उत्तर प्रदेश

लखनऊ यूनिवर्सिटी ने दोबारा बदला आदेश, अब इस दिशा में किया जा रहा काम

 लखनऊ यूनिवर्सिटी वर्तमान में अपने पीएचडी आदेश को दोबारा संशोधित कर रहा है इस संशोधन की एक अहम खासियत यह है कि यह विद्यार्थियों को उनके डॉक्टरेट डिग्री शीघ्र पूरी करने के लिए प्रोत्साहित करने की दिशा में है साथ ही डिग्री की गुणवत्ता को भी बेहतर बनाने का कोशिश हो रहा है

लखनऊ यूनिवर्सिटी के प्रवक्ता दुर्गेश श्रीवास्तव ने कहा कि कुलपति प्रो आलोक कुमार राय के नेतृत्व में पीएचडी के लिए यूनिवर्सिटी में शामिल होने वाले विद्यार्थियों के बीच गुणवत्ता अनुसंधान को बढ़ावा देने के उपायों को चिह्नित करने का कोशिश कर रहा है कई सर्वेक्षण बताते हैं कि यूरोपीय संघ और ब्रिटेन में शोध करने वाले विद्यार्थियों को उनके स्नातक पूरा करने के बाद उनके डॉक्टरेट डिग्री प्राप्त करने में औसत रूप से 3.5-4.5 वर्ष लगते हैं

संयुक्त राज्य अमेरिका में इस डिग्री के कार्यक्रमों में स्नातक प्रवेश के कारण औसत रूप से 6-7 वर्ष तक का समय लगता है क्योंकि यहां की पाठ्यक्रम अधिक दीर्घकालिक होते हैं इन अंतर्राष्ट्रीय प्रवृत्तियों को ध्यान में रखते हुए लखनऊ यूनिवर्सिटी अपने पीएचडी अध्यादेश 2023 को संशोधित कर रहा है

अब इस दिशा में किया जा रहा काम
बताया कि लखनऊ यूनिवर्सिटी प्रस्तावित कर रहा है कि विद्यार्थी छात्राएं जो अपनी थीसिस को शीघ्र प्रस्तुत करने का कोशिश करते हैं, अर्थात 3-4 वर्ष के बीच ऐसे में उनको सिर्फ़ एक अनुसंधान पेपर प्रकाशित करने की जरूरत होगी 4-5 वर्ष में जमा करने के लिए दो अनुसंधान पेपर की जरूरत होगी, जबकि 5-6 वर्ष में थीसिस को जमा करने के लिए तीन अनुसंधान पेपर की जरूरत होगी इससे विद्यार्थियों को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सीधा लाभ होगा विद्यार्थियों को अपनी पहचान बनाने में सरलता होगी

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