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आत्महत्या के लिए उकसाने के लिए ये होना चाहिए: सुप्रीम कोर्ट

  दिल का टूटना रोजमर्रा की जीवन का हिस्सा है प्रेमिका को केवल माता-पिता की राय के मुताबिक विवाह करने की राय देना खुदकुशी के लिए उकसाने का मुद्दा नहीं बनता ऐसा उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) ने कहा उच्चतम न्यायालय ने एक सुनवाई के दौरान ऐसा कहा शीर्ष न्यायालय (Supreme Court) ने आरोपी प्रेमी के विरुद्ध चल रहे मुकदमे को रद्द कर दिया 

ये आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं है

जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस केवी विश्वनाथन की पीठ ने बोला कि इस मुद्दे में लड़की ने तब खुदकुशी कर ली, जब उसके प्रेमी ने उसे माता- पिता की पसंद से विवाह करने की राय दी पीठ ने बोला कि  टूटे हुए संबंध और दिल का टूटना रोजमर्रा की जीवन का हिस्सा है अपीलकर्ता पुरुष का रिश्ता तोड़कर उसे माता-पिता की पसंद से विवाह करने की राय देने क्योंकि वह स्वयं भी ऐसा कर रहा था इसको आत्महत्या के लिए उकसाना नहीं बोला जा सकता

 

सुप्रीम न्यायालय के इस पीठ ने आगे बोला कि इस पर धारा 306 के अनुसार क्राइम नहीं बनता पीठ ने आरोपों और कानून पर गौर करने के बाद बोला कि अपीलकर्ता की कोई एक्टिव किरदार नहीं थी खुदकुशी के लिए उकसाने के लिए प्रत्यक्ष या फिर अप्रत्यक्ष कार्य होने चाहिए

 इस मुद्दे में पीड़ित लड़की तब परेशान हो गई थी, जब लड़के के परिवार ने दुल्हन की तलाश प्रारम्भ कर दी बाद में पुलिस ने उसके विरुद्ध IPC की धारा 306 के अनुसार मुकदमा दर्ज कर लिया उच्च न्यायालय ने मुद्दे को रद्द करने से इंकार कर दिया इस पर आरोपी उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया

इस्तेमाल किए जाने वाले ये शब्द उकसाना नहीं हाेता

सुप्रीम न्यायालय ने बोला कि जहां कहे गए शब्द स्वभाव से आकस्मिक हों, जो अक्सर झगड़ते लोगों के बीच गर्मागर्मी के दौरान इस्तेमाल किए जाते हैं और उनसे कुछ गंभीर होने की आशा नहीं हो, तो इसे खुदकुशी के लिए उकसाना नहीं माना जाएगा उकसाने का इल्जाम लगाने के लिए दिखाया जाना चाहिए कि आरोपी ने अपने कृत्यों, आचरण या फिर चूक से लगातार ऐसे हालात बनाए कि पीड़ित के पास खुदकुशी करने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा था

 

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