दलीलों को विस्तार से सुना। न्यायालय ने निर्णय सुरक्षित रखते हुआ बोला कि यदि पक्षकारो में से कोई लिखित दलीलें जमा कराना चाहता है तो 3 दिन में लिखित दलीलें जमा कर सकते हैं।
इन वकीलों ने रखी दलीलें
2 अगस्त से हुई सुनवाई में याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम , गोपाल शंकर नारायणन ज़फर शाह ,राजीव धवन, दुष्यन्त दवे, शेखर नाफड़े जैसे वकीलों ने अपनी दलीलें रखी। वही आर्टिकल 370 हटाने के समर्थक पक्ष की ओर से अटॉनी जनरल आर वेंकटरमनी, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता, सीनियर एडवोकेट हरीश साल्वे,राकेश द्विवेदी, वी गिरी जैसे वकीलों ने दलील रखी।
याचिकाकर्ताओं की मुख्य दलील
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से बोला गया कि आर्टिकल 370 को बरकरार रखने या हटाने पर कोई भी निर्णय जम्मू कश्मीर की संविधान सभा ही ले सकती है। जम्मू कश्मीर की संविधान सभा 1957 में समाप्त हो चुकी है, लिहाजा अब आर्टिकल 370 स्थायी प्रावधान बन चुका है। अब इसमें परिवर्तन नहीं किया जा सकता। कुछ वकीलों की ओर से बोला गया कि आर्टिकल 370 को तब इसलिए अस्थाई प्रावधान बोला गया था क्योंकि इसके भविष्य को लेकर तब आगे चलकर निर्णय जम्मू कश्मीर की संविधान सभा को लेना था। इसका मतलब ये नहीं था कि संविधान निर्माता आगे चलकर इस हटाने के पक्षधर थे याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वकीलों ने बोला कि मौजूदा कानूनी ढांचे के अनुसार संसद अपने आप को संविधान सभा में परिवर्तित कर उसकी जिम्मेदारी नहीं निभा सकती। आर्टिकल 356 का मकसद कानूनी संकट की स्थिति में राज्य मशीनरी को बहाल करना होता है, उसे समाप्त करना नहीं ।लेकिन यहाँ इसका ग़लत इस्तेमाल करके राज्य विधानसभा को ख़त्म किया। आर्टिकल 356 जैसे अस्थायी प्रबंध का इस्तेमाल करके आर्टिकल 370 हटाने जैसा स्थायी असर वाला अहम निर्णय ले लिया गया।
याचिकाकर्ताओं ने दलील दी कि आर्टिकल 3 केंद्र गवर्नमेंट को ये अधिकार देता है कि वो राज्यों की सीमा में फेरबदल कर सकती है, या फिर राज्य को छोटे राज्यों में बांटा जा सकता है। लेकिन ऐसा पहली बार हुआ जब इस्तेमाल करके पूरे एक राज्य को केंद्रशासित प्रदेश में परिवर्तित कर दिया गया। केंद्रशासित प्रदेश बनने का खामियाजा जम्मू और कश्मीर की जनता को झेलना पड़ा है।
सरकार की ओर से रखी गईं मुख्य दलीलें
सरकार की ओर से बोला गया कि संविधान निर्माताओं ने भी आर्टिकल 370 को अस्थायी प्रावधान के तौर पर देखा था। ये दलील गलत है कि ब्रिटिश राज के समय से लेकर अब तक जम्मू और कश्मीर का अन्य रियासतों के इतर स्पेशल स्टेटस रहा है। जम्मू और कश्मीर अकेला ऐसा राज्य नहीं था, जिसका 1939 में अपना संविधान था। उस समय 62 ऐसी रियासत थीं, जिनका अपना संविधान था। 286 राज्य अपना संविधान बनाने की प्रकिया में थे। एसजी तुषार मेहता ने बोला कि जिस समय जम्मू और कश्मीर का हिंदुस्तान में विलय हुआ, उसी पल जम्मू और कश्मीर ने अपनी संप्रभुता हिंदुस्तान को सौंप दी थी। राष्ट्र का संविधान सर्वोपरि है और जम्मू और कश्मीर का संविधान भी इसके अंर्तगत आता है। लिहाजा यदि अभी भी जम्मू और कश्मीर की संविधान सभा उपस्थित रहती, तब भी आर्टिकल 370 को हटाने को लेकर उसका अधिकारक्षेत्र सीमित ही रहता। आर्टिकल 370 को हटाने को लेकर वो केवल सिफारिश ही भेज सकती थी।यह राष्ट्रपति का अधिकार बनता है कि वह संविधान सभा के निर्णय को दरकिनार करके भी आर्टिकल 370 को लेकर अपना निर्णय ले सकते हैं।एसजी तुषार मेहता ने दलील दी कि आर्टिकल 370 के चलते राष्ट्र का संविधान, केन्द्र गवर्नमेंट की योजनाओं का फायदा जम्मू कश्मीर के लोगों को नहीं मिल पा रहा था। अब 370 हटने के बाद राष्ट्र के बाकी राज्यों की तर्ज़ पर जम्मू कश्मीर के लोगों को बड़ी संख्या में अपने मौलिक अधिकार समेत दूसरे अधिकार हासिल हो सके है।
पूर्वोत्तर राज्यों के लिए कोई परिवर्तन नहीं करेगी सरकार
सुनवाई के दौरान गवर्नमेंट ने साफ किया कि वह पूर्वोत्तर राज्यों समेत बाकी राज्यों के लिए विशेष प्रावधान में कोई परिवर्तन नहीं करने जा रही है। एसजी तुषार मेहता ने बोला कि गवर्नमेंट आर्टिकल 370 के अनुसार अस्थायी प्रावधान और नार्थ ईस्ट समेत बाकी राज्यो के लिए मौजूदा विशेष प्रावधान के अंतर को समझती है। लिहाजा इस तरह की संभावना बेमानी है कि आर्टिकल 370 को हटाने के बाद नार्थ ईस्ट को मिले विशेषाधिकार पर भी ऐसा कोई निर्णय लिया जा सकता है।।
जम्मू-कश्मीर का पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल होगा
सुनवाई के दौरान न्यायालय के प्रश्नों के उत्तर में गवर्नमेंट ने ये भी साफ किया कि जम्मू कश्मीर का केंद्र शासित प्रदेश में परिवर्तित होना एक अस्थायी प्रबंध है। गवर्नमेंट इसका पूर्ण राज्य का दर्जा बहाल करेंगी। एस जी तुषार मेहता ने बोला कि सरकार इस दिशा में कदम उठा रही है, हालांकि पूर्ण राज्य का दर्जा कब तक बहाल होगा, इसकी कोई निश्चित समयसीमा अभी नहीं बताई जा सकती है।एसजी तुषार मेहता ने ये भी कहा कि गवर्नमेंट जम्मू कश्मीर में कभी भी चुनाव कराने को लिए तैयार है। वोटर लिस्ट भी लगभग तैयार हो चुकी है। केंद्रीय चुनाव आयोग और राज्य निर्वाचन आयोग चुनाव की तिथि तय करेंगे।
आर्टिकल370 हटने के बाद यूं बदले हालात
आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर के हालात किस तरह से बदले, इसका ब्यौरा भी सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय के सामने रखा। उन्होंने बताया।।
-आतंकी घटनाओं में 45.2% की कमी आई है।
-घुसपैठ में 90.2% प्रतिशत की कमी आई है।
-कानून प्रबंध को लेकर पैदा होने वाली दिक्कतें- जैसे पत्थरबाजी की घटनाओं में 97.2% की कमी आई है।
-सुरक्षाबलों के हताहत होने की घटनाओं में 65.9% की कमी आई है।
-2018 में पत्थरबाजी की 1767 घटनाएं हुई। वहीं, 2019 से लेकर अब तक ऐसी कोई पत्थरबाजी की घटना सामने नहीं आई।
-2018 में संगठित बंद की 52 कॉल थी। आज शून्य है।
सिर्फ कानूनी पहलुओं पर होगा विचार
सुनवाई के दौरान गवर्नमेंट ने आर्टिकल 370 के हटने के बाद जम्मू कश्मीर के बदले हालातों का हवाला ज़रूर दिया लेकिन संविधान पीठ की अध्यक्षता कर रहे चीफ जस्टिस ने साफ किया है कि वो इस मुकदमा में निर्णय लेते वक़्त केवल कानूनी प्रकिया पर ही विचार करेगा( यानि न्यायालय केवल ये देखेगा कि गवर्नमेंट की ओर से निर्णय लेने की प्रकिया ठीक थी या नहीं) ।कोर्ट आर्टिकल 370 हटने के बाद जम्मू कश्मीर में बदले हालात, राज्य में चुनाव और पूर्ण राज्य का दर्जा देने जैसे तथ्यों पर विचार नहीं करेगा।