Shaheed Diwas 2023: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान इस आश्रम की नींव रखने आए थे देहरादून

देहरादून: 30 जनवरी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की पुण्यतिथि मनाई जाती है। आज के ही दिन साल 1948 में नाथूराम गोडसे ने बिड़ला हाउस में बापू की गोली मारकर मर्डर कर दी थी। इसी की याद में शहीद दिवस मनाया जाता है। बापू का उत्तराखंड से भी खास नाता रहा है। देहरादून में श्री श्रद्धानंद बाल वनिता आश्रम आजादी से पहले बनवाया गया था, जिसका शिलान्यास करने महात्मा गांधी देहरादून आए थे। तिलक रोड पर यह अनाथ आश्रम आज भी स्थित है।
बाल वनिता आश्रम का उद्घाटन करने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी 16 अक्टूबर 1926 को देहरादून पहुंचे थे। आश्रम के प्रधान सुधीर गुलाटी ने जानकारी दी कि वर्ष 1920 के दशक में बेसहारा-अनाथ बच्चों के लिए आर्य समाज ने उनको सहारा देने की पहल की थी। फरवरी 1924 में आर्य समाज धमावाला के सदस्यों ने बैठक में यह निर्णय लिया कि अनाथ बच्चों और युवतियों को सहारा देने के लिए एक अनाथालय की स्थापना की जाएगी। इसके बाद दो बच्चों के साथ धमावाला में एक अनाथालय खोला गया, जिसे आर्य अनाथालय बोला गया। बाद में इसे तिलक रोड पर लाया गया।
सुधीर गुलाटी ने बताया कि शहर के रईस सेठ मुकुंद हरिहर लाल ने करीब 4.5 बीघा जमीन दान में दी थी। इसके बाद यहां आश्रम बनाया गया, जिसका नाम स्वामी श्रद्धानंद के नाम पर श्री श्रद्धानंद बाल वनिता आश्रम रखा गया। यह आश्रम महात्मा गांधी की स्मृति के रूप में देहरादून की शान बढ़ाता है। 16 अक्टूबर 1926 को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जब देहरादून आए थे, तब उन्होंने इस आश्रम की आधारशिला रखी थी।
आश्रम में 60 बच्चों की व्यवस्था
सुधीर गुलाटी ने बताया कि आश्रम में 60 बच्चों के रहने की प्रबंध है। वर्तमान में बाल वनिता आश्रम में करीब 47 बच्चे रह रहे हैं। आश्रम में बच्चों का लालन-पालन के अतिरिक्त कई तरह के क्रियाकलापों से उनका कौशल विकास भी किया जाता है। बताया कि सुबह बच्चे विद्यालय चले जाते हैं और विद्यालय से लौटने के बाद उन्हें ट्यूशन दिया जाता है। शाम को सभी बच्चे साथ मिलकर प्रार्थना करते हैं। बच्चों के पढ़ने के लिए किताबें, ड्रेस आदि की प्रबंध आश्रम द्वारा की जाती है। वहीं कुछ लोग समय-समय पर राशन और महत्वपूर्ण सामान देते रहते हैं।
पढ़ाया जाता है अहिंसा का पाठ
बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए बाल वनिता आश्रम में कई तरह की सुविधाएं उपस्थित हैं। यहां पुस्तकालय है और प्रोजेक्टर के माध्यम से भी बच्चों को पढ़ाया जाता है। बच्चों की सुरक्षा के लिए सीसीटीवी कैमरे भी लगाए गए हैं। महात्मा गांधी द्वारा रखी गई आधारशिला के बाद इस आश्रम में बिन मां-बाप के बच्चों को छत मिली। वहीं उन्हें बापू की अवधारणा पर अहिंसा और राष्ट्र प्रेम जगाने के लिए प्रेरित भी किया जाता है।
गौरतलब है कि राष्ट्र की आजादी में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के सहयोग को हमेशा याद किया जाता है।वहीं यदि बात करें देवभूमि उत्तराखंड की, तो स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी देहरादून सहित उत्तराखंड के कई जिलों में आए थे। उत्तराखंड में आज भी उनकी कई निशानियां उपस्थित हैं।