इटावा के इस मंदिर में श्रद्धालुओं को शांति और आध्यात्मिक ज्ञान की होती है प्राप्ति
उचकागांव प्रखंड के मीरगंज मुख्य पथ पर स्थित बाणगंगा नदी के तट पर इटावा धाम है. इसका इतिहास काफी पुराना है. यहां के महान संत श्री श्री 108 श्री रामशरण दास जी महाराज उर्फ इटवा बाबा की ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है. इस मशहूर धार्मिक स्थल पर संत इटवा बाबा की समाधि है. जहां वर्ष भर उनके अनुयायियों का आना-जाना लगता है. इटवा बाबा आध्यात्मिक ज्ञान और चमत्कारों के लिए जाने जाते थे.
दरअसल, कभी इटवा धाम मंदिर के पास श्मशान हुआ करता था. वहां वर्ष भर प्रत्येक दिन किसी न किसी मृतशरीर का आखिरी संस्कार किया जाता था. कई वर्ष पहले 25 वर्ष की उम्र में संत इटवा बाबा यहां पहुंचे थे. यही तपस्या कर लोगों की सहायता करते हुए ईश्वर के चरणों में अपना सब कुछ न्योछावर कर भक्ति में लीन हो गए. बाबा की भक्ति को देख हथुआ राज की महारानी ने इस जगह से श्मशान हटाकर नदी के उस पार कर दिया और यहां सीता-राम का मंदिर बनवा दी. यह मंदिर सफेद संगमरमर से बना हुआ है. मंदिर के अंदर ही इटवा बाबा की समाधि है. नक्काशीदार दरवाजे हैं. मंदिर के बाहर विशाल परिसर है, जिसमें एक गौशाला, एक आश्रम और एक तालाब है.
धड़कन में सुनाई देती थी सीता-राम की ध्वनि
इटावा धाम गोपालगंज जिले में लोकप्रिय तीर्थ स्थलों में से एक है. यहां हर वर्ष नवरात्रि, शरद पूर्णिमा और अन्य धार्मिक अवसरों पर मेला लगता है. लाखों श्रद्धालु इटावा धाम आते हैं और इटवा बाबा की समाधि पर पूजा करते हैं. यह शांतिपूर्ण और आध्यात्मिक जगह है. यहां आने वाले श्रद्धालुओं को शांति और आध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति होती है. यहां के महंत श्री श्री ने कहा कि श्री श्री 108 श्री राम जी दास जी महाराज कहते थे कि इटवा बाबा की जब तबीयत खराब हुई थी, तो चिकित्सक द्वारा की गई जांच के दौरान उनके दिल से सीताराम की ध्वनि सुनाई दे रही थी. यह सुन चिकित्सक भी दंग हो गए थे.