Mukhtar Ansari: नाना ने ठुकरा दिया था पाक चीफ बनने का ऑफर
Mukhtar Ansari grandfather: बेशक मुख्तार अंसारी के अपराधा का डंका पूरे पूर्वी यूपी में बजता था लेकिन मुख्तार अंसारी के पूर्वज इतने बड़े विद्वान थे कि आप सोचकर हैरत में पड़ जाएंगे। उसके परिवार से एक नहीं बल्कि कई ऐसे विद्वान हुए हैं जो राष्ट्र के माथे पर चंदन की तरह है। मुख्तार अंसारी के दादा डाक्टर एम। ए अंसारी थे। एम। ए। अंसारी वे नाम हैं जो भारती राष्ट्रीय आंदोलन के अग्रणी नेताओं में शामिल रहे हैं। वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष भी रहे हैं। मुख्तार अंसारी के नाना ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने 1948 के जंग में पाक को छक्के छुड़ाते हुए शहीद हुए थे। इतना ही नहीं पूर्व उपराष्ट्रपति डाक्टर हामिद अंसारी भी इसी परिवार से आते हैं। आइए जानते हैं कि अंसारी परिवार की प्रमुख शख़्सियतों के बारे में…
दादा थे कद्दावर स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षाविद
मुख्तार अंसारी का नाम संभवतः उनके पिता ने अपने पिता मुख्तार अहमद अंसारी के नाम पर रखा होगा ताकि उनका बेटा पिता की तरह राष्ट्र सेवा और शिक्षा में नाम रौशन कर सके। मगर ऐसा हो नहीं सका। आपको जानकर आश्चर्य होगी कि मुख्तार अंसारी नाम उसके अपने दादा के नाम पर पड़ा जो राष्ट्र के सबसे बड़े स्वतंत्रा संग्राम के नेताओं में से एक थे। मुख्तार अंसारी के दादा डाक्टर एम। ए। अंसारी 1912 से लेकर अपने मृत्यु 1936 तक स्वतंत्रता आंदोलन के प्रमुख नेताओं में शामिल थे। उन्होंने डॉक्टरी की उच्च शिक्षा हासिल की और बाल्कन युद्ध के समय इन्सानियत के नाते तुर्की में लोगों की डॉक्टरी सहायता दी। 1898 में वे पहली बार कांग्रेस पार्टी के ऑल इण्डिया सेशन में भाग लिया और देखते-देखते इतना कद बढ़ा कि 1927 में वे कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष बन गए। उनके काल में साइमन कमिशन के विरुद्ध पूरे राष्ट्र में लहर दौड़ गई थी।
जामिया मिलिया के संस्थापक
डॉ। एम। ए। अंसारी महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रमुख नेताओं में शामिल थे। असहयोग आंदोलन के दौरान उन्हें कारावास भी जाना पड़ा। 1924 में जब राष्ट्र में सांप्रदायिकता की आंच बढ़ने लगी तो डाक्टर अंसारी ने हिन्दू-मुस्लिम एकता के स्तंभ थे। उन्होंने आगे आकर इस आंच को शांत किया। डाक्टर अंसारी हिंदुस्तानियों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के पैरोकार थे। इसलिए उन्होंने 1920 में जामिया मिलिया इस्लामिया की बुनियाद में प्रमुखता से सहयोग दिया। वे इस संस्थान के संस्थापकों में थे और 1928 में वे इस संस्थान के चांसलर भी बन गए। उन्हीं के कार्यकाल में 1935 में जामिया मिलिया इस्लामिया अलीगढ़ से दिल्ली में आ गया। वे अपने मृत्यु तक जामिया मिलिया इस्लामिया के चांसलर रहे। पुरानी दिल्ली के दरियागंज में उनके नाम पर अंसारी रोड है जबकि जहां एम्स है उसका नाम भी अंसारी नगर है। आजादी के अमृत महोत्सव पर हिंदुस्तान गवर्नमेंट ने उनके जीवन पर विशेष अभियान चलाया था।
बहुत कम लोगों को पता है कि मुख्तार अंसारी के नाना की वजह से आज राजौरी जिला हमारे राष्ट्र का हिस्सा है। ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में एक छोटी टुकड़ी ने पाक के एक हजार कबाइलियों को मार गिराया और नौशेरा को दोबारा अपने कब्जे में लिया। जब पाक ने आजादी के तुरंत बाद कश्मीर पर धावा कर दिया तो ब्रिगेडियर उस्मान को पुंछ और झांगर को मुक्त कराने का जिम्मा दिया गया। उन्होंने शपथ ली कि जब तक इस क्षेत्र को पाकिस्तानी चंगुल से मुक्त नहीं कराएंगे साधारण सिपाही की तरह ही जमीन पर सोएंगे। ब्रिगेडियर उस्मान इस लड़ाई में सबसे आगे बना रहा और स्वयं सैनिकों को आदेश देने लगे। फाइनेंनशियल एक्सप्रेस की एक समाचार के अनुसार उन्होंने सेना का उत्साह बढ़ाने के लिए ऐसी बात कही जो इतिहास में दर्ज हो गया। उन्होंने कहा, “पूरी दुनिया की नज़र हम पर है…देर-सबेर मृत्यु आनी तय है। लेकिन युद्ध के मैदान में मरने से बेहतर और क्या हो सकता है।”
एक हजार पाकिस्तानी को मारकर हुए थे शहीद
मोहम्मद उस्मान के नेतृत्व में राजौरी के नौशेरा को मुक्त कराने के लिए जब अभियान छेड़ा गया तो इंडियन आर्मी ने एक हजार पाकिस्तानी कबाइली को मार गिराया और कितने ही घायल हुए। पाकिस्तानी वहां से भाग गए। ब्रिगेडियर उस्मान को नौशेरा का शेर बोला जाता है। इस घटना के बाद पाक ने ब्रिगेडियर पर उस्मान की मर्डर पर 50 हजार का ईनाम रखा गया। 3 जुलाई 1948 की शाम को ब्रिगेडियर उस्मान अपने ब्रिगेड मुख्यालय में जब टहल रहे थे, तभी पाकिस्तानी सेना ने गोलाबारी प्रारम्भ कर दी। एक गोला ब्रिगेडियर उस्मान के करीब गिरा और हिंदुस्तान का सबसे वरिष्ठ सेना कमांडर युद्ध के मैदान में शहीद हो गया। मोहम्मद उस्मान को हिन्दू-मुस्लिम एकता का प्रतीक माना जाता है क्योंकि वे मुहम्मद जिन्ना द्वारा दिए गए पाकिस्तानी सेना प्रमुख के पद को अस्वीकार कर दिया था।