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ULFA: 20 असम में दशकों पुराने उग्रवाद के खत्म होने की उम्मीद

ULFA Tripartite Peace Agreement With Assam and Center: पूर्वोत्तर में बरसों से चले आ रहे उग्रवाद को शांत करने में मोदी गवर्नमेंट की रणनीति धीरे-धीरे कारगर हो रही है वार्ता के साथ ही उग्रवादियों के प्रति कठोरता की नीति के चलते नॉर्थ ईस्ट में कई उग्रवादी संगठन अपने हथियार डालते जा रहे हैं मणिपुर के सबसे पुराने उग्रवादी संगठन UNLF के हथियार डालने के बाद अब असम के सबसे पुराने एक्स्ट्रीमिस्ट ग्रुप यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) ने भी अत्याचार छोड़कर मुख्यधारा में शामिल होने पर सहमति व्यक्त कर दी है इस संबंध में आज दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह और असम के सीएम हिमंत विश्व शर्मा की उपस्थिति में उल्फा के अरविंद राजखोवा गुट के साथ समझौते पर हस्ताक्षर किये गए

असम में उग्रवाद के खात्मे की उम्मीद

अरबिंद राजखोवा गुट के साथ यह समझौता गवर्नमेंट के बीच 12 वर्ष तक बिना शर्त हुई वार्ता के बाद आया है इस शांति समझौते से असम में दशकों पुराने उग्रवाद के समाप्त होने की आशा है हालांकि परेश बरुआ की अध्यक्षता वाला उल्फा का कट्टरपंथी गुट इस समझौते का हिस्सा नहीं है बरुआ चीन-म्यांमा सीमा के निकट एक जगह पर रहता है

उल्फा का गठन 1979 में ‘संप्रभु असम’ की मांग को लेकर किया गया था तब से, यह विनाशकारी गतिविधियों में शामिल रहा है जिसके कारण केंद्र गवर्नमेंट ने 1990 में इसे प्रतिबंधित संगठन घोषित कर दिया था राजखोवा गुट तीन सितंबर, 2011 को गवर्नमेंट के साथ शांति वार्ता में उस समय शामिल हुआ था जब इसके और केंद्र तथा राज्य सरकारों के बीच इसकी गतिविधियों को रोकने को लेकर समझौते पर हस्ताक्षर किए गए थे

परेश बरुआ समझौते में शामिल नहीं

असम में उल्फा उग्रवाद की 44 वर्ष लंबी यात्रा के बाद दिल्ली में हुए त्रिपक्षीय समझौता होने को एक जरूरी अध्याय है असम में हाल के समय में लोगों के जीवन को प्रभावित करने वाले कई जरूरी कदम देखे गए हैं हालांकि उल्फा मामला कई विवादास्पद मुद्दों के बीच शीर्ष पर बना रहा उल्फा मामला प्रारम्भ में एक आंदोलन था लेकिन जल्द ही अपहरण, जबरन वसूली, हत्याओं और बम विस्फोटों के साथ यह सशस्त्र संघर्ष में बदल गया

समझौते पर हस्ताक्षर को चार दशक पुरानी परेशानी का अधूरा निवारण बताया जा रहा है क्योंकि परेश बरुआ नीत उल्फा (इंडिपेंडेंट) गुट तब तक वार्ता के लिए तैयार नहीं है जब तक कि असम की ‘संप्रभुता’ के मामले पर चर्चा नहीं होती उसके कैडर अत्याचार की छिटपुट घटनाओं में शामिल हैं और सुरक्षा बलों ने अभियान तेज कर दिया है

7 अप्रैल 1979 को हुई थी स्थापना

उल्फा (आई) की अनुपस्थिति और विपक्षी दलों और नागरिक संगठनों द्वारा इसे अधूरा निवारण बताए जाने के बावजूद, यह समझौता एक मील का पत्थर है क्योंकि 1991 के बाद से संगठन के साथ वार्ता के कई प्रयासों के बावजूद, कोई निवारण नहीं निकला है ऊपरी असम जिलों के 20 युवाओं के एक समूह द्वारा सात अप्रैल, 1979 को शिवसागर के ऐतिहासिक अहोम-कालीन ‘एम्फीथिएटर’ रंग घर में गठित उल्फा ने कई मौकों पर वार्ता की ख़्वाहिश जतायी लेकिन ‘संप्रभुता’ मामले पर अपने रुख पर अड़ा रहा

वर्ष 2011 में संगठन में दूसरी बार विभाजन होने के बाद अध्यक्ष अरबिंद राजखोवा सहित शीर्ष नेतृत्व पड़ोसी राष्ट्र से असम लौटा उसके बाद वे संप्रभुता विषय के बिना वार्ता की मेज पर आने के लिए सहमत हुए और केंद्र गवर्नमेंट को 12-सूत्रीय मांग पत्र प्रस्तुत किया उससे पहले 1992 में नेताओं और कैडरों के एक वर्ग द्वारा वार्ता की ख़्वाहिश जताए जाने के बाद संगठन विभाजित हो गया था, लेकिन राजखोवा और बरुआ दोनों तब ‘संप्रभुता’ मामले पर दृढ़ थे

शुरू में बटोरी थी लोकप्रियता

बातचीत की ख़्वाहिश रखने वालों ने गवर्नमेंट के सामने सेरेण्डर कर दिया और स्वयं को आत्मसमर्पित उल्फा या सल्फा के रूप में संगठित किया 1990 और 2000 के दशक में राज्य में उनका जबरदस्त असर था और कांग्रेस पार्टी तथा उसके बाद की अगप सरकारों ने उन्हें उल्फा के विरुद्ध इस्तेमाल किया इल्जाम है कि अगप गवर्नमेंट ने अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान उल्फा नेताओं के परिवारों के सदस्यों की हत्याओं में सल्फा सदस्यों का इस्तेमाल किया था

उल्फा प्रारम्भ में पड़ोसी नगालैंड और मिजोरम के उग्रवाद से प्रभावित था और उसने अपने शुरुआती दिनों में ग्रामीण लोगों के बीच लोकप्रियता हासिल की उसने ग्रामीण शिक्षित बेरोजगार युवाओं को विशेष तौर पर आकर्षित किया था बोला जाता है कि यह संगठन 1985 की पहली असम गण परिषद (अगप) गवर्नमेंट के दौरान काफी प्रभावशाली था, लेकिन राज्य गवर्नमेंट और जनता दोनों के साथ संबंध धीरे-धीरे खराब होते हुए क्योंकि उल्फा द्वारा अपहरण, जबरन वसूली और हत्याएं किए जाने के कारण राज्य में उथल-पुथल मच गई

ऐसे हुई उग्रवाद के खात्मे की शुरुआत

नवंबर 1990 में राज्य की स्थिति एक निर्णायक मोड़ पर आ गई बाद में 28 नवंबर, 1990 को सेना ने उल्फा के विरुद्ध ऑपरेशन बजरंग प्रारम्भ किया और अगले दिन, प्रफुल्ल महंत नीत अगप अगप गवर्नमेंट को बर्खास्त करने के साथ ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया ऑपरेशन बजरंग की आरंभ के साथ 1,221 उग्रवादियों की गिरफ्तारी हुई, असम को ‘अशांत क्षेत्र’ घोषित किया गया और सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) कानून लागम किया इसके साथ ही उल्फा को अलगाववादी और अवैध संगठन घोषित कर दिया गया जो अब तक कायम है

 

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