तीन आरोपियों को साक्ष्यों व गवाही के अभाव में कोर्ट से मिला बरी

अलीगढ़ में बन्नादेवी थाने से जुड़े जानलेवा हमले के एक 22 वर्ष पुराने मुकदमे में तीन आरोपियों को साक्ष्यों और गवाही के अभाव में एडीजे न्यायालय से शनिवार को बरी किया गया है. इस मुकदमे में एक आरोपी गरीबी के अभाव में अपनी पैरवी के लिए अधिवक्ता नहीं कर पा रहा था. अब सरकारी अधिवक्ता की पैरवी उसके लिए वरदान साबित हुई.
डिप्टी चीफ लीगल एड डिफेंस काउंसिल अनुज कुलश्रेष्ठ ने बताया कि मुकदमे में घटनाक्रम 3 अगस्त 2001 का दर्शाया गया. धीरज कुमार पुत्र भूरी सिंह निवासी सूतमिल, बीमा नगर, बन्नादेवी ने केस दर्ज कराया था. मुकदमे में बंटी पुत्र जगदीश और उसके भाई राकेश, साथी भूरा कंजड़ निवासी एलमपुर, चंद्रपाल निवासी अलापुर गड़िया और अन्य 10-12 अज्ञातों पर आरोप लगाया था. बोला था कि किराएदार के घर में आने जाने के टकराव में बंटी सहित अन्य आरोपियों ने उसके साथ घर में घुसकर लाठी-डंडों से हाथापाई की. मां और पत्नी बचाव में आईं तो उनको भी पीटा.
पुलिस ने मुकदमे के आधार पर विवेचना करते हुए चारों नामजदों के विरूद्ध चार्जशीट दाखिल कर दी. न्यायालय ट्रायल के दौरान राकेश की मृत्यु हो गई. वहीं, अन्य दो आरोपी भूरा और चंद्रपाल जमानत पर रिहा हो गए. वहीं, बंटी काफी समय कारागार में रहा और फिर जमानत पर रिहा हो गया. बंटी की माली हालत खराब थी, तो वह मुकदमे में पैरवी के लिए अधिवक्ता खड़ा नहीं कर सका. बंटी के इस मुद्दे में फिर से वारंट जारी हो गए. उसे पुलिस ने कारागार भेज दिया.
मामले में रोजाना की गई सुनवाई
फरवरी 2022 में बंटी ने कारागार प्रशासन की सहायता से जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को अपनी गरीबी की दुहाई देते हुए सरकारी अधिवक्ता उसके मुकदमे की पैरवी के लिए मांगे जाने को पत्र लिखा. एडीजे-5 ऋषि कुमार ने तुरन्त मुद्दे में जिला विधिक सेवा प्राधिकरण सचिव को पत्राचार किया. उसके आधार पर 24 फरवरी अनुज कुलश्रेष्ठ को बंटी के मुकदमे की पैरवी की जिम्मेदारी दी गई. उच्च न्यायालय के निर्देशानुसार मुद्दे में हर रोज सुनवाई हुई. अनुज कुलश्रेष्ठ ने बताया कि वादी पक्ष के गवाहों और साक्ष्यों को फिर से तलब कराया गया, जो कि क्रॉस परीक्षण में फेल हो गए. इस आधार पर बंटी, भूरा और चंद्रपाल को न्यायालय ने मुकदमे से बरी कर दिया.
यह तथ्य बने बरी किए जाने का आधार
अधिवक्ता अनुज कुलश्रेष्ठ ने बताया कि उन्होंने न्यायालय में तर्क रखा कि वादी केस धीरज ने अपने साथ हाथापाई की बात की, लेकिन उनका और उनकी मां और पत्नी का मेडिकल परीक्षण नहीं हुआ. इसके अतिरिक्त घटना के एक हफ्ते बाद एफआईआर होना संदिग्धता दर्शाता है. उन्होंने बताया कि सबसे खास बात यह रही कि मुकदमे में घटना 3 अगस्त 2001 को 10 बजे होना दर्शाया गया. यह साफ नहीं किया गया कि घटना सुबह या शाम की है. इस पर गवाहों के प्रश्न किए तो कुछ गवाहों से घटना सुबह और कुछ ने शाम की होना बताया. इस पर न्यायालय ने गवाही को संदिग्ध माना और आरोपियों को बरी कर दिया.