बिहार

इस गांव में खटिया ही वहां के लोगों के लिए है एंबुलेंस, जीते जी 4कंधों की पड़ती है जरूरत

स्वास्थ्य सुविधाओं को लेकर राज्य से लेकर केंद्र गवर्नमेंट भले ही लाख दावा कर ले, लेकिन यहां की हकीकत कुछ और है इस दौर में आज भी बिहार के गया जिले के एक गांव में खटिया ही वहां के लोगों के लिए एंबुलेंस है यह एकदम सत्य है हम जिस गांव की बात कर रहे हैं वह गया जिला मुख्यालय से 100 किलोमीटर की दूरी पर पहाड़ों में बसा हुआ है इसका नाम लुटीटांड है, जो इमामगंज प्रखंड क्षेत्र में आता है आजादी के 75 वर्ष बीत जाने के बाद भी यहां जाने के लिए कोई सड़क नहीं है

यहां के लोग पहाड़ी रास्ते से ही पैदल आवागमन करते हैं यहां के लोग बीमार हो जाते हैं तो हॉस्पिटल पहुंचते पहुंचते रोगियों की जान चली जाती है रोग की हालत में एंबुलेंस की स्थान खटिया ही इन लोगों के लिए एकमात्र सहारा है खटिया पर रोगियों को लादकर चार लोग कंधे पर टांग कर 6 किलोमीटर का पहाड़ उतरकर नीचे गांव पहुंचते हैं वहां से फिर ऑटो पकड़कर इमामगंज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पहुंचते हैं

एक भी मूलभूत सुविधाएं नहीं
गौरतलब हो कि लुटीटांड गांव इमामगंज प्रखंड क्षेत्र के मल्हारी पंचायत भीतर आता है और इस पंचायत की वार्ड संख्या एक है लेकिन यहां किसी भी तरह के मूलभूत सुविधाएं नहीं है बिजली और विद्यालय को छोड़ दिया जाए तो गवर्नमेंट के अन्य योजनाओं का फायदा इन्हें बमुश्किल मिल पाता है न यहां पानी की प्रबंध है, न सड़क की, न हॉस्पिटल की और न ही किसी को आवास योजना का फायदा मिला है इस गांव की जनसंख्या लगभग 300 है और यहां के लोग मजदूरी कर अपना जीवन यापन करते हैं पानी के लिए गांव में केवल एक कुआं ही लोगों का सहारा है

सड़क और पानी की भी समस्या
अगर कोई आदमी बीमार पड़ जाता है तो हॉस्पिटल पहुंचते पहुंचते उसकी हालत और गंभीर हो जाती है कई लोग रास्ते में ही दम तोड़ जाते हैं गांव के ही रहने वाली दुलरिया देवी बताती है कि पिछले वर्ष समय पर हॉस्पिटल न पहुंचने के कारण उनकी बहू की भी मृत्यु हो चुकी है गांव के अन्य ग्रामीण लक्ष्मण यादव बताते हैं गवर्नमेंट को इस गांव पर भी ध्यान देनी चाहिए कम से कम एक सड़क और पानी की प्रबंध हो जाए तो हम लोगों की आधी कठिनाई दूर हो जाएगी पहाड़ से नीचे उतरने में लगभग 2 घंटे लग जाते हैं पहाड़ से नीचे स्थित इमामगंज प्रखंड मुख्यालय की दूरी मात्र 8-10 किमी है, लेकिन पहाड़ के ऊपर से घूमकर जाने पर 25 किमी की दूरी पड़ती है ऊपर से घूम कर आने के लिए भी कोई सड़क नहीं है और पथरीले रास्ते से ही लोग आवागमन करते हैं

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