देश में अभी तक वैवाहिक बलात्कार को नहीं माना गया अपराध : इलाहाबाद हाईकोर्ट
प्रयागराज (यूपी), 9 दिसंबर (आईएएनएस)। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने बोला है कि यदि पत्नी की उम्र 18 साल से अधिक है तो वैवाहिक दुष्कर्म को भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) के अनुसार क्राइम नहीं बताया जा सकता।
अदालत ने एक पति को अपनी पत्नी के विरुद्ध ‘अप्राकृतिक अपराध’ करने के इल्जाम से बरी करते हुए यह टिप्पणी की।
यह मानते हुए कि इस मुद्दे में आरोपी को आईपीसी की धारा 377 के अनुसार गुनेहगार नहीं ठहराया जा सकता, न्यायमूर्ति राम मनोहर नारायण मिश्रा की पीठ ने बोला कि इस राष्ट्र में अभी तक वैवाहिक दुष्कर्म को क्राइम नहीं माना गया है।
उच्च कोर्ट ने यह भी बोला कि वैसे वैवाहिक दुष्कर्म को क्राइम घोषित करने की मांग करने वाली याचिकाएं अभी भी उच्चतम न्यायालय के समक्ष लंबित हैं, जब तक शीर्ष न्यायालय मुद्दे का निर्णय नहीं कर देती, जब तक पत्नी 18 साल या उससे अधिक उम्र की नहीं हो जाती, तब तक वैवाहिक दुष्कर्म के लिए कोई आपराधिक दंड नहीं है।
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने मध्य प्रदेश हाई कोर्ट की पिछली टिप्पणी का समर्थन करते हुए यह भी बोला कि वैवाहिक संबंध में किसी भी ‘अप्राकृतिक अपराध’ (आईपीसी धारा 377 के अनुसार) के लिए कोई स्थान नहीं है।
शिकायतकर्ता ने अपनी याचिका में इल्जाम लगाया कि उनका शादी एक अपमानजनक रिश्ता था और पति ने कथित तौर पर उसके साथ मौखिक और शारीरिक दुर्व्यवहार और जबरदस्ती की, जिसमें अप्राकृतिक यौनाचार भी शामिल था।
अदालत ने उसे पति या पति के संबंधियों द्वारा क्रूरता (498-ए) और स्वेच्छा से चोट पहुंचाने (आईपीसी 323) से संबंधित धाराओं के अनुसार गुनेहगार ठहराया, जबकि धारा 377 के अनुसार आरोपों से बरी कर दिया।
इस वर्ष की आरंभ में उच्चतम न्यायालय वैवाहिक दुष्कर्म को क्राइम मानने की याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर सहमत हुआ।
केंद्र गवर्नमेंट ने शीर्ष न्यायालय के समक्ष बोला था कि वैवाहिक दुष्कर्म को क्राइम घोषित किए जाने से समाज प्रभावित होगा।