पिता ने दी ट्रेनिंग…तो बेटों ने छोटे से कारोबार को बना दिया ब्रांड
पटना। ‘गुरु गोविन्द दोऊ खड़े काके लागूं पांय, बलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो बताय’ आपने संत कबीरदास का यह प्रसिद्ध दोहा तो जरूर सुना होगा। मूल रूप से औरंगाबाद जिले के रहने वाले 70 वर्षीय सीताराम कुल्फी वाले के बेटों पर यह दोहा परफेक्ट बैठता है। दरअसल, सीताराम ने स्वयं ही अपने बेटों को तरह-तरह की कुल्फी बनाने की ट्रेनिंग दी। इसका रिज़ल्ट यह हुआ कि आज अपने पिता के गाइड लाइन में उनके बेटों ने पटना में सीताराम कुल्फी को एक ब्रांड बना दिया है।
तारामंडल के ठीक सामने खाओ गली में सीताराम कुल्फी का ठेला लगता है। वे बताते हैं कि आरंभ में 13 वर्ष तक कोलकाता के विक्टोरिया हॉल के सामने कुल्फी बनाकर बेचते थे। उन्हीं दिनों एक्सपर्ट से तरह-तरह के फलों की कुल्फी बनाना सीखा। फिर वर्ष 2002 में उन्होंने पटना में अपना काम प्रारम्भ किया। छह बच्चों के पिता सीताराम बताते हैं कि उन्हें कुल्फी के इसी काम से खूब तरक्की मिली। इसी की बदौलत उन्होंने जमीन ली, मकान बनाया और सभी बच्चों को ग्रेजुएशन तक पढ़ाया। अब उनके काम को तीन बेटे आगे बढ़ा रहे हैं। सीताराम जी के ठेले पर रबड़ी वाली स्पेशल कुल्फी, स्टिक कुल्फी, पान कुल्फी और संतरा कुल्फी खूब बिकती है। सीताराम बताते हैं कि लग्न में उन्हें खूब सारे ऑर्डर भी मिलते हैं। इससे अच्छी कमाई हो जाती है। सीताराम की मानें तो उनके तीन बेटे कुल्फी के बिजनेस में लगे हैं। जबकि दो बच्चे अभी पढ़ रहे हैं। वहीं, एक बेटा गांव में रहकर खेती करता है।
40 रुपए से प्रारम्भ है कीमत
रोहित बताते हैं कि उनके गुरु पिता सीताराम ही हैं। उन्हीं की बदौलत आज कुल्फी का धंधा काफी बढ़िया चल रहा है। रोहित बताते हैं कि उनके पास तरह-तरह की कुल्फी है। उन सब में सबसे अधिक लोग रबड़ी वाली कुल्फी पसंद करते हैं। वहीं, डायबिटिक लोगों के लिए वे अलग से शुगर फ्री कुल्फी रखते हैं। बता दें कि यहां कुल्फी की आरंभ 40 रुपए से होती है, जो 80 रुपए तक जाती है। रोहित आगे बताते हैं कि खाओ गली के अतिरिक्त उनका एक ठेला बोरिंग रोड में दूसरा भाई चलता है।