इस बार जंगलों के धधकने के सभी रिकॉर्ड टूट गए

कुमाऊं के उत्तरी ज़ोन में इस बार जंगलों के धधकने के सभी रिकॉर्ड टूट गए। बीते 5 वर्षों में यहां इतनी आग कभी नहीं लगी, जितनी इस वर्ष के फायर सीज़न में। ज़ोन के चार ज़िलों में जारी फायर सीज़न में अब तक 839 घटनाओं में 1481 हेक्टेयर जंगल खाक हो चुका है। आग लगने की घटनाओं को तुलनात्मक ढंग से देखें तो आप चौंक सकते हैं। केवल बागेश्वर में ही कोविड-19 संक्रमण के पूरे वर्ष में जंगल में आग लगने की जहां केवल 4 घटनाएं हुई थीं, वहीं इस वर्ष 166 घटनाएं हुईं।
अल्मोड़ा, पिथौरागढ़, चम्पावत और बागेश्वर ज़िलों का नॉर्थ ज़ोन इस बार जमकर धधका। कुमाऊं के नॉर्थ ज़ोन में इस बार मार्च से ही पहाड़ों में आग लगने की घटनाओं में भारी इज़ाफा हुआ। इस ज़ोन में 60 प्रतिशत से अधिक चीड़ के पेड़ हैं और चीड़ के पिरूल को फॉरेस्ट फायर की सबसे बड़ी वजह माना जाता है। ज़ोन के वन संरक्षक कुबेर सिंह बिष्ट की मानें तो इस वर्ष पहाड़ों में गर्मी अधिक और बारिश कम होने से फॉरेस्ट फॉयर की घटनाओं में इज़ाफा हुआ।
2020 में फॉरेस्ट फायर की सबसे कम घटनाएं
नॉर्थ ज़ोन के जंगल में किस वर्ष कितनी बार आग भड़की और इससे कितने जंगल का हानि हुआ, इसे इन आंकड़ों से समझिए।
2018 में 525 घटनाएं — 1155 हेक्टेयर जंगल खाक
2019 में 716 घटनाएं — 1413 हेक्टेयर जंगल जला
2020 में 52 घटनाएं — 77 हेक्टेयर जंगल में आग
2021 में 887 घटनाएं — 1392 हेक्टेयर जंगल खाक
2022 में 839 घटनाएं — 1481 हेक्टेयर जंगल राख
कौन है ज़िम्मेदार, लोग या वन विभाग?
वन विभाग के अधिकारी आग लगने की घटनाओं के लिए ग्रामीणों को ज़िम्मेदार ठहराते आए हैं। कोविड-19 काल में लॉकडाउन के चलते लोगों की आवाजाही न होने पर आग की घटनाओं का बहुत कम हो जाना यह तो साबित करता ही है कि फॉरेस्ट फायर की बड़ी वजह लोग ही हैं, लेकिन यह बात भी ध्यान चाहती है कि सूबे का वन महकमा 22 वर्षों में आग पर काबू पाने का कोई ठोस उपाय ईजाद नही कर सका। विभाग केवल मौसम की राह ही तकता नज़र आता है।
गर्मियां आने से पहले वन विभाग आग पर काबू पाने की पर्याप्त तैयारियों के वादे और हर वर्ष नये उपकरण खरीदने के दावे करता है, लेकिन आग बेकाबू ही रहती है। बागेश्वर ज़िले में 2022 में वनाग्नि की कुल 166 घटनाएं हुईं, जिनमें करीब 237 हेक्टेयर जंगल स्वाहा हो गए। इस वर्ष वन विभाग को कुल 7 लाख 17 हजार से ज़्यादा का नुकसार सिर्फ इस ज़िले में हुआ।
तो क्या निजी क्षेत्र को दिए जाएंगे जंगल?
बागेश्वर के प्रभागीय वनाधिकारी हिमांशु बागरी कह रहे हैं कि वन विभाग हर वर्ष नई और बेहतर प्रयास करता है। लेकिन यह साफ है कि आग लगने की घटनाएं मानव जनित हैं और जागरूकता के लिए सरकारी विभाग सफल नहीं रहा। इधर, कई बुद्धजीवियों का मानना है कि जंगल बचाने की ज़िम्मेदारी भी निविदा प्रथा में सौंप दी जाए। इससे जंगलों में आग लगने की घटनाओं में कमी आने की बात जानकार कर रहे हैं।