कृतियां देने वालीं नासिरा शर्मा ने स्त्री विमर्श पर बोलते हुए कहा…
अपनी साफ और वेबाक टिप्पणियों के लिए साहित्य की दुनिया में अलग मुकाम रखने वाली वरिष्ठ लेखिका नासिरा शर्मा का मानना है कि ये ठीक है कि महिला विमर्श पर खूब लेखन हुआ है, बहुत अच्छी किताबें दी हैं, लेकिन यह आम जींदगी में प्रैक्टिकल नहीं है।
साहित्य अकादमी में आयोजित ‘लेखक से भेंट’ कार्यक्रम में साहित्य जगत को एक से बढ़कर एक कृतियां देने वालीं नासिरा शर्मा ने महिला विमर्श पर बोलते हुए बोला कि जब मैंने ‘शाल्मली’ और ‘ठीकरे की मंगनी’ उपन्यास लिखे तो कोई महिला विमर्श नहीं था। और मेरे साथ जितने भी पुराने लेखक और लेखिका थीं, उन्होंने अपनी अनेक कहानियों को स्त्रियों के इर्द-गिर्द ही बुना। मैं यह नहीं कहूंगी कि तब से स्त्री-विमर्श प्रारम्भ हुआ और लोग लिखने लगे। महिलाओं की दशाओं में तबदीली आ गई। महिलाओं के लिए पहले भी खूब लिखा गया और आज भी लिखा जा रहा है। लेकिन एक दौर ऐसा आया कि लेखिकाएं मैदान से मर्दों को ही उखाड़ फेंक रही थीं। मर्दों की इतनी बुराई करों कि वे खड़े ही ना हो पाएं। ये सब बातें इस ओर इंगित कर रही थीं कि स्त्री लेखकों को प्रतिक्रियावादी बनाया जा रहा था। जबकि लेखन में बदला लेने की भावना एकदम ही गलत है। अब ये दौर गुजर गया।
नासिरा आपा कहती हैं कि इसमें कोई संदेह नहीं कि देश-दुनिया में महिलाओं ने बहुत कुछ सहन किया। कुछ ने अपने अधिकारों के बारे में खूब संघर्ष किया। लेकिन जब आप गांव-कस्बों में जाएं तो वहां तो कोई विमर्श हो ही नहीं सकता है। क्योंकि वहां आपको मर्द भी शोषित नजर आता है और स्त्री उससे ज्यादा। यदि कोई स्त्री इंकलाब करके घर छोड़ देती है तो फिर कौन-सा समाज उसे रखेगा।
औरतों में कम होता संयम का स्तर
स्त्री विमर्श को कटघरे में खड़ा करते हुए नासिरा शर्मा ने बोला कि हमारा महिला विर्मश समाज में दिन-रात हो रही भयावह घटनाओं को नहीं देखता है। हमारा महिला विमर्श देखता यह है कि हम कैसे आजाद हों। आजादी की भी एक हद होती है। मैं हर तरह से आजाद हूं, लेकिन मैंने भी अपनी एक हद तय की हुई है कि मैं कहां तक जा सकती हूं और मुझे कहां से लौटना है। महिला विमर्श से अधिक अच्छा वह है कि जिन महिलाओं ने परिवर्तन के लिए जमीनी स्तर पर काम किया है, उनकी चर्चा की जाए। आप बदजुबान हो जाएं, किसी को फटकार दें, आप किसी को चांटा मार दें तो इससे कोई बहादुरी नहीं है, इससे कोई आंदोलन नहीं होने वाला। इससे समझ में आता है कि मर्दों की तरह महिलाओं में भी संयम का स्तर कम होता जा रहा है।
उन्होंने बोला कि मैं स्त्री-लेखन में बदले और प्रतिशोध की भावना से सहमत नहीं हूं। पहले की तुलना में अब स्त्रियां ज़्यादा मुखर हुई हैं। आज का महिला लेखन दूसरों की पीड़ा नहीं देख रहा है बल्कि उन्हें स्वयं की आज़ादी चाहता है, लेकिन आजादी के साथ जो सीमा होनी चाहिए उसे कौन तय करेगा। निंदा में महिलाओं की उपस्थिति पर उन्होंने बोला कि यदि स्त्री लेखन में दम और ईमानदारी है तो वह निंदा के क्षेत्र में आए, तो उनका स्वागत होगा।
मैं मरना चाहती थी
नासिरा शर्मा अपने निजी अनुभव शेयर करते हुए बताती हैं कि मेरे भीतर एक अजीब-सी अशांति थी। मैं मरना चाहती थी और बार-बार मरने के ख्याल आते थे। मृत्यु मुझे डरा नहीं रही थी, लेकिन बस मन में यह रहता था कि मैं मरना चाहती हूं। मृत्यु को लेकर एक अजीब-सी फिलिंग थी। मैं हर महीने अपने घर की चीजों को संवारती थी, अपने कागजातों को करीने से रखती थी ताकि मेरे बाद इन्हें लेकर किसी को कोई कठिनाई ना हो। मृत्यु से मुझे इतना प्यार क्यों था, यह मेरी समझ से परे है। जबकि मैं भरपूर जीवन जी रही थी। मेरे जीवन में कोई तनाव या कोई कमी नहीं थी। और इस तरह के ख्याल आने का सिलसिला 90 के दशक के आखिर से आना प्रारम्भ हुआ। हालांकि, 2000 के बाद ऐसी कैफियत अचानक ही समाप्त हो गई। यह सब क्या था, क्यों होता था, मुझे इसके बारे में कुछ पता नहीं।
इन बारे में विस्तार से बात करती हुईं नासिरा शर्मा ने कहा कि इराक में रिपोर्टिंग के दौरान हजरत अली के मकबरे पर गई। हजरत अली के मकबरे के निकट जाकर मैं बैठ गई और करीब एक घंटे से अधिक बैठी रही। यहां की विशेषता यह है कि जब लोग बहुत अधिक जज्बाती हो जाते हैं तो इन मकबरों पर अपनी कीमती चीजें फेंक देते हैं। मैं यहां बैठी हुई ख़ुदा से बस एक बात पूछ रही थी कि तूने मुझे पैदा क्यों किया और यदि तुझमें ताकत है तो अभी मेरी जान ले ले।
दिलचस्प होती है पुस्तक के कवर की कहानी, नासिरा शर्मा के उपन्यास का है बड़ा रोचक किस्सा
‘कुइयां जान’ और ‘जीरो रोड’ जैसी चर्चित कृतियों की लेखिका नासिरा शर्मा बताती हैं, “मैं बाहर से जितनी शांत और मुस्कुराती हुई दिखलाई पड़ती हूं, उतनी अंदर से हूं नहीं। मेरे भीतर एक बबंडर है। इसकी वजह यह थी कि जो कुछ मैं कर रही थी स्वयं ही कर रही थी, इसके लिए मुझे कहीं से कोई मार्गदर्शन या प्रेरणा नहीं मिल रही थी, मैं कुछ नया नहीं कर पा रही थी, इसकी छटपटाहट थी मन में। लंबे समय तक मुझे यह लगता रहा कि मैं समाज को जो देना चाहती हूं वह नहीं दे पा रही हूं। बचपन से मैंने बदलते हुए हालात देखे, घर के, समाज के और राष्ट्र के। बँटवारे का दर्द मेरे परिवार ने नहीं झेला, लेकिन बँटवारे में जो अन्य लोगों ने झेला, उसे मैंने निकट से देखा। यह महसूस किया कि किस तरह सियासित ने घर को, आंगन को और दिलों को बाँटा।”
अपने बारे में, परिवार के बारे में लेखन के बारे में नासिरा जी कहती हैं कि मेरे जीवन में इतना दरवाजे हैं और इतने खाने हैं, उनके बारे में क्या लिखा जाना। मैं यादों के सहारे लेखन नहीं कर सकती, मैं अतीत में नहीं जा सकती। मुझे लगता है कि हमारे वर्तमान में इतने प्रश्न हैं, जो लोग अतीत के भूमिका पर लिख रहे हैं, खासकर महिलाएं, उनसे मैं कहती हूं कि आज की घटनाओं और हालातों को लेकर यहीं न्यायालय लगाइए। आप भूतकाल में जाकर क्यों निर्णय सुना रहे हैं, इन्साफ किसे दे रहे हैं जो सदियों से परे हो गए हैं?
युद्धों से प्रभावित बचपन
अपने लेखन अनुभवों को साझा करते हुए नासिरा शर्मा ने बोला कि उनका लेखन बचपन में बँटवारे के खौफ और बाद में पाक और चीन से हुई लड़ाइयों से प्रभावित रहा है। ईरान-इराक जाने और इन राष्ट्रों पर लिखने की आरंभ अचानक ही हुई, उसके पीछे कोई सोची-समझी नीति नहीं थी। फ़ारसी जानने के कारण इन राष्ट्रों तक पहुंचना और उनको समझना सरल हुआ।
एक प्रश्न के उत्तर में बोला कि इराक-ईरान पर मेरे लेखन की चर्चा अधिक होती रहती है, जिस कारण दूसरी रचनाएं पीछे छूट जाती हैं।
उर्दू वाले 50,000 मांगते हैं
उर्दू की स्थान हिंदी में लेखन के प्रश्न पर ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ तथा ‘व्यास सम्मान’ जैसे पुरस्कारों से सम्मानित नासिरा शर्मा ने कहती हैं कि हिंदी से प्यार है। हमारे घर में हिंदी, उर्दू और अंग्रेजी पढ़ी-लिखी और बोली जाती थी। उर्दू बाले कटाक्ष करते हैं कि आप सब कुछ हिंदी को दे रही हैं। मैं कहती हूं कि आप भी मेरी उर्दू की चीजें छापें। लेकिन वो 50,000 मांगते हैं। जब आप अपने ही साहित्य और जबान को हमदर्दी से नहीं देखते तो क्या किया जा सकता है। इससे इतर हिंदी का दामन बहुत बड़ा है। हिंदी के पाठक भी लगातार बढ़ रहे हैं।
इस तरह नासिरा शर्मा ने अपने पाठकों के बीच और भी कई अनुभव साझा किए। कार्यक्रम में निर्मलकांति भट्टाचार्जी, राजकुमार गौतम, बलराम, प्रताप सिंह, अशोक तिवारी आदि लेखक, पत्रकार एवं युवा विद्यार्थियों सहित, रांची, देहरादून आदि दूरदराज से आए साहित्यप्रेमी मौजूद थे। कार्यक्रम के साहित्य अकादमी के सचिव के। श्रीनिवासराव ने अंगवस्त्रम् और साहित्य अकादमी की पुस्तकें भेंट करके नासिरा शर्मा का स्वागत किया। इस अवसर पर प्रकाशित ब्रोशर का विमोचन नासिरा शर्मा द्वारा किया गया। कार्यक्रम का संचालन साहित्य अकादमी के संपादक कुमार अनुपम ने किया।
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Tags: Hindi Literature, Hindi Writer, Literature
FIRST PUBLISHED : August 27, 2023, 10:49 IST