बिहार

पप्पू यादव ने क्यों थामा कांग्रेस का दामन…

पप्पू यादव बिहार की राजनीति का वो चेहरा है, जो जिसके साथ रहे सीमांचल में उसी पार्टी का झंडा बुलंद रहा. 2014 की मोदी लहर में राजद मात्र 4 सीट बचा पाई थी, उसमें एक मधेपुरा भी था. तब पप्पू यादव ने यहां जदयू के तत्कालीन राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव को 50 हजार से भी अधिक मतों से हराया था.

हालांकि, कभी राजद में लालू यादव के वारिस कहे जाने वाले पप्पू यादव ने तेजस्वी के उदय के बाद राजद की राजनीति को अलविदा कह दिया. इसके बाद 2015 में अपनी पार्टी जाप (JAP) बनाई. अब 9 वर्ष बाद उन्होंने अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में कर दिया है. ऐसे में जब लोकसभा का चुनाव चंद रोज दूर है. पप्पू यादव ने क्यों कांग्रेस पार्टी का दामन थामा

हर हाल में इस बार पूर्णिया चाहते थे पप्पू यादव

52 वर्ष की उम्र में 5 बार लोकसभा का चुनाव जीतने वाले पप्पू यादव इस बार हर हाल में लोकसभा पहुंचना चाहते हैं. 6 महीने पहले ही उन्होंने इस बात का घोषणा कर दिया था कि वे इस बार पूर्णिया से चुनाव लड़ेंगे. पिछले 4 महीने से वे लगातार पूर्णिया में कैंप कर रहे हैं. उन्होंने वहां पहले प्रणाम पूर्णिया का कैंपेन चलाया. इसके बाद पिछले महीने एक बड़ी रैली कर अपनी शक्ति का प्रदर्शन भी किया. लेकिन, वे जानते हैं कि बिना एनडीए या I.N.D.I.A गठबंधन का हिस्सा बने अपनी इस मुहिम में वो सफल नहीं हो सकते थे. इसके लिए वे लगातार राजद और कांग्रेस पार्टी के नेताओं के संपर्क में थे.

कांग्रेस अलांयस के लिए नहीं हुई राजी

पप्पू यादव I.N.D.I.A गठबंधन के साथ एक सीट डील करना चाहते थे. उन्होंने कई बार सार्वजनिक तौर पर इसकी घोषणा भी की थी. लेकिन, न तो कांग्रेस पार्टी ने और न तो राजद ने उनकी मांग को तवज्जो दिया. मोहन प्रकाश के बिहार कांग्रेस पार्टी प्रभारी बनने के बाद पप्पू यादव के साथ उनकी कई राउंड की वार्ता हुई. कांग्रेस पार्टी उन्हें पूर्णिया सीट देने के लिए राजी थी, लेकिन शर्त बस इतना था कि गठबंधन के बजाय उन्हें हर हाल में अपनी पार्टी का विलय कांग्रेस पार्टी में कराना होगा.

राहुल की इन्साफ यात्रा के दौरान फाइनल हुई डील

इस बीच कांग्रेस पार्टी के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी की इन्साफ यात्रा बिहार पहुंची. उनका मुख्य फोकस सीमांचल पर था. सूत्रों की माने तो राहुल गांधी की कोर टीम और पप्पू यादव के बीच वार्ता हुई और विलय पर डील पक्की हो गई. सूत्रों की माने तो यही कारण था कि पूर्णिया में राहुल गांधी की तैयारी का सारा जिम्मा कांग्रेस पार्टी के भावी प्रत्याशी देख रहे थे, लेकिन कहीं भी पोस्टर पर उनकी तस्वीर नहीं लगाई गई थी.

राजद से मधेपुरा सीट का था ऑफर

पप्पू यादव का कांग्रेस पार्टी के साथ-साथ राजद से भी बात चल रही थी. लालू यादव इन्हें अपने कोटे की सीट मधेपुरा देना चाहते थे. लेकिन पप्पू यादव मधेपुरा के लिए राजी नहीं हुए. एक तो यहां से वे दो बार चुनाव हार चुके हैं. दूसरा वे इस बात को अच्छे से समझ गए थे कि मधेपुरा भले गोप का हो, लेकिन यादव के सभी बड़े कद्दावर यहां से चुनाव हार चुके हैं. वे स्वयं दो बार यहां से हारे हैं. इसके अतिरिक्त लालू प्रसाद यादव और शरद यादव जैसे कद्दावर को भी यहां से हार का मुंह देखना पड़ा है.

पप्पू के आने से अपने किले में मजबूत होगी कांग्रेस

बिहार में सीमांचल को अभी भी कांग्रेस पार्टी का मजबूत किला बोला जाता है. यही कारण है कि अपनी इन्साफ यात्रा के दौरान राहुल गांधी सबसे अधिक समय सीमांचल में बिताए. अपनी एक मात्र रैली पूर्णिया में की. 2019 के लोकसभा चुनाव में मोदी और नीतीश की जोड़ी ने विपक्ष का सूपड़ा साफ कर दिया था. बावजूद इसके एक मात्र सीट किशनगंज कांग्रेस पार्टी जीतने में सफल रही थी. वहीं कटिहार में भी कड़ा मुकाबला हुआ था. पप्पू यादव की पूरी राजनीति भी सीमांचल केंद्रित रही है. वे मधेपुरा, सुपौल, पूर्णिया जैसे कोशी-सीमांचल के क्षेत्र में 90 के दशक से सक्रिय रहे हैं. ऐसे में उनके कांग्रेस पार्टी में शामिल होने से सीमांचल में कांग्रेस पार्टी को और मजबूती मिलेगी.

पत्नी पहले से कांग्रेस पार्टी की राज्यसभा सांसद हैं

पप्पू यादव की पत्नी रंजीता रंजन पहले ही कांग्रेस पार्टी कोटे से राज्यसभा सांसद है. कांग्रेस पार्टी ने उन्हें दूसरी बार सांसद बनाया है. इससे पहले वे सुपौल से लोकसभा चुनाव जीत चुकी हैं. इसके बाद अब पति पत्नी दोनों कांग्रेसी हो गए. कांग्रेस पार्टी में शामिल होने से पहले पप्पू यादव राजद और सपा से चुनाव लड़ चुके हैं.

1990 से चुनाव जीतते आ रहे हैं पप्पू यादव

पप्पू यादव वर्ष 1990 में पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर मधेपुरा की सिंहेश्वर सीट से विधानसभा चुनाव जीते थे. इसके बाद उनका राजनीतिक कद लगातार बढ़ता गया और लगातार राजनीति की ऊंची सीढ़ियां चढ़ते चले गए. विधानसभा में जीत के एक वर्ष बाद ही वर्ष 1991 के लोकसभा चुनाव में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर पूर्णिया से न सिर्फ़ चुनाव लड़े जीते भी.

1996 के चुनाव में बिहार से बाहर की पार्टी सपा ने उन्हें पूर्णिया सीट से अपना उम्मीदवार बनाया. एक बार फिर पप्पू यादव पूर्णिया जीतने में सफल रहे. तीन वर्ष बाद हुए 1999 के चुनाव में पप्पू यादव फिर से पूर्णिया से निर्दलीय मैदान में उतरे और तीसरी बार सांसद बनने में सफल रहे.

2004 के लोकसभा चुनाव में राजद ने इन्हें मधेपुरा से अपना उम्मीदवार बनाया. इन्होंने मधेपुरा में भी राजद का झंडा बुलंद किया और जीतने में सफल रहे. 2009 में पटना उच्च न्यायालय ने मर्डर के एक मुद्दे में गुनेहगार करार देते हुए पप्पू यादव के लोकसभा चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी. इसके बाद उन्हें आरजेडी ने भी बाहर का रास्ता दिखा दिया.

करीब 5 वर्ष बाद यानी 2014 के चुनाव में पप्पू यादव की आरजेडी में वापसी हुई. एक बार फिर से इन्हें मधेपुरा सीट से शरद यादव के विरुद्ध उम्मीदवार बनाया गया. इस चुनाव में पप्पू यादव ने मोदी लहर में न सिर्फ़ आरजेडी को जीत दिलाई, बल्कि जदयू के दिग्गज नेता रहे शरद यादव को 50 हजार वोट से हराया था.

इसके एक वर्ष बाद मई 2015 में आरजेडी ने पप्पू यादव को पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते बाहर का रास्ता दिखा दिया. जिसके बाद पप्पू यादव ने अपनी जन अधिकार पार्टी बनाई और 2019 के चुनाव में मधेपुरा से चुनाव लड़ा. हालांकि, इस चुनाव में उन्हें हार का सामना करना पड़ा. 2014 के बाद ये अब तक कोई चुनाव नहीं जीते हैं.

2019 में मधेपुरा से हारे थे पप्पु यादव
2019 के लोकसभा चुनाव में पप्पू यादव अपनी पार्टी से अकेले उम्मीदवार थे. इन्होंने मधेपुरा से चुनाव लड़ा और तीसरे जगह पर रहे थे. इस चुनाव में पप्पू यादव एक लाख का आंकड़ा भी पार नहीं कर पाए थे. इन्हें 97 हजार 631 वोट मिला था. नतीजा ये हुआ कि इनका पार्टी 2020 का विधानसभा चुनाव भी नहीं लड़ी.

पूर्णिया का सामाजिक समीकरण जानिए

पूर्णिया लोकसभा सीट में 60 प्रतिशत हिन्दू और 40 प्रतिशत मुसलमान वोटर हैं. यदि जातिगत समीकरण की बात करे तो यहां डेढ लाख से अधिक यादव, सवा लाख से अधिक सवर्ण की जनसंख्या है. क्षेत्र अतिरिक्त बड़ी संख्या में पिछड़ा, अति-पिछड़ा और दलित मतदाता हैं. वहीं यहां हार-जीत में मुसलमान वोटर्स की भी अहम किरदार होती है.

विधानसभा के हिसाब से देखें तो पूर्णिया में बनमनखी, धमदाहा, रुपौली, कसबा, पूर्णिया और कोढ़ा विधानसभा क्षेत्र आते हैं. इनमें धमदाहा, रूपौली और पूर्णिया जहां सवर्ण बाहुल क्षेत्र हैं तो कस्बा और कोढ़ा की गिनती मुसलमान बाहुल इलाकों में होती है. वहीं, बनमनखी और कोढ़ा में एससी-एसटी और दलित जनसंख्या अधिक है.

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