कैसे तैयार करती है गोबर से ज्वेलरी, आज दूसरों को दे रही रोजगार
भारतीय संस्कृति में गहनों और जेवरात का खास महत्व है। त्योहार और विवाह या किसी भी शुभ कार्यक्रम में सभी गहने नजर आएंगे। वैसे तो स्त्रियों को गहनों से बहुत अधिक लगाव और प्यार होता है, लेकिन पुरुष भी चांदी और सोना, हीरा-रत्न पहनने के शौकीन होते है। लेकिन मूल्य अधिक होने से कुछ लोग आभूषणों के श्रृंगार से वंचित रह जाते हैं। वहीं इन सब से उलट प्रयागराज की एक स्त्री ने गोबर से रंग-बिरंगे आभूषण को तैयार करना प्रारम्भ किया जो पानी में भी नहीं गलता है ना ही वह रंग छोड़ता है।
कोरोना कल में पति को खोने के बाद भी नहीं टूटी आभा सिंह। कुछ कर गुजरने के जज्बे ने आज इन्हें सबसे अलग पहचान दे दी है। आशा रानी फाउंडेशन के अनुसार आभा सिंह ने 2 वर्ष पहले गोबर से ज्वेलरी बनाना प्रारम्भ किया। इनके रंग बिरंगे ज्वेलरी को लोग इतना पसंद करने लगे कि आज वह इन ज्वेलरी को मांग के मुताबिक मौजूद नहीं कर पा रही है। इनके द्वारा बनाए गए ज्वेलरी घर से ही लोग खरीद ले जाते हैं।
कैसे तैयार करती है गोबर से ज्वेलरी
आभा सिंह बताती है कि वह गोबर में गारगम मिलाकर टाइट करती हैं। जिससे वह गोबर को सरलता से ज्वेलरी के अनुरूप आकार दे सकें। आरंभ में वह बच्चों के खिलौने से सेप तैयार करती थी लेकिन अब धीरे-धीरे अन्य चीजों का भी सहारा लेने लगी है। आभा बताती है कि गोबर से वॉल हैंगिंग, शुभ लाभ, सूर्य के माला ,आदि बनाती है। गोबर से बने ज्वेलरी को पहनने से रेडिएशन से भी काफी लाभ होता है। शरीर को ऊपर आने वाली नकारात्मक तरंग को यह अवशोषित कर लेता है। गोबर के 220 उत्पाद बनाने की कला जानती है आभा सिंह। धीरे-धीरे सबको बनाना प्रारम्भ करेंगे और बाजार में पेश करेंगे।
कैसे बेचती हैं ज्वेलरी
आभा सिंह बताती है कि उनका फाउंडेशन एमएसएमई में दर्ज़ है। जहां-जहां प्रदर्शनी लगानी होती है वहां से पता चल जाता है। अभी हाल ही में कृषि अनुसंधान दिल्ली में ज्वेलरी की प्रदर्शनी लगाई थी। इसके अतिरिक्त इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में ज्वेलरी की प्रदर्शनी लग चुकी हैं। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी की कुलपति भी उनके द्वारा तैयार किए गए सूर्य के माला को बहुत पसंद की और आज भी अपने गले में पहनती हैं। इसके अतिरिक्त जिनको घर का पता मालूम होता है। वह घर से जाकर ज्वेलरी ले लेते हैं। उनके यहां ज्वेलरी की न्यूनतम मूल्य 350 से 750 रुपए तक की तक की ज्वेलरी मिलती है। जिससे लगभग प्रति माह 50 हजार तक कि कमाई हो जाती है।
बहू का मिलता है सहयोग
आभा सिंह बताती है कि हमारे यहाँ जो ज्वेलरी तैयार होती है उस ज्वेलरी को पेंट करने की पूरी जिम्मेदारी बहू के पास होती है। बहू के योगदान से ही यह सब कुछ संभव हो सका है। इनके अतिरिक्त पांच महिलाएं कम पर है। जो प्रतिमाह 5 हज़ार लेती है और ज्वेलरी बनाने में योगदान करती हैं।
।