पीएम मोदी ने मशहूर शायर मुनव्वर राणा के निधन पर दुख जताते हुए उनके परिवार और…
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रसिद्ध शायर मुनव्वर राणा के मृत्यु पर दुख जताते हुए उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति अपनी संवेदनाएं व्यक्त की है.
प्रधानमंत्री ने उर्दू साहित्य और शायरी में उनके समृद्ध सहयोग को याद करते हुए उनकी आत्मा को शांति मिलने की भी प्रार्थना की है.
प्रधानमंत्री मोदी ने उर्दू साहित्य और शायरी में मुनव्वर राणा के समृद्ध सहयोग को याद कर, उनके मृत्यु पर दुख व्यक्त करते हुए एक्स पर पोस्ट कर कहा, मुनव्वर राणा के मृत्यु से दुख हुआ. उन्होंने उर्दू साहित्य और कविता में समृद्ध सहयोग दिया. उनके परिवार और प्रशंसकों के प्रति संवेदनाएं. उनकी आत्मा को शांति मिले.
बता दें कि, प्रसिद्ध उर्दू शायर मुनव्वर राणा का रविवार रात लखनऊ के एसजीपीजीआई हॉस्पिटल में दिल का दौरा पड़ने से मृत्यु हो गया. वह 71 साल के थे.
वह कई महीनों से रोग से जूझ रहे थे और एसजीपीजीआई हॉस्पिटल में उनका उपचार चल रहा था. वह कैंसर, किडनी और दिल संबंधी रोंगों से पीड़ित थे.
राणा की बेटी सुमैया राणा ने बोला कि उनके पिता को सोमवार को सुपुर्द-ए-खाक किया जाएगा.
राणा के बेटे तबरेज़ राणा ने कहा, रोग के कारण वह 14 से 15 दिनों तक हॉस्पिटल में भर्ती थे. उन्हें पहले लखनऊ के मेदांता और फिर एसजीपीजीआई में भर्ती कराया गया था, जहां रविवार रात करीब 11 बजे उन्होंने आखिरी सांस ली.
शायर के परिवार में उनकी पत्नी, चार बेटियां और एक बेटा है.
26 नवंबर, 1952 को यूपी के रायबरेली में जन्मे राणा को उर्दू साहित्य और कविता में उनके योगदान, विशेषकर उनकी ग़ज़लों के लिए व्यापक रूप से पहचाना गया. उनकी काव्य शैली अपनी सुगमता के लिए गौरतलब थी, क्योंकि वे फ़ारसी और अरबी से परहेज करते हुए अक्सर हिंदी और अवधी शब्दों को शामिल करते थे, जो भारतीय श्रोताओं को पसंद आते थे.
उनकी सबसे मशहूर गजल ‘मां’ थी, जो पारंपरिक ग़ज़ल शैली में मां के गुणों का उत्सव मनाती थी.
अपने पूरे करियर के दौरान, राणा को कई पुरस्कार मिले, जिनमें उनकी काव्य पुस्तक ‘शाहदाबा’ के लिए 2014 में प्रतिष्ठित साहित्य अकादमी पुरस्कार भी शामिल है. हालांकि, राष्ट्र में बढ़ती असहिष्णुता से खिन्न होकर उन्होंने बाद में पुरस्कार लौटा दिया.
उन्हें प्राप्त अन्य पुरस्कारों में अमीर खुसरो पुरस्कार, मीर तकी मीर पुरस्कार, गालिब पुरस्कार, डाक्टर जाकिर हुसैन पुरस्कार और सरस्वती समाज पुरस्कार शामिल हैं. उनकी रचनाओं का कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है.
राणा ने अपना अधिकतर जीवन कोलकाता में बिताया और हिंदुस्तान और विदेशों दोनों में मुशायरों में उनकी जरूरी उपस्थिति थी.